प्रीति सिंह
शायद ही किसी ने सोचा होगा कि उन्हें वह रामायण देखने को मिलेगा, जिसके बारे में वह घर के बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए थे। 33 साल पहले दूरदर्शन पर दिखाए गए रामायण के बारे जब घर के बड़े-बुजुर्ग बताते थे तो उनकी आंखों की चमक बढ़ जाती थी। वह फक्र के साथ राम-सीता, हनुमान और रावण के बारे में ऐसे बताते थे, जैसे उन्होंने साक्षात भगवान राम और हनुमान के दर्शन किए हो। तीन दशक पहले जब दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक का प्रसारण होता था, तब इसको लेकर लोगों में गजब का पागलपन था। रामायण खत्म होने के बाद इसकी चर्चा कई-कई दिनों तक चलती थी।
उस समय रामायण को लेकर लोग किस कदर उतावले होते थे, उसको ऐसे समझ सकते थे कि शनिवार से ही इसकी चर्चा शुरु हो जाती थी। रविवार को सुबह 9 बजे इसका प्रसारण होता था। एक घंटे पहले ही जिसको जहां देखना होता था वहां पहुंच जाता था। उस समय टीवी की पहुंच सीमित घरों तक थी। शहर में टीवी की संख्या ठीकठाक थी लेकिन गांवों में गिने-चुने लोगों के पास होती थी। रविवार को जिसके घर टीवी होती थी रामायण देखने के लिए भारी भीड़ जुटती थी। टीवी कमरे से निकाल कर घर के बड़े बरामदे में लगायी जाती थी और गांव के लोग अपने बैठने के लिए बोरा इत्यादि खुद लेकर आते थे। उस समय टीवी वैसे भी एक अजूबा थी। रही सही कसर रामायण ने पूरी कर दी।
उस समय रामायण देखने के लिए बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ती थी। शहर से लेकर गांव तक बिजली की किल्लत होती थी। बिजली के आने-जाने का कोई समय नहीं था। इसलिए लोगों को इसका इंतजाम करना होता था। उस समय इन्वर्टर जैसी कोई चीज नहीं होती थी। बिजली न रहने की दशा में बैटरी ही टीवी चलाने का विकल्प होता था। शहरों में आसानी से बैटरी मिल जाती थी, लेकिन गांवों में थोड़ी दिक्कत होती थी। गांव में यदि किसी के पास ट्रैक्टर होता था तो उसकी बैटरी से काम चलाया जाता था, नहीं तो गांव के चौराहे से किराए पर बैटरी लाई जाती थी। इसके लिए गