Friday - 5 January 2024 - 7:30 PM

अंधविश्वास और जादू टोने के जाल में ऐसे फंसी हुई है भारतीय राजनीति


प्रीति सिंह

बात चाहे चाँद पर जाने की हो या 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने की , हमारे नेता बड़ी बड़ी बैट करने में कभए पीछे नहीं रहे । मगर इसके साथ ही साथ वे अंधविश्वास और जादू टोन की दुनिया से भी कभी बाहर नहीं निकल सके हैं । हमारे देश की राजनीति अभी भी अंधविश्वास के जाल में फंसी हुई है। ऐसे कई उदाहरण मौजूद है जब नेता सत्ता बचाने के लिए या पाने के लिए तंत्र-मंत्र और बाबाओं की शरण में पहुंचे हैं। नेताओं का चरित्र भी हाथी के दांत जैसा है-मतलब खाने के और, दिखाने का और। ये बड़े-बड़े नेता मंच से भाषण देते हैं तो विकास, तकनीक और देश को एक सुपर पावर बनाने की बात खूब जोर-शोर से करते हैं, लेकिन यही नेता जब मंच पर नहीं होते हैं तो बाबाओं से लेकर तंत्र-मंत्र और टोटकों के चक्कर में न जाने क्या-क्या नहीं करते।

भारतीय राजनीति में शुक्रवार से काले जादू की चर्चा हो रही है। कर्नाटक के विधानसभा में काले जादू पर चर्चा हुई। दरअसल सीएम एचडी कुमारस्वामी के भाई और कर्नाटक के मंत्री रेवन्ना के हाथ में नींबू देखा गया। जिसके बाद बीजेपी के विधायकों ने उन पर चुटकी लेना शुरू कर दिया। बीजेपी के विधायकों ने आरोप लगाया कि वो अब सरकार बचाने के लिए काला जादू कर रहे हैं। इस पर मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने जवाब देते हुए कहा-

“उन्होंने मेरे भाई पर नींबू लेकर आने का आरोप लगाया। बीजेपी हिंदू धर्म में विश्वास करती है, फिर भी उन पर आरोप लगा रही है। वह अपने साथ नींबू लाए और मंदिर गए, लेकिन इन लोगों ने उन पर काला जादू करने का आरोप लगाया। क्या काले जादू से सरकार को बचाया जा सकता है?”

इसमें कोई शक नहीं कि भारत में आज भी आस्था के नाम पर काला जादू, टोना-टोटका और दूसरे अंधविश्वासों को खत्म करने के प्रयासों की मुखालफत करने वालों की अच्छी खासी तादाद है। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि अंधविश्वास केवल भारत में ही नहीं है, बल्कि अमेरिका में भी लोग सृष्टिवाद को पसंद करते हैं, जो विज्ञान और तर्कवाद को चुनौती देता है। भारतीय राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। शुरुआत कर्नाटक से ही करते हैं।

सिद्धारमैया ने कार पर कौवा बैठने की वजह से बदली थी कार

जून 2016 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने एक कौवे की वजह से अपना कार बदल दी थी। बेंगलुरु मिरर की खबर के मुताबिक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की गाड़ी पर एक कौवा बैठ गया, जिसके बाद उस कौवे को शनि का प्रतीक मानते हुए मुख्यमंत्री के लिए नई गाड़ी खरीदने का आदेश जारी कर दिया गया। और तो और जिस कार को खरीदने का आदेश दिया गया था, उसकी कीमत 35 लाख रुपए थी।

चर्चा में रहा था येदियुरप्पा का ‘काला जादू’

कर्नाटक की राजनीति में काला जादू नया नहीं है। यहां के नेताओं को इन सब पर बहुत विश्वास है। भाजपा के वरिष्ठï नेता और पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को कैसे भूल सकते हैं। येदियुरप्पा ने तो यहां तक कह दिया था कि काले जादू की मदद से विरोधी उन्हें मारने की साजिश कर रहे हैं और उनकी सत्ता छीनना चाहते हैं।

काले जादू का तोड़ निकालने के लिए येदियुरप्पा तीन रातों तक बिना सोए और उसी हालत में नदी में खड़े भी हुए थे।

शिवराज ने अपने कैबिनेट में 4 बाबाओं को दी थी जगह

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी बाबाओं के प्रति मोह दिखता था। मध्य प्रदेश की सत्ता में जब शिवराज सिंह थे तो उन्होंने 5 संत बबाओं को कैबिनेट में शामिल होने का न्योता दिया था।

