अशोक कुमार
हेल्थ ईज़ वेल्थ का हिन्दी में मतलब ‘स्वास्थ्य ही धन है‘ होता है जिसे ‘नेक तंदुरुस्ती लाख नियामत‘ भी कहा जाता है जिसका मतलब है-अच्छा स्वास्थ्य हमेशा धन से ऊपर होता है।
वाक्यांश हेल्थ ईज़ वेल्थ का गहरा अर्थ है और यह हमारे जीवन में अच्छे स्वास्थ्य के महत्व को दर्शाता है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारे स्वास्थ्य की देखभाल करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए, और यह कि अच्छा स्वास्थ्य जीवन में सफलता और खुशी का आधार है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए भारत में खाने में प्रयोग होने वाली कई ऐसी चीजें हैं जिन पर प्रतिबंध लगाया गया है या उपयोग को सीमित किया गया है।
इनमें से कुछ प्रमुख वस्तुएँ इस प्रकार हैं: कुछ सिंथेटिक रंग. उच्च सोडियम वाले जंक फूड, कुछ कीटनाशक जैसे एल्ड्रिन, डीडीटी, एंडोसल्फान आदि, कुछ कृत्रिम स्वीटनर , तंबाकू और निकोटीन: किसी भी खाद्य पदार्थ में इनका उपयोग प्रतिबंधित , कुछ कृत्रिम स्वीटनर, सैसाफ्रास ऑयल , ब्रॉमिनेटेड वेजिटेबल ऑयल , दवाओं पर प्रतिबंध , फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाएं , कुछ दर्द निवारक दवाएं , कुछ एंटी-एलर्जिक दवाएं जैसे ब्रोमेलैन, प्रोटीएज , कुछ सिंगल यूज्ड माइक्रो प्लास्टिक्स , प्लास्टिक्स आदि प्रतिबंधित हैं।
सिगरेट और तंबाकू से होने वाली कुल मौतों में यकृत कैंसर का विशिष्ट प्रतिशत बताना संभव नहीं है, यह स्पष्ट है कि तंबाकू का उपयोग यकृत कैंसर के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है और भारत में होने वाली लाखों तंबाकू-संबंधी मौतों में योगदान देता है।
तंबाकू नियंत्रण के प्रयास और जागरूकता बढ़ाना इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या से निपटने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उपलब्ध आंकड़ों और हालिया घटनाओं को देखते हुए, यह कहना सुरक्षित है कि पिछले 5 वर्षों में भारत में कच्ची या जहरीली शराब के सेवन से हजारों लोगों की मौत हुई है। सरकारी आंकड़े केवल 2020 तक के हैं, और उसके बाद भी कई बड़ी घटनाएं हुई हैं जिनमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये आंकड़े संभवतः कम करके आंके गए हैं, क्योंकि कई मौतें रिपोर्ट नहीं की जाती हैं। कच्ची शराब का अवैध उत्पादन और बिक्री एक गंभीर समस्या बनी हुई है, खासकर गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में।
शराबबंदी के आर्थिक प्रभाव जटिल हो सकते हैं और राज्य की अर्थव्यवस्था की संरचना, कार्यान्वयन की प्रभावशीलता और अन्य कारकों पर निर्भर करते हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि शराबबंदी से राजस्व में कमी आ सकती है और अवैध शराब के व्यापार में वृद्धि हो सकती है, जबकि अन्य अध्ययनों में सकारात्मक सामाजिक और स्वास्थ्य परिणाम देखे गए हैं।
हानिकारक उत्पादों से राजस्व कमाने के बजाय लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि क्या सरकारें राजस्व के हितों को स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण से ज़्यादा प्राथमिकता दे रही हैं ? यह सच है कि जिन वस्तुओं से सरकार को या तो बिल्कुल राजस्व नहीं मिलता या बहुत कम मिलता है, उन्हें बंद करने में अक्सर हिचकिचाहट नहीं दिखाई जाती। इसके विपरीत, शराब और सिगरेट जैसे उत्पाद, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, लेकिन सरकार को महत्वपूर्ण राजस्व प्रदान करते हैं, आसानी से बंद नहीं किए जाते। इस स्थिति को देखकर यह तर्क देना स्वाभाविक है कि सरकार के लिए राजस्व प्राथमिकता है, न कि लोगों का स्वास्थ्य।
वित्तीय और नैतिक विचारों के बीच एक जटिल खींचतान है। सरकार का तर्क अक्सर यह होता है कि उस राजस्व का उपयोग अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा (हानिकारक उत्पादों से होने वाली बीमारियों के इलाज सहित), बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिए किया जाता है।
उनका यह भी कहना हो सकता है कि पूर्ण प्रतिबंध से अवैध व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान होगा और गुणवत्ता नियंत्रण भी नहीं रहेगा।
हालांकि, एक स्वस्थ आबादी किसी भी देश की सबसे बड़ी संपत्ति होती है। हानिकारक उत्पादों से होने वाली बीमारियों का बोझ न केवल व्यक्तियों और उनके परिवारों पर पड़ता है, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर भी भारी दबाव डालता है और देश की समग्र उत्पादकता को कम करता है।
सरकार हानिकारक उत्पादों से राजस्व अर्जित करके अप्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए धन जुटा रही है, जबकि इन उत्पादों का सेवन स्वयं ही स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है।
