Tuesday - 9 January 2024 - 2:16 PM

कितना जायज है इतिहास के साथ सियासत!

प्रीति सिंह

वर्तमान में सरकारों का सबसे ज्यादा जोर इतिहास बदलने पर है। इतिहास को देश में हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सत्तासीन सरकार अतीत को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है।

पिछले साल राजस्थान में जब बीजेपी सत्ता में थी तो राजस्थान बोर्ड की किताबों में सावरकर को गांधी से बड़ा नायक दर्शाने और राजस्थान यूनिवर्सिटी की किताबों में तथ्यों के विपरीत महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी की लड़ाई का विजेता बताने की खबरें सुर्खियां बनीं थी।

अब एक बार फिर राजस्थान बोर्ड की किताबें सुर्खियों में है। राजस्थान की स्कूली किताबों में विनायक दामोदर सावरकर के नाम के आगे से ‘वीर’ हटा लिया गया है। यहां कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के छह महीनों के भीतर स्कूली पाठ्यक्रमों में बदलाव किए हैं। इसी के तहत नई किताबों में सावरकर का नाम भी बदल दिया गया है।

यह है मामला

राजस्थान बोर्ड की 12वीं कक्षा की इतिहास की नई किताब में सावरकर को ‘विनायक दामोदर सावरकर’  कह कर संबोधित किया गया है, जबकि वसुंधरा राजे सरकार के दौरान की किताब में सावरकर को ‘वीर’  सावरकर बताया गया था। किताब में भारत की आजादी की लड़ाई में सावरकर के योगदान का विस्तार से जिक्र किया गया था।

अब, कांग्रेस के कार्यकाल में छपी नई किताब में बताया गया है कि कैसे सेल्युलर जेल में अंग्रेजों की यातना झेलने के बाद सावरकर ने खुद को ‘पुर्तगाल का बेटा’  बताया और भारत छोड़ो आंदोलन व देश विभाजन का विरोध किया। नई किताबों में यह भी बताया गया हैं कि महात्मा गांधी की हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे के साथ सावरकर पर भी मुकदमा चलाया गया था, हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया।

इसके अलावा नई किताबों में महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारियों में भी बदलाव किया गया है। भाजपा सरकार के समय की किताबों में बताया गया था कि मुगल शहंशाह अकबर हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप को नहीं हरा पाए थे। पुरानी किताब के मुताबिक मुगल सेना भयभीत थी, इसलिए उसने ने मेवाड़ की सेना का पीछा नहीं किया था, लेकिन नई किताब कहती है कि हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप अपने घोड़े ‘चेतक’ को मरता हुआ छोड़कर चले गए थे। वहीं, नई किताबों में इसका जिक्र नहीं है कि उस युद्ध में जीत किसकी हुई थी।

क्या हो इतिहास का वास्तविक उद्देश्य

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि इतिहास के साथ सियासत हो रही है। पहले भी इतिहास और इतिहास लेखन के साथ राजनीति हुई है, लेकिन वर्तमान में राजनीतिक दल अपने हिसाब से इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे हैं।

दरअसल इतिहास का वास्तविक उद्देश्य अतीतोन्मुखी बनाना नहीं, बल्कि भविष्योन्मुखी बनाना होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। राजनेता इतिहास को राजनीतिक अफवाह और प्रचार का हथकंडा बनाने पर तुले हुए हैं। अतीत के अन्यायों की झूठी कहानियों के जरिए सुनियोजित तरीके से हमारी नई पीढिय़ों में घृणा, द्वेषभाव और सांप्रदायिक आक्रोश भरा जा रहा है।

महाराणा प्रताप के साथ हुई नाइंसाफी

दो माह पूर्व बीजेपी नेता व केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप के साथ नाइंसाफी की है। उन्होंने कहा था कि अकबर को द ग्रेट कहा जाता है लेकिन महाराणा प्रताप को महान क्यों नहीं कहा जाता है। राजनाथ सिंह ने कहा था कि महाराणा प्रताप राष्ट्रनायक थे।

उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी कई बार सार्वजनिक मंच से कहा चुके हैं कि अकबर आक्रांता था और असली हीरो महाराणा प्रताप हैं। योगी ने कहा युवा जितनी जल्दी इस सच को स्वीकार कर लेंगे उतनी जल्दी देश को सारी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

ऐसे बयानों के बाद कई सवाल जेहन में आता है। क्या हमारी सरकारें इतिहास को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर लिखवा रही हैं?  क्या अकबर आक्रांता थे? क्या महाराणा प्रताप अकबर से ज्यादा महान थे? क्या हल्दी घाटी में अकबर की हार हुई थी?

राजनीतिक दलों के लिए इतिहास क्यों है महत्वपूर्ण

जॉर्ज ऑरवेल ने अपने उपन्यास 1984 में लिखा है कि जिसका वर्तमान पर नियंत्रण होता है उसी का अतीत पर भी नियंत्रण होता है।
इसका मतलब साफ है कि आप अतीत को मनमाफिक बना सकते हैंं, क्योंकि वर्तमान में आपको इसकी जरूरत पड़ती है। भारत में ऐसा ही हो रहा है। इतिहास को यहां हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सत्तासीन सरकार अतीत को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है। सारा सियासत वोट बैंक को लेकर है।

वरिष्ठ पत्रकार एस. के. पांडेय कहते हैं कि आज की तारीख में राजनीतिक दलों की जरूरत यही है कि वो अपने मन का इतिहास पढ़ाएं। मतलब राजस्थान में कांग्रेस को ऐसी जरूरत थी तो कर दिया। बीजेपी को जो जरूरत महसूस हो रही है, वह उसे पढ़ा रही है। हो सकता है आने वाले दिनों में देश अन्य हिस्सों में भी ऐसा देखने को मिल सकता है। दरअसल इतिहास के तथ्यों से इन्हें कोई मतलब नहीं है। इनकी राजनीतिक जरूरते सच-झूठ जिससे भी पूरी हो रही है, वह वही कर रहे हैं।

इतिहास के साथ छेड़छाड़ घातक

इतिहास के प्रवक्ता डा.अभिषेक पांडेय कहते हैं इतिहास के मामले में मनमर्जी के झूठ फैला देना घातक हो सकता है। यह किसी सभ्य और जागरूक समाज की निशानी नहीं है। अपने ही ऐतिहासिक महापुरुषों और महास्त्रियों का चरित्र-हनन करके हमारे यहां पीढ़ियों को कुंठित मानसिकता का बनाया जा रहा है।

समाज में द्वेष और विभाजन पैदा करने वाली ऐतिहासिक शख्सियतों का अतिश्योक्तिपूर्ण महिमामंडन भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। यह लोगों की स्मृतियों से खेलने का सुनियोजित प्रयास है। हो सकता है भविष्य में ऐतिहासिक रिकॉर्डों से भी छेड़छाड़ की जाए। आधिकारिक पाठ्य पुस्तकों को भी अजीबो-गरीब नकारात्मक तथ्यों से भर दिया जाए।

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