Sunday - 7 January 2024 - 5:52 AM

क्या सिमटती दुनिया सेफ भी है  

अब्दुल हई

सूचना के अधिकार (आरटीआई) से प्राप्त एक जानकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों, अप्रैल-दिसंबर, 2019 के दौरान 18 सरकारी बैंकों में कुल 1.17 लाख करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 8,926 मामले सामने आऐ। वित्तीय वर्ष के शुरुआती 9 महीनों में हर भारतीय का बैंक कहा जाने वाला भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) धोखाधड़ी का सबसे बड़ा शिकार बना।

9 महीनों में एसबीआई की ओर से 30,300.01 करोड़ रुपए की बैंकिंग धोखाधड़ी के 4,769 मामले सामने आए। पंजाब नेशनल बैंक में अप्रैल से दिसंबर तक बैंकिंग धोखाधड़ी के 294 मामले मिले जिसमें 14,928.62 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। तो वहीं बैंक ऑफ बड़ौदा में कुल 11,166.19 करोड़ रुपए के 250 मामले सामने आए।

इलाहाबाद बैंक में 6,781.57 करोड़ रुपए की फ्रॉड के 860 मामले, बैंक ऑफ इंडिया में 6,626.12 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 161 मामले, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में 5,604.55 करोड़ रुपए के फ्रॉड के 292 मामले, इंडियन ओवरसीज बैंक में 5,556.64 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 151 मामले और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में 4,899.27 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के 282 मामले की जनकारी मिली। केनरा बैंक, यूको बैंक, सिंडिकेट बैंक, कॉर्पोरेशन बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, आंध्रा बैंक, युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक और पंजाब एंड सिंध बैंक में 1,867 मामले सामने आए जिसमें कुल 31,600.76 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा।

देश जिस गति से डिजिटलीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से साइबर धोखाधड़ी के मामले भी बढ़ रहे हैं। पिछले कुछ सालों में आम लोगों के साथ कॉरपोरेट भी इसके शिकार हुए हैं। आज जालसाजों से अपनी गाढ़ी कमाई को बचाना बहुत बडा चैलेंज है। हममें से ज्यादातर लोग अपने कंप्यूटर और स्मार्टफोन से ही नहीं बल्कि ऑफिस कंप्यूटर और सार्वजनिक वाईफाई के जरिए भी मनी ट्रांसफर या रुपयों का लेनदेन करते हैं। बैंक और हम अपने एटीएम और उसके पिन को लेकर कई तरह के सिक्योरिटी का इंतजाम करते हैं लेकिन इसके बावजूद भी हैकर्स साइबर धोखाधड़ी के नए-नए तरीके अपना रहे हैं। इनमें आईडेंटिटी चोरी, सोशल मीडिया लायबिलिटी, साइबर स्टॉकिंग, मालवेयर अटैक, आईटी चोरी और साइबर एक्सटॉर्शन शामिल हैं।

फ्रॉड के सबसे ज्यादा केस ऑनलाइन खरीदारी या ऑनलाइन पेमेंट के जरिए हो रहे हैं। ऑनलाइन ई कॉमर्स कंपनियों की मदद से सामान खरीदना अब आम हो गया है। जैसे-जैसे इसका चलन बढ़ा है, वैसे-वैसे ही साइबर अपराधों में भी इजाफा हुआ है।

हाल ही में ऐसा ही एक साइबर अपराध का शिकार महाराष्ट्र के पुणे की एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी हो गई है। जिसे 388 रुपए की नेल पॉलिश ऑनलाइन मंगाना भारी पड़ गया। इसके बदले साइबर अपराधियों ने उसे 92 हजार से ज्यादा का चूना लगा दिया।

यह भी पढ़ें : नमस्ते ट्रम्प ! समिति की आड़ में सरकार क्या छिपा रही है ?

पीड़िता को अपने साथ धोखाधड़ी होने की जानकारी तब लगी जब उसने सामान की डिलीवरी में देर होने पर कस्टमर केयर पर फोन लगाकर इसकी जानकारी ली। कस्टमर केयर कर्मचारी ने कहा कि कंपनी को अब तक पेमेंट रिसीव नहीं हुआ इस वजह से डिलवरी नहीं की गई है।

इसके साथ ही कर्मचारी ने उसका पैसा वापस करने का वादा करते हुए उससे मोबाइल नंबर मांगा। पीड़िता द्वारा मोबाइल नंबर शेयर करने के कुछ मिनट के भीतर ही पांच ट्रांजेक्शन्स में उसके अकाउंट से 92 हजार से ज्यादा की राशि निकाल ली गई।

ऑनलाइन दुनिया में कुछ भी छिपा नहीं है

अभी कुछ दिनों पहले साउथ की एक फिल्म देखी ‘द रिटर्न ऑफ अभिमन्यु’। यह एक सैन्य अधिकारी की कहानी है जो अपनी बहन की शादी के लिए जाली कागजात का उपयोग करके बैंक से लोप लेता है और यह रुपए जब उसके अकाउंट में आते हैं तो कुछ समय बाद ही वे रुपए खाते से गायब हो जाते हैं, इसके बाद वह एक जांच शुरू करता है जो उसे एक हैकर तक ले जाती है और उसे पता चलता है कि इस तरह के फ्राड का शिकार वो अकेला नहीं है ऐसे बहुत से लोग हैं।

