Monday - 8 January 2024 - 7:13 PM

राजनीतिक दलो के एजेंडे से गायब है महिला रोजगार का मुद्दा

डॉ. योगेश बंधु

वैसे तो मुद्दों के मामले में 17वी लोकसभा के चुनाव अन्य चुनावों से एकदम अलग हैं। सभी राजनीतिक दल वास्तविक मुद्दों से अलग जुमलों की लड़ाई में उलझे हुए हैं। ऐसे में महिलाओ के श्रम अधिकारों और उनके आर्थिक और राजनीतिक अवसरों की कमी से बढ रही है असमानता की बात करना बेमानी है।

हालांकि महिलाओं के लिए श्रमबल में भागीदारी के अवसरों की समान उपलब्धता देश के आर्थिक सेहत का मामला भी है। मैक्किंस्की ग्लोबल इंस्टीट्यूट के अनुसार, भारत केवल लैंगिक समानता का लक्ष्य हासिल करके वर्ष 2025 तक 770 बिलियन अमरीकी डॉलर का अतिरिक्त लाभ और जीडीपी में 18 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हासिल करा सकता है, लेकिन इसके लिए देश को अपने श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 10 प्रतिशत तक बढ़ानी होगी।

प्रधानमंत्री मोदी आर्थिक विकास के लिए चौथी औद्योगिक क्रांति की आवश्यकता और उसमें महिलाओं की भागेदारी सुनिश्चित करने पर जोर देते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हकीकत इससे एकदम अलग रही है। हाल में ही अंतर्राष्ट्रीय संस्था डिलॉयट द्वारा जारी ‘भारत में चौथी औद्योगिक क्रांति के लिये लड़कियों एवं महिलाओं का सशक्तिकरण’ रिपोर्ट में पाया गया है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रुकावटों से महिलाओं के लिए अवसर में कमी आती है।

रिपोर्ट में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम होने का कारण शिक्षा की कमी, गुणवत्तायुक्त शिक्षा तक पहुंच का अभाव, डिजिटल विभाजन और आर्थिक एवं सामाजिक बंधन हैं जो उन्हें रोजगार योग्य कौशल पाने, श्रम बल में शामिल होने और उद्यम शुरू करने से रोकते हैं।

भारत में यदि लैंगिक समानता के आंकड़ों (जेंडर पैरिटी स्कोर : जीपीएस) पर गौर किया जाए तो भारत की स्थिति अनेक एशियाई देशों से भी बदतर है। महिला रोजगार के दृष्टिकोण से देश में वर्तमान हालात बहुत उत्साहजनक नही है। असंगठित क्षेत्र में 95 प्रतिशत यानी 19.5 करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जो या तो बेरोजगार हैं या उन्हें काम के बदले पैसा नहीं मिलता है।

वर्ष 2012-13, 2013-14 और 2015-16 में श्रम ब्यूरो द्वारा किए गए वार्षिक रोजगार- बेरोजगारी के अंतिम तीन दौर के सर्वेक्षण के अनुसार 15 वर्ष और उससे ऊपर के आयु की महिलाओं के लिए श्रमिक जनसंख्या अनुपात क्रमश: 25.0 प्रतिशत, 29.6 प्रतिशत और 25.8 प्रतिशत रहा। वर्तमान में कुल श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी मात्र 26 प्रतिशत है।

उत्तर पूर्वी राज्यों का प्रदर्शन इस मामले में सबसे बेहतर हैं, जहां कुल श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत से अधिक है। इनके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के साथ दक्षिणी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों बड़े राज्यों में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक में स्थिति थोड़ी संतोषजनक है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब सबसे बदतर प्रदर्शन वाले राज्य हैं।

दुर्भाग्य की बात ये है कि हर बार की तरह इस बार भी लोकसभा चुनावों में महिला रोजगार किसी भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल के लिए चुनावी मुद्दा नहीं है। पिछले चार वर्षों में कुल श्रम बल में महिला रोजगार की हिस्सेदारी में आंशिक कमी हुई है, लेकिन विपक्षी पार्टियां ना तो सत्तारूढ़ दल की इस नाकामी को चुनाव में मुद्दा बना रहीं हैं और ना ही ख़ुद इस मुद्दे पर किसी तरह की स्पष्टता रखती हैं। ऐसे हालातों में महिलाओं के हाशिए से उबरने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।

पढ़े: लोकसभा चुनाव 2019 : दुनिया का सबसे महँगा लोकतांत्रिक उत्‍सव

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com