अंशु यादव
बीते दिनों क्वाड नेतृत्वकर्ताओं के शिखर सम्मलेन में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के 2030 तक 500 गीगावॉट के गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता स्थापित के लक्ष्य के संकल्प को दोहराते हुए हरित ऊर्जा के संकल्प को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत ने हरित परिवर्तन का मार्ग चुना है क्योंकि वह प्रकति के प्रति प्रेम की परम्परा से निर्देशित है।
आज पूरी दुनिया में जिस तरह से जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों के आलोक में ऊर्जा संकट की स्थिति के बारे में चर्चा बढ़ती जा रही है। ग्लासगो में कॉप 26 शिखर सम्मेलन जैसे वैश्विक मंथन मंच पर भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन पर पंचामृत की बात रखी जिसमें भारत 2030 तक अपने 50% ऊर्जा आवश्यकता नवीकरणीय ऊर्जा से पूरा करेगा। साथ ही कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक एक अरब टन कम करना है जिससे मूल लक्ष्य 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन को हासिल करना है।
2030 तक भारत अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेंसिटी को 45% से भी कम करेगा। यह पंचामृत जलवायु परिवर्तन के साथ साथ भारत की ऊर्जा सुरक्षा में एक अभूतपूर्व योगदान साबित होगा।
यदि बात ऊर्जा सुरक्षा की की जाये तो सरल शब्दों में ऊर्जा सुरक्षा सुग्राह कीमतों पर ऊर्जा स्रोतों के निर्बाध उपलब्धता है। इस उपलब्धता की निर्बधता को प्राप्त करने के लिए भारत द्वारा हरित ऊर्जा की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है जहाँ हरित ऊर्जा वह ऊर्जा है जो पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती और प्रकृति से नवीकरणीय होती है। ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और गैर जीवाश्म ऊर्जा पर भारत सरकार की ओर से लगातार प्रयास किया जा रहे हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा में मुख्यतः सौर ऊर्जा, पवन ,जल ,ज्वार आदि से उत्पन्न होते वाली ऊर्जा शामिल है। यह स्रोत न केवल प्रदूषण रहित है उसे पुन उपयोग किया जा सकता है और एक लंबे समय तक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। इसके अलावा जब इसमें जो बड़े हाइड्रो पावर और न्यूक्लियर पावर इसमें शामिल होते हैं तो इसे ही गैर जीवाश्म ऊर्जा कहते हैं।
कई राष्ट्रों द्वारा यह आशंका ज़ाहिर की जाती है कि क्या भारत इस लक्ष्य को प्राप्त कर पाएगा? क्योंकि भारत की ऊर्जा आवश्यकता के निर्भरता मुख्यतः तापीय ऊर्जा यानी कोयल पर निर्भर है और भारत सिर्फ नवीकरणीय ऊर्जा पर क्यों ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा? सवाल उत्पन्न करने वालों को यह बात समझना आवश्यक हो जाता है कि भारत एक विकासशील देश है वह लगातार ऊर्जा की बढ़ती मांग को एकाएक नवीकरणीय ऊर्जा से स्थापन्न नहीं कर सकता। आंकड़ों पर दृष्टिपात किया जाये तो 2017 में भारत की ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 66% कोयल द्वारा उत्पादित था जो अब घटकर 55% ही रह गया है भारत में बढ़ती ऊर्जा मांग को वैकल्पिक स्रोतों की और मोड़ने को प्राथमिकता दे रहा। अब तक वर्ष 2024 में भारत में 15 गीगावॉट क्षमता हासिल कर ली है। भारत हर साल 46 गीगावॉट क्षमताका योगदान कर इस दिशा में सकारात्मक भूमिका निभा रहा है।
नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में चीन, अमेरिका, और ब्राजील के बाद भारत चौथ बड़ा राष्ट्र है। 2017 से 2024 के बीच जहां कोयल उत्पादन में गिरावट आई है वही नवीकरणीय ऊर्जा में 18 से 33 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए 240 गीगावॉट की ऑपरेशनल क्षमता रखता है और 95 गीगावॉट पर काम जारी है। वर्ष 2023 में 113 बिलियन यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन भारत द्वारा किया गया और भारत विश्व में तीसरा सौर ऊर्जा उत्पादन राष्ट्र बन गया है। नीति आयोग के आंकड़े के अनुसार में 2024 तक सौर ऊर्जा भारत की कुल स्थापित बिजली 442 गीगावॉट का 18% बनती है जो एक सराहनीय प्रयास है।
भारतीय नेतृत्व द्वारा भी लगातार अंतर्राष्ट्रीय मंचों से हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में कई पहल की है। अंतर्राष्ट्रीय सौर संगठन में भारत के नेतृत्व, वैश्विक जैव-ईंधन गठबंधन तथा भारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एवं जलवायु भागीदारी इसके यथार्थ उदहारण है। वहीँ राष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रयासों में मुख्त: प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना, हरित ऊर्जा गलियां, राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन, इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और पुनर्निर्माण, सूर्य घर, मुक्त बिजली योजना, शूटिंग सोलर क्रांति जैसी योजनाएं हरित ऊर्जा की ओर भारत के संकल्प को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। मिशन लाइफ भी संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्षण को प्राप्त करने के लिए जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और टिकाऊ जीवन को बढ़ावा देने के लिए भारत की वैश्विक पहल है।
भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ाने हेतु वचनबद्ध है। भारत के हरित ऊर्जा संकल्प को सफल बनाने में भारत को परियोजना निर्माण को चरणवध तरीके से लागू करना तथा इस क्षेत्र में और शोध और विकास को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। भारत ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए हरित भविष्य की ओर बढ़ रहा है।
(लेखिका दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के रक्षा अध्यययन विभाग में ICSSR- Doctoral Fellow हैं)