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एसिड हमलों को रोकने में कितनी सफल है सरकार

न्यूज डेस्क

पिछले एक पखवारे से अभिनेत्री दीपिका पादुकोड़ की फिल्म छपाक चर्चा में है। यह फिल्म सिनेमा घर में आ चुकी है। इस फिल्म ने एक बार फिर एसिड हमले जैसी ज्वलंत समस्या को चर्चा में ला दिया है। इसके साथ ही चर्चा शुरु हो गई है कि ऐसी घटनाएं रोकने में सरकार कितनी सफल है।

फिल्म छपाक एसिड हमले की शिकार बनी लक्ष्मी अग्रवाल की आपबीती है। वर्ष 2005 में लक्ष्मी पर एसिड से हमला किया गया था। इस घटना ने देश ही नहीं विदेश तक में सुर्खिया बटोरी थी। इस पर खूब शोर-शराबा हुआ था और ऐसी घटनाएं रोकने के लिए कानून भी बना, बावजूद इसके एसिड अटैक की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग सका है।

देश में बेटियां किस कदर एसिड हमले की शिकार हो रही है इसकी बानगी बीते दिसंबर माह में हुई घटनाओं से देखा जा सकता है। बंगलुरू में कुछ असामाजिक तत्वों ने एक महिला बस कंडक्टर पर एसिड फेंक दिया तो उसके दो दिन के भीतर ही मुंबई में एक युवती पर ऐसा ही हमला हुआ। उसी समय उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भी एक युवती पर एसिड हमला किया गया।

दरअसल ये घटनाएं दिखाती हैं कि उच्चतम न्यायालय और सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद एसिड हमलों की घटनाएं थमने की बजाय बढ़ती ही जा रही हैं।

वहीं नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट को देखे तो पता चलता है कि ऐसी घटनाएं कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही हैं। आम तौर पर जागरुक और शांत समझा जाने वाला पश्चिम बंगाल, एसिड हमलों के मामले में पूरे देश में पहले स्थान पर है।

इससे पहले साल 2016 में भी पश्चिम बंगाल पहले स्थान पर था। उस साल यहां एसिड अटैक की 83 घटनाएं हुई थीं। हालांकि साल 2017 में ऐसे मामलों में कुछ कमी आई और कुल 54 मामले दर्ज हुए, लेकिन इस साल 53 मामलों के साथ पश्चिम बंगाल ने यूपी को काफी पीछे छोड़ दिया है। उत्तर प्रदेश में ऐसे 43 मामले दर्ज हुए।

इन घटनाओं पर अंकुश न लगने की वजह गिनाते हुए समाजशास्त्रियों का कहना है कि ऐसे मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने की दर बेहद कम होना इस पर अंकुश नहीं लगने की एक प्रमुख वजह है। ज्यादातर मामलों में अभियुक्त कानूनी खामियों का लाभ उठाकर या तो बच निकलते हैं या फिर उनको मामूली सजा होती है।

क्या है आंकड़े

भारत में साल 2014 में 203 एसिड हमले की घटनाएं हुई थीं जो अगले साल यानी 2015 में बढ़ कर 222 तक पहुंच गईं। इसी तरह 2016 में 283 मामले एसिड अटैक के दर्ज किए गए थे। हालांकि वर्ष 2017 में ऐसी घटनाओं में थोड़ी कमी आई। इस साल 252 मामले दर्ज हुए।

वहीं वर्ष 2018 में ऐसे 228 मामले दर्ज हुए हैं, लेकिन एसिड हमलों के पीडि़तों के पुनर्वास के लिए काम करने वाले संगठनों का

दावा है कि यह तादाद असली घटनाओं के मुकाबले बहुत कम है। ऐसे कई मामले दर्ज ही नहीं होते। इन संगठनों का कहना है कि देश में रोजाना एसिड हमले की औसतन एक घटना होती है।

कब हुआ कानून में बदलाव

देश में एसिड हमले की घटनाएं पहले से होती रही है, लेकिन साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक की घटनाओं को गंभीर अपराध माना था। दरअसल 2013 में पीडि़ता लक्ष्मी अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी। इस यचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तब सरकार, एसिड विक्रेता और एसिड हमलों के पीडि़तों के लिए दिशा-निर्देश जारी किया था।

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उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देश के अनुसार एसिड सिर्फ उन दुकानों पर ही बिक सकता है जिनको इसके लिए पंजीकृत किया गया है, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी आज भी बाजार और दुकानों में खुलेआम एसिड बिक रहा है।

उस याचिका पर फैसले के बाद सरकार ने भारतीय दंड संहिता में 326 ए और 326 बी धाराएं जोड़ी थीं। इन धाराओं के तहत एसिड हमले को गैर-जमानती अपराध मानते हुए इसके लिए न्यूनतम दस साल की सजा का प्रावधान रखा गया था।

पुनर्वास की कोशिश

सरकार ने वर्ष 2016 में दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम में संशोधन करते हुए उसमें एसिड हमलों के शिकार लोगों को भी शारीरिक दिव्यांग के तौर पर शामिल करने का प्रावधान किया था। इससे शिक्षा और रोजगार में उनको आरक्षण की सुविधा मिलती है। ऐसे लोगों को सरकारी नौकरियों में तीन फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता है।

वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि हमलावरों के खिलाफ और सख्त कार्रवाई नहीं करने और पीडि़तों के प्रति और ज्यादा उदारता नहीं दिखाने तक ऐसे हमलों पर अंकुश लगाना संभव नहीं है।

एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 में दर्ज ऐसे 203 मामलों में से महज 11 में ही अभियुक्तों को सजा मिली थी। वर्ष 2018 में दर्ज 228 मामलों में से महज एक ही अभियुक्त को सजा मिल सकी है।

वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एसिड हमलों की शिकार लक्ष्मी अग्रवाल का कहना है कि, “समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता भी ऐसे अपराधों के लिए जिम्मेदार है। समाज में शुरू से ही लड़कों के मन में यह भावना भर दी जाती है कि वह लोग महिलाओं से श्रेष्ठ हैं।”

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