ये 5 बाबा नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद महाराज, कंप्यूटर बाबा, भैय्यूजी महाराज और पंडित योगेंद्र महंत थे। इनमें से भैय्यूजी महाराज ने शिवराज सिंह का न्योता ठुकरा दिया था। बाकी चारों बाबाओं को कैबिनेट में शामिल किया। उस समय ऐसी चर्चा हुई कि यह फैसला अंधविश्वास से अधिक वोट बैंक की राजनीति का है।

पूर्व रेलमंत्री पवन बंसल का ‘बलि का बकरा’

पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल तो याद ही होंगे। मई 2013 में बंसल रेलवे घूसकांड में फंसे थे। इससे समस्या से बचने के लिए किसी बाबा या तांत्रिक के कहने पर उन्होंने खूब टोने-टोटके का सहारा लिया था।

इतना ही नहीं उन्होंने तो बकरे की पूजा भी की थी और उसकी बलि चढ़ाने की पूरी तैयारी थी। उनका मानना था कि अगर वह बकरे की बलि दे देते हैं तो वह सभी मुसीबतों से बच सकते हैं। खैर, बंसल का कोई टोना-टोटका उनके काम नहीं आया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

छत्तीसगढ़ विधानसभा को टोटके से बांधने पहुंचा था बाबा

जुलाई 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा में माथे पर सिंदूर और भभूत लगाए और ढेर सारी मालाएं पहने एक बाबा घूमता दिखा तो लोग हैरान रह गए। इस बाबा का असली नाम राम लाल कश्यप है। मूल रूप से वह जांजगीर जिले के पामगढ़ के पास मुलमुला का रहने वाला है।

उस बाबा ने जब अपने आने का मकसद बताया तो लोगों की हैरानी और बढ़ गई। बाबा ने कहा कि वह विधानसभा को संकल्प से बांधने आए हैं और खुद को भाजपा का मंडल अध्यक्ष बताया। संकल्प इस बात का कि इस बार भी भाजपा की सरकार बने और यही संकल्प लेकर वह बाबा अब अमरनाथ जा रहे हैं। सुनिया बाबा ने क्या-क्या कहा।

पूर्व पीएम नरसिम्हा राव भी थे अंधविश्वासी

पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव भी अंधविश्वासी थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वह अपने ज्योतिष सलाहकार तांत्रिक चंद्रास्वामी की बात को बहुत तव्वजों देते थे।


राजीव गांधी सरकार में चर्चित हुए तांत्रिक चंद्रास्वामी को कौन नहीं जानता। ये वही बाबा हैं, जिनके सामने राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहने के दौरान नरसिम्हा राव सिर झुकाते थे।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तो उन्हें कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में विश्व धर्मायतन संस्थान आश्रम बनाने के लिए जमीन तक दे दी थी। इतना ही नहीं राजीव गांधी का पूरा मंत्रिमंडल ही उनका भक्त था, लेकिन यही वो चंद्रास्वामी हैं जिनका नाम राजीव गांधी हत्याकांड से भी जुड़ा।

इस तांत्रिक में कितनी ताकत थी इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इनके सामने राजनेता से लेकर अभिनेता तक नतमस्तक हो जाया करते थे।

राजनेताओं के देवरहा बाबा

यूपी के देवरिया जिले के देवरहा बाबा के भक्तों में बड़े-बड़े नेता शामिल थे। देवरहा बाबा की महिमा को आप इस कदर समझ सकते हैं कि उनके दर पर जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, शिवराज सिंह चौहान और विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल जैसे दिग्गज माथा टेकते थे।

देवरहा बाबा लोगों के सिर पर पैर रखकर आशीर्वाद दिया करते थे। यह भी कहा जाता है कि जब आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की करारी हार हुई थी, तो वह देवरहा बाबा की शरण में गई थीं।

उन्हें बाबा ने अपने हाथ के पंजे से आशीर्वाद दिया। यह माना जाता है कि इसी के बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बदलकर हाथ का पंजा कर दिया। 1980 में जब दोबारा इंदिरा गांधी प्रचंड बहुमत से जीतीं और देश की प्रधानमंत्री बनीं तो उनका विश्वास देवरहा बाबा में और बढ़ गया।

अखिलेश यादव भी हैं अधंविश्वासी

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पांच साल के कार्यकाल में एक बार भी नोयडा नहीं गए। इसके पीछे उनका अंधविश्वास था। ऐसा कहा जाता है कि यूपी की राजनीति में किसी मुख्यमंत्री का नोएडा आना अपशगुन माना जाता था। हालांकि वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अपशगुन को तोड़ दिया है।

अखिलेश यादव नोएडा में कोई बड़ी बैठक होती थी तो वह खुद नहीं आते थे, किसी को भेज देते थे। नतीजा, आज अखिलेश यादव की सरकार यूपी की सत्ता से बाहर हो गई है।

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