Friday - 5 January 2024 - 3:00 PM

पूर्व डिप्टी गवर्नर का खुलासा, कहा- सरकार चाहती थी लोन न चुकाने वालों पर…

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले दिनों आरटीआई के माध्यम से खुलासा हुआ था कि एक साल में सरकारी बैंकों से1.48 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई है। कुछ दिनों पहले ही आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने अपनी किताब में सरकार के कामकाज पर सवाल उठाया था। इसी कड़ी में अब आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपनी नई किताब में मोदी सरकार के रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के प्रति रुख का खुलासा किया है।

आचार्य ने अपनी किताब में पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के समय पूर्व इस्तीफे का भी जिक्र किया है। आचार्य का कहना है कि केंद्रीय संस्था की स्वायत्तता पर अंकुश लगाने के केंद्र सरकार के प्रयास की वजह से उर्जित पटेल ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

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पूर्व डिप्टी गवर्नर ने किताब में लिखा है कि केंद्र सरकार चाहती थी कि रिजर्व बैंक लोन ना चुका पाने वालों के प्रति नरम रुख अख्तियार करे। इतना ही नहीं सरकार चाहती थी कि बैंकों की तरफ से कर्ज देने के नियमों में भी ढील दी जाए।

विरल आर्चाय ने किताब की प्रस्तावना में सरकार की तरफ से अधिक मॉनिटरी और क्रेडिट स्टिमुलस (आर्थिक मदद) को लेकर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा है कि इन स्टिमुलस से भारत के फाइनेंशियल सेक्टर की स्थिरता खत्म हो गई। पिछले एक दशक में स्थितियां मुश्किल हो गईं।

आचार्य की इस किताब में उनके भाषण, उनके रिसर्च और मौद्रिक नीति समिति के सदस्य के रूप में उनकी टिप्पणियां शामिल हैं।

23 जनवरी 2017 को विरल आचार्य ने डिप्टी गवर्नर के रूप में जॉइन किया था। उन्होंने आरबीआई में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले ही जुलाई 2019 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

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दरअसल आचार्य का मोदी सरकार से इसके पहले कई मुद्दों को लेकर टकराव हो चुका था। उन्होंने कई बार ब्याज दरों में कटौती के फैसले को लेकर असहमति भी जताई थी।

विरल आचार्य रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बनाए रखने के प्रबल समर्थक थे। आचार्य ने अपने एक भाषण में रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करती वह कभी न कभी वित्तीय बाजारों के कोप का शिकार होती है। ऐसी सरकार अर्थव्यवस्था की बदहाली को बढ़ावा देती है और एक दिन इस बात के लिए पछतावा करती है कि उसने एक महत्वपूर्ण नियामक संस्था को दबाया था।

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