इसकी कहानी ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि औद्योगिक क्रांति के चलते हमारी व्यक्तिगत चीजें जैसी ई-मेल, व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसी कोई सोशल नेटवर्किंग साइट्स भी सुरक्षित नहीं इसकेे जरिए कोई भी आप तक पहुंच सकता है। व्हाट्सऐप, ट्विटर, फेसबुक आजकल दुनियाभर में सरकारों और समाजों के निशाने पर हैं।

जब से फेसबुक ने कैंब्रिज एनालिटिक्स को अपने से जुड़े लोगों के व्यवहार के बारे में डाटा बेच कर पैसा कमाने की बात सामने आई है, तब से लगातार डिजिटल मीडिया, डिजिटल संवादों पर सवाल उठ रहे हैं। गूगल के सुंदर पिचाई अमेरिकी संसद में कह चुके हैं कि गूगल चाहे तो मुफ्त भेजे जाने वाले जी-मेल अकाउंटों के संवाद भी पढ़ सकता है।

डिजिटल क्रांति से जहां पहले फायदे दिखते थे अब नुकसान हो रहा है

डिजिटल क्रांति असल में दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो रही है। कुछ हद तक परमाणु बमों की तरह। परमाणु परीक्षणों का विनाशकारी उदाहरण बाद में देखने को मिला पर उस दौरान किए गए शोध का फायदा बहुत से अन्य क्षेत्रों में बहुत हद तक हुआ है और आजकल जो रेडिएशन के दुष्प्रभाव की बात हो रही है वह परमाणु परीक्षणों से ही जुड़ी है।

डिजिटल क्रांति में उलटा हुआ है। पहले लाभ हुआ है, अब नुकसान दिख रहे हैं। जहां डिजिटल क्रांति के जरिए आप मिनटों में रुपयों का लेन-देन कर सकते हैं, घर बैठे खाना-कपड़ा मांगा सकते हैं, मिनटों में टिकट बुक कर सकते हैं और डिजिटल मीडिया के जरिए आप अपनी बात दोस्तों, संबंधियों, ग्राहकों तक पहुंचा सकते हैं तो वहीं डिजिटल क्रांति के जरिए जम कर फेक न्यूज भी फैलाई जा रही है व लोगों के साथ धोखाधड़ी-साइबर फ्रॉड के केस भी बहुत ज्यादा सामने आ रहे हैं।

दुनियाभर में फेक मैसेज भेजे जा रहे हैं। स्क्रीनों के पीछे कौन छिपा बैठा है। यह नहीं मालूम इसलिए करोड़ों को मूर्ख बनाया जा रहा है और लाखों को लूटा भी जा रहा है। लोग फेसबुक, व्हाट्सऐप के जरिए प्रेम करने लगते हैं जबकि असलियत पता ही नहीं होती। जो बात दो जनों में गुप्त रहनी चाहिए वह सैकड़ों में कब बंट जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

मीरापुर की रहने वाली सीमा फेसबुक पर काफी एक्टिव थी। अपनी फोटोज शेयर करती थी। बिंदास रहने की इसी आदत ने उसकी जान ले ली। साथ में उठने-बैठने वालों ने ही सीमा को गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया। जाहिर सी बात है सोशल मीडिया पर सीमा की अति सक्रियता कुछ लोगों को रास नहीं आई। कहने के लिए आज की जिंदगी का सबसे बड़ी जरूरत है सोशल मीडिया।

यह भी पढ़ें : कहां गायब हो गए 26 बाघ

वॉट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और न जाने क्या-क्या? सिर्फ एक टच पर दुनिया के इस हिस्से से उस हिस्से में, लेकिन वर्चुअल स्पेस की यह नजदीकियां हकीकत में कितने करीब हैं? लोग अपनों के साथ आई मुश्किलें वर्चुअल स्पेस के उन लोगों के साथ बांद रहे हैं, जिनसे वो शायद ही कभी मिले हों। वहीं से साथी के मोबाइल में ताकझांक से लेकर उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स तक में दखलअंदाजी की कोशिश कई बार जिंदगी पर भारी पड़ जा रही है।

पर्सनल स्पेस को खत्म करता इंटरनेट

आज मोबाइल पर कही गई बात भी सुरक्षित नहीं है, क्योंकि उसका रिकॉर्ड कहीं रखा जा रहा। न केवल आप ने कहां से किस को फोन किया यह रिकॉर्डेड है, क्या बात की यह भी रिकॉर्डेड है। हां, उसे सुनना आसान नहीं यह बात दूसरी है। पर खास विरोधी का हर कदम सरकार जान सकती है और वो हैकर्स भी। टेक कंपनियां असल में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सबसे बड़ा अंकुश बन गई हैं। पहले लगा था कि इनसे अपनी बात लाखों-करोड़ों तक पहुंचाई जा सकती है।

आप कागज पर ही लिखें, यह तो नहीं कहा जा सकता पर यह जरूर ध्यान में रखें कि कोई भी आप नजर आसानी से रख सकता है। आप व्यापारियों के लिए भी टारगेट बन रहे हैं। वे आप की सोच, आप के खरीदने के व्यवहार को भी नियंत्रित कर रहे हैं। आप टाइम पास के लिए ही कहीं जाने का सर्च करें बस फिर क्या है आप के मेल पर, फोन पर कॉल-मैसेज के जरिए आपको टूरिस्ट प्लान ऑफर होने लगेंगे और साथ ट्रॉली बैग, कपड़े, होटल की जानकारियां मिलने लगेंगी। ऐसे में बस यही लगता है कि इंअरनेट से दूर अपना ब्लैक एंड व्हाइट फोन ही सही है।

यह भी पढ़ें : वारिस पठान और गिरिराज सिंह एक ही आदमी हैं

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com