जुबिली न्यूज डेस्क
पेरिस स्थित मार्केट रिसर्च फर्म इप्सोस ग्रुप द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन ने यह दर्शाया है कि भारत में लोग फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं (Fake News and Misinformation) को पहचानने में अन्य देशों की तुलना में कम सक्षम हैं। यह रिपोर्ट चार देशों – भारत, अमेरिका, यूके और फ्रांस – में 8,800 लोगों पर किए गए एक अध्ययन पर आधारित है।
अध्ययन का मुख्य उद्देश्य यह समझना था कि आज के डिजिटल और सोशल मीडिया युग में लोग कितनी सटीकता से असली और नकली खबरों के बीच फर्क कर पाते हैं।
कैसे हुआ अध्ययन?
इस रिसर्च में प्रतिभागियों को कुछ हेडलाइन दिखाई गईं, जिनमें से कुछ विश्वसनीय समाचार स्रोतों से ली गई असली खबरें थीं, और बाकी झूठी खबरें, जिन्हें फैक्ट-चेक वेबसाइटों से लिया गया था।
इन हेडलाइन को इस तरह से प्रस्तुत किया गया कि वह सोशल मीडिया पोस्ट जैसी दिखें – बिना किसी स्रोत, लाइक या कमेंट के। उद्देश्य था कि प्रतिभागी केवल हेडलाइन के आधार पर फैसला लें कि खबर सच्ची है या झूठी।
भारतीयों में फर्जी खबरों को सच मानने की प्रवृत्ति सबसे अधिक
रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय प्रतिभागियों ने सबसे ज्यादा बार फर्जी खबरों को सच माना। उनकी क्षमता असली और नकली खबरों के बीच अंतर करने में अन्य देशों से कमज़ोर पाई गई।
कारण: डिफ़ॉल्ट ट्रस्ट और भावनात्मक प्रतिक्रिया
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीयों में एक प्रवृत्ति है कि वे डिफ़ॉल्ट रूप से खबरों पर भरोसा कर लेते हैं, खासकर अगर वह खबर सकारात्मक भावना पैदा करती है। यानी, अगर कोई हेडलाइन देशभक्ति, प्रगति या गौरव को दर्शाती है, तो भारतीय बिना सवाल किए उस पर भरोसा कर लेते हैं।
उदाहरण के तौर पर, “भारत प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में नंबर 1 पर” – जैसी हेडलाइन पर लोग तुरंत विश्वास करते हैं, भले ही वह सच न हो।
भारत में क्यों ज्यादा फैलती हैं झूठी खबरें?
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लोग भावनात्मक रूप से चार्ज्ड कंटेंट के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
जब कोई खबर क्रोध, गौरव या डर जैसी भावनाएं जगाती है, तो लोग उसका आलोचनात्मक मूल्यांकन नहीं करते, बल्कि तुरंत उस पर प्रतिक्रिया देते हैं और उसे शेयर कर देते हैं।
डिजिटल एल्गोरिदम और वायरलिटी: समस्या और बढ़ी
इप्सोस रिपोर्ट इस बात को भी उजागर करती है कि कैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म के एल्गोरिदम, जो कि वायरल होने को प्राथमिकता देते हैं, वो बिना किसी मंशा के गलत सूचना को बढ़ावा देते हैं।सनसनीखेज या विवादित कंटेंट को एल्गोरिदम ज्यादा दिखाते हैं, जिससे वह कंटेंट वायरल हो जाता है – चाहे वह सच हो या झूठ।
तुलना: अमेरिका, यूके और फ्रांस बनाम भारत
इस अध्ययन में पाया गया कि:
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यूके के प्रतिभागी सबसे अधिक संदेहशील थे, खासकर नकारात्मक खबरों के मामले में।
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अमेरिकी प्रतिभागी भी गलत सूचनाओं से प्रभावित होते हैं, लेकिन वे नकारात्मक खबरों को बिना जांच के मानने की अधिक संभावना रखते हैं।
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फ्रांस में जागरूकता का स्तर तुलनात्मक रूप से संतुलित था।
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भारत में सकारात्मक झूठी खबरों को अधिक स्वीकार किया गया, और नकारात्मक खबरों पर भी अपेक्षाकृत कम सवाल उठाए गए।
भारतीयों में सच्चाई पहचानने की क्षमता
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि जब भारतीयों को सिर्फ असली खबरें दिखाई गईं, तो उन्होंने उन्हें सही तरीके से पहचान लिया। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीयों में सच्चाई को पहचानने की आधारभूत समझ है, लेकिन भावनात्मक और डिजिटल कारकों की वजह से वे भ्रमित हो जाते हैं।
विवेक गुप्ता की टिप्पणी
इप्सोस इंडिया के प्रबंध निदेशक विवेक गुप्ता ने कहा,“भारतीय आम तौर पर सकारात्मक खबरों पर कम सवाल उठाते हैं। यही कारण है कि अच्छी लेकिन झूठी खबरें अधिक वायरल होती हैं।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत में नकारात्मक खबरों को लेकर भी संदेह की प्रवृत्ति कमजोर है, और इसीलिए गलत सूचनाएं तेजी से फैलती हैं।
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भावनाओं में नहीं, तथ्यों में रखें भरोसा
भारत जैसे देश में, जहाँ डिजिटल मीडिया की पहुंच तेज़ी से बढ़ रही है, वहां फर्जी खबरें समाज को गुमराह कर सकती हैं।यह रिपोर्ट हमें चेतावनी देती है कि हमें सिर्फ अपनी भावनाओं के आधार पर खबरों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि तथ्यों की पुष्टि करना ज़रूरी है। “सच जानिए, सवाल उठाइए – और केवल वही साझा कीजिए जो सच हो!”