कई लोग यह मानते हैं कि सरकार को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। एक स्वस्थ आबादी अंततः अधिक खुशहाल और अधिक उत्पादक होगी, जो अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद होगा। राजस्व के अन्य स्थायी और स्वास्थ्यकर स्रोत खोजने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
यह कहना सही होगा कि राजस्व एक महत्वपूर्ण कारक है जो सरकार के फैसलों को प्रभावित करता है। इन उत्पादों पर लगाए गए टैक्स सरकार के लिए आय का एक बड़ा स्रोत होते हैं, जिसका इस्तेमाल विभिन्न विकास कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं में किया जाता है। अगर सरकार अचानक से इनका उत्पादन बंद कर दे, तो उसे एक बड़े राजस्व नुकसान का सामना करना पड़ेगा, जिससे अन्य जरूरी सेवाओं पर असर पड़ सकता है।
हालांकि, यह कहना कि सरकार को सिर्फ राजस्व का ध्यान रहता है और स्वास्थ्य की परवाह नहीं है, पूरी तरह से सही नहीं होगा।
सरकारों ने इन उत्पादों के सेवन से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं
- उच्च कर: इन उत्पादों पर भारी टैक्स लगाया जाता है ताकि इनकी कीमत बढ़े और लोग इनका कम सेवन करें।
- स्वास्थ्य चेतावनी: इनके पैकेटों पर स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी छापी जाती है ताकि उपभोक्ताओं को खतरों के बारे में पता चले।
- विज्ञापन पर प्रतिबंध: इनके विज्ञापन पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं ताकि इनका प्रचार न हो।
- जागरूकता अभियान: सरकार समय-समय पर इनके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता अभियान चलाती है। इन कदमों से यह पता चलता है कि सरकार स्वास्थ्य के प्रति भी चिंतित है, लेकिन वह एक साथ कई पहलुओं को ध्यान में रखकर नीतियां बनाती है। अचानक से उत्पादन बंद करने के कुछ नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं, जैसे कि:
- अवैध व्यापार: अगर उत्पादन बंद हो जाए तो इन उत्पादों का काला बाजार पनप सकता है, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान होगा और गुणवत्ता नियंत्रण भी नहीं रहेगा।
1. रोजगार का नुकसान: इन उद्योगों में काम करने वाले लाखों लोगों की रोजी-रोटी छिन सकती है !
यू.एस. ने निषेध के दौरान शराब पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की (1920-1933)। इसके कारण: अवैध उत्पादन और तस्करी , संगठित अपराध में वृद्धि, कर राजस्व में कमी , सार्वजनिक स्वास्थ्य में इतना सुधार नहीं हुआ कि प्रतिबंध के कारण व्यापक समस्याएं उत्पन्न हो सकें।
इसलिए, सरकार एक ऐसा रास्ता अपनाने की कोशिश करती है जिसमें राजस्व भी बना रहे और लोगों के स्वास्थ्य पर भी कम से कम नकारात्मक प्रभाव पड़े। यह एक नाजुक संतुलन है जिस पर लगातार बहस और विचार-विमर्श होता रहता है।
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यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर समाज में लगातार बहस होनी चाहिए और सरकारों पर यह दबाव बनाना चाहिए कि वे नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता दें, भले ही इसके लिए कुछ राजस्व का नुकसान उठाना पड़े। इस स्थिति से ऐसा प्रतीत होता है कि राजस्व प्राथमिक है, और इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
वास्तविकता यह है कि राजस्व और स्वास्थ्य दोनों ही सरकारों के लिए आवश्यक हैं और इन्हें एक दूसरे के विपरीत नहीं देखा जाना चाहिए। एक आदर्श स्थिति वह है जहां सरकारें एक ऐसा संतुलन बनाती हैं जो आर्थिक विकास को बढ़ावा दे और अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करे।
भारत के संदर्भ में
भारत में, स्वास्थ्य सेवा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसमें सरकारें लगातार निवेश कर रही हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का उद्देश्य सभी नागरिकों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है। साथ ही, सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए भी कई कदम उठा रही है ताकि इन और अन्य महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं के लिए धन उपलब्ध हो सके।
यह कहना मुश्किल है कि भारतीय सरकारों के लिए वर्तमान में राजस्व स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण है या इसके विपरीत। सरकार की नीतियां और बजट आवंटन दोनों क्षेत्रों को महत्व देते हुए दिखाई देते हैं। हालांकि, समय-समय पर प्राथमिकताओं में बदलाव हो सकता है जो आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं।
अंततः, एक जिम्मेदार सरकार का लक्ष्य यह होना चाहिए कि वह राजस्व और स्वास्थ्य के बीच एक सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनाए रखे ताकि देश का सतत विकास हो सके और सभी नागरिकों का कल्याण सुनिश्चित हो सके।
(पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर)