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साउथ का नया पॉलिटिकल बॉस

स्पेशल डेस्क

कहते हैैं कि अगर सब्र रखा जाये तो किसी का भी वक्त पलट सकता है। संघर्ष करके किसी को जीता जा सकता है। अक्सर लोग बुरे वक्त में हार मानकर बैठ जाते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बुरे वक्त में भी निखरकर सामने आते हैं। आध्र प्रदेश की सियासत में जगनमोहन रेड्डी एक ऐसा ही नाम है।जगनमोहन रेड्डी के हाथों में अब आध्र प्रदेश की सत्ता है।

सियासी सफर रहा उतार-चढ़ाव भरा

जगनमोहन रेड्डी का सियासी सफर बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा है। सत्ता के संघर्ष में उन्होंने सबको चौंकाते हुए सूबे के नई मुखिया बन गए है। उनके पिता वाई. एस. राजशेखर रेड्डी भी कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे लेकिन पिता के असामयिक निधन के बाद उनके ऊपर पिता की विरासत संभालने का दबाव बढ़ गया था। पिता के जाने के बाद कांग्रेस ने उन्हें ज्यादा भाव नहीं और उपेक्षा का शिकार होते रहे।

राजनीतिक में कदम रखने का मन ही बनाया था कि ईश्वर ने उनके पिता को उनसे छीन लिया। इतना ही नहीं कांग्रेस आलाकमान के बुरे बर्ताव और आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल की हवा खाने वाले जगनमोहन रेड्डी टूटे नहीं बल्कि उन्होंने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी और अपना हक भी लिया है। छोटे कारोबारी से शक्तिशाली नेता तक के 2 दशक लंबे अपने करियर में वाईएसआर कांग्रेस अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी के सामने वक्त ने भी खूब आंख मिचौली खेली है।

लम्बे संघर्ष बाद बनायी नई पार्टी

अच्छे और बुरे दिन को लेकर उन्होंने लम्बा संघर्ष करते हुए कांग्रेस से किनारा कर लिया और 2011 में उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया और वाईएसआर कांग्रेस का मतलब है युवजन श्रमिक रायतू कांग्रेस पार्टी है। उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से कडप्पा चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ा और उन्होंने 5,45,043 वोट पाकर बड़ी जीत दर्ज की।

उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए 175 में से 151 सीटें जीतकर चंद्रबाबू को धूल चटायी। इतना ही नहीं राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत दर्ज करके कांग्रेस जैसी पार्टी बौना साबित कर दिया।

पिता की विरासत को संभालने में किया संघर्ष

राजनीतिक जानकार बताते हैैं कि 2004 में वह कांग्रेस से कडप्पा से चुनाव लडऩा चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा को पूरा नहीं होने नहीं दिया, हालांकि 2009 उनका ये सपना पूरा हो गया लेकिन 2009 में उनकी जिदंगी बुरा दौरा था जब उनके पिता हेलिकॉप्टर दुर्घटना में इस दुनिया से रूकसत हो गए। इसके बाद उनकी जिंदगी में उथलपुथल का दौर चलता रहा। पिता की मौत के बाद कांग्रेस ने उन्हेेें कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

कांग्रेस ने कर दिया था अलग-थलग

अपनी पार्टी से आलाकामन ने उनको अलग-थलग कर दिया गया। आलम तो यह रहा कि पिता की मौत के बाद राज्य में श्रद्धांजलि यात्रा निकालने पर कांग्रेस ने इजाजत नहीं थी। दूसरी ओर भले ही दिल्ली में बैठे कांग्रेस के लोग उन्हें भले ही भाव नहीं दे रहे थे जबकि उनके राज्य के 177 में से 170 विधायकों ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया लेकिन कांग्रेस को तब भी कुछ नहीं दिखा। माना जाता है कि इसके बाद जगन ने मेहनत से अपनी नई पार्टी का गठन कर लिया।

राजनीतिक समझ के लिए जगनमोहन रेड्डी ने पदयात्रा की

राजनीति के उलझे समीकरण को समझने के लिए जगनमोहन रेड्डी ने 341 दिन की पदयात्रा की और इस दौरान उन्होंने 2 करोड़ लोगों से भेंट की। माना जाता है यहीं से उन्हें राज्य में नई सरकार बनाने के लिए ये काफी असरदार थी। उनकी यह पदयात्रा जनवरी 2019 में खत्म हुई।

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