Friday - 5 January 2024 - 7:46 PM

Lok Sabha election : जानें मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का इतिहास

 

पॉलिटिकल डेस्क।

सहारनपुर डिवीजन का मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र जिला उत्तर प्रदेश का तीसरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है । इस क्षेत्र में गन्ने की भरी उपज के कारण इसे भारत का चीनी का कटोरा भी कहते हैं। यह गंगा-यमुना के उपजाऊ दोआब क्षेत्र में स्थित है और देश की राजधानी दिल्ली के बहुत करीब होने की वजह से यह उत्तर प्रदेश का सबसे विकसित और समृद्ध शहर है।

मुजफ्फरनगर अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है। यह शहर दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारा और अमृतसर दिल्ली कोलकाता औद्योगिक गलियारा का अंश है। यह दिल्ली-हरिद्वार/देहरादून राजमार्ग-58 के बीच में ही स्थित है ।

मुजफ्फनगर सन 1633 में प्राचीन शहर सर्वात के पास सैयद मुजफ्फर खान के द्वारा शाहजहां के शासन काल में बसाया गया था। ब्रिटिश काल के दौरान यह संयुक्त प्रान्त आगरा और ओउध या अवध के मेरठ डिवीजन क अंतर्गत आता था।

आबादी/ शिक्षा

2,991 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बसा ये शहर राजधानी दिल्ली से 125 किलोमीटर और चंडीगढ़ से लगभग 200 किलोमीटर दूर है।
2011 की जनगणना के अनुसार, मुजफ्फरनगर की जनसंख्या लगभग 28,29,860 है। आबादी के आधार पर मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश में बारहवें स्थान पर है। यहां की साक्षरता दर 80.99 प्रतिशत है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 85.82 प्रतिशत व महिला साक्षरता दर 75.65 प्रतिशत
है। वर्तमान में यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1,588,475 है, जिनमें महिला मतदाता 713,220 और पुरुष मतदाता की कुल संख्या 875,179 है। मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें बुधना, चरथावल, मुजफ्फरनगर, खतौली, सरधना शामिल है।

राजनीतिक घटनाक्रम


1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में अलग-अलग क्षेत्रों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हिरा वल्लभ त्रिपाठी, सुन्दर लाल, और अजित प्रसाद पहले सांसद बने। 1957 में दूसरे और 1962 में तीसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ही सुमत प्रसाद ने जीत हासिल की लेकिन चौथे और पांचवे लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा रहा। 1977 के लोकसभा चुनाव हुए जिसमें भारतीय लोक दल की टिकट पर सईद मुर्तजा मुजफ्फरनगर के सांसद बने।

1980 के चुनावों में जनता पार्टी (सेक्युलर) ने इस सीट पर कब्जा जमाया लेकिन 1984 में जनता पार्टी के हाथ से यह सीट निकल गयी और यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गयी। 1989 के चुनाव में इस सीट पर जनता दल ने एक बार फिर कब्जा जमाया। 1991 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपनी जीत दर्ज की और भाजपा के नरेश कुमार बालियां सांसद बने। भाजपा लगातार 3 बार यहां जीती। 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पा वापसी की लेकिन अगले ही चुनाव में इस सीट पर सपा कब्जा करने में कामयाब रही। 2009 के चुनाव में यह सीट बसपा के खाते में गई लेकिन 2014 में मोदी लहर में बीजेपी इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही।

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