Tuesday - 30 July 2024 - 4:28 AM

Lok Sabha Election : जानें हरदोई लोकसभा सीट का इतिहास

पॉलिटिकल डेस्क

उत्तर प्रदेश का हरदोई लोकसभा क्षेत्र संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। एक किवदंती के अनुसार हरदोई शब्द ‘हरिद्रोही’ का बिगड़ा हुआ रूप है। यहां राजा हिरन्यकश्यप राज करता था जो किसी भी भगवान को न मान कर खुद को ही भगवान कहता था।

भगवान के विरुद्ध होने की वजह से इस जगह का नाम हरिद्रोही था। हिरन्यकश्यप का पुत्र हुआ जो हरी भक्त था, इसे मरने के लिए राजा ने कई प्रयास किये पर सफल नहीं हुआ। राजा को मारने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिम्हा का अवतार लिया और यहीं पर उसको मारा था।

एक और किवदंती के अनुसार हरदोई शब्द हरिद्वय से निकला है, जिसका अर्थ होता है 2 भगवान, क्योंकि उस वक्त लोग विष्णु के 2 अवतारों की पूज करते थे इसलिए इसे हरिद्वय कहते थे। कुछ लोगों का कहना है की इस शहर को हरदेव बक्श ने बसाया था, हरदोई में उनके नाम से एक इलाका भी है, जिसे हरदेव गंज कहते हैं।

आबादी/ शिक्षा

हरदोई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधान सभा क्षेत्र आते हैं जिसमें सवैजपुर, शाहाबाद, हरदोई, गोपामऊ और संदी शामिल है। हरदोई जिले का कुल क्षेत्रफल 5947 वर्ग किलोमीटर है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 4,091,380 है, जिसमें से 1,887,116 महिलाएं और 2,204,264 पुरुष हैं।

यहां की औसत साक्षरता दर 81.67 प्रतिशत है। यहां 86.59 प्रतिशत पुरुष और 76.22 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। यहां प्रति 1000 पुरुषों में 868 महिलाएं हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या 1,714,388 है जिसमें महिला मतदाता 774,501 और पुरुष मतदाताओं की संख्या
939,831 है।

राजनीतिक घटनाक्रम

हरदोई में 1957 में यहां पहले लोकसभा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जन संघ के दरोहर शिवदीन और कांग्रेस नेता छेदा लाल गुप्ता जीते। 1962 में कांग्रेस के किंदर लाल ने हरदोई में अपनी जीत का परचम लहराया और लगातार 3 बार यहां से सांसद चुने गये। 1977 के चुनाव में यह सीट जनता पार्टी के खाते में चली गई।

1980 में इस सीट पर इंदिरा गाँधी की पार्टी कांग्रेस ने कब्जा जमाया। 1984 में एक बार फिर यह सीट कांग्रेस के खाते में गई। ये कांग्रेस की आखिरी जीत थी। इसके बाद कांग्रेस हरदोई लोकसभा क्षेत्र में अब तक एक बार भी नहीं जीती।


1989 के चुनाव में एक बार फिर जनता दल वापसी करने में कामयाब हुई। अगले चुनाव में भी यह सीट जनता दल के पास ही रही। 1991 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने अपना खाता खोला और लगातार 2 बार जीत दर्ज की। भाजपा का सफर इस क्षेत्र में काफी छोटा रहा।

1998 में समाजवादी पार्टी ने यहां जीत दर्ज की। 1999 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की लेकिन अगले चुनाव में अपनी सीट बचाने में कामयाब नहीं रही। 2004 में बहुजन समाज पार्टी ने पहली बार जीत दर्ज की। 2009 में फिर सपा ने वापसी की लेकिन 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने इस सीट पर कब्जा किया।

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