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Lok Sabha Election : जानें शाहजहांपुर लोकसभा सीट का इतिहास

पॉलिटिकल डेस्क

स्वतंत्रता आन्दोलन के समय लखनऊ और बरेली में बीच शाहजहांपुर का बहुत बड़ा योगदान रहा था। अपने आन्दोलन के लिए धन एकत्र करने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल ने काकोरी जा रही रेलगाड़ी में डाका डाला, जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फांसी की सजा सुनाई गयी और 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर के जेल में फांसी दी गयी।

जिले का सबसे पुराना शहर तिलहर, जिसे राजपूत तिरलोक चन्द्र ने बसाया था, को तीर कमान नगर भी कहते हैं, क्योंकि यहां से सेना के लिए तीर बना कर भेजे जाते थे। नाजिम श्री मंगल खान ने तिलहर के पास ही मंसूरपुर गांव में किला बनवाया था।


शाहजहांपुर जिले का जिला मुख्यालय और नगर निगम शाहजहांपुर में है। शाहजहांपुर घराने ने कई मशहूर सरोद वादक, जैसे, इनायत अली, उस्ताद मुराद अली खान, उस्ताद मोहम्मद अमीर खान, पंडित राधिका मोहन मोइत्रा, पंडित बुद्धा देव दास गुप्ता, और वर्तमान में अमजद अली खान दिए हैं।

मुगल शासक जहांगीर की सेना एक सैनिक दरिया खान के बेटों, दिलीर खान और बहादुर खान, ने इस जिले की स्थापना की थी। दरिया खान्दर से ताल्लुक रखता था, जो आज अफगानिस्तान कहलाता है।

दिलीर खान और बहादुर खान दोनों ही शाहजहां की फौज में ऊंचे पदों पर थे। दोनों भाइयों ने मिल कर कठेरिया राजपूतों के विद्रोहों को दबा दिया। उनके इस काम से खुश हो कर शाहजहां ने उन्हें 17 गांव के साथ वहां किला बनाने की अनुमति दी।

काकोरी काण्ड के मुख आरोपियों, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लहरी में से रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला खान दोनों शाहजहांपुर की ही धरती पर जन्मे थे।

आबादी/ शिक्षा

रामपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें सुआर, चमरौआ, बिलासपुर, रामपुर और मिलक शामिल है। शाहजहांपुर जिले का क्षेत्रफल 4575 वर्ग किलोमीटर है और 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसख्या 3006538 है। यहां की साक्षरता दर 62 प्रतिशत है और महिला पुरुष अनुपात 865 महिलायें प्रति 1000 पुरुषों पर है।

रामपुर लोकसभा क्षेत्र में करीब 1,979,294 मतदाता है। इसमें महिला मतदाता 879,139 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,100,020 है।

राजनीतिक घटनाक्रम

1962 के लोकसभा चुनाव के दौरान ये सीट वर्चस्व में आई, शुरुआती तीन चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस ही विजय रही, लेकिन 1977 में चली सरकार विरोधी लहर में कांग्रेस यहां पर टिक नहीं पाई थी और जनता दल ने यहां से जीत हासिल की थी। हालांकि, 3 साल बाद जब देश में फिर चुनाव हुए तो कांग्रेस ने यहां वापसी की। 1980, 1984 में कांग्रेस के जितेंद्र प्रसाद एक बार फिर बड़े अंतर से जीत हासिल कर यहां जीते।


1990 के आसपास जब देश में राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, तो बीजेपी ने भी यहां पैर पसारे। 1989, 1991 के चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की। राम मंदिर आंदोलन के बाद बनी समाजवादी पार्टी ने 1996 के चुनाव में इस सीट से जीत दर्ज की, लेकिन 1998 में एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी यहां से जीत कर आई।

हालांकि, एक बार फिर 1999 में चुनाव हुए और जितेंद्र प्रसाद जीत कर सांसद बने। 2001 में उनका निधन हो गया, जिसके बाद 2004 के चुनाव में उनके बेटे जितिन प्रसाद इस सीट से चुनाव जीते। 2009 का चुनाव समाजवादी पार्टी के खाते में गया, लेकिन 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर विजयी हुई। वर्तमान में यहां की सांसद कृष्णा राज है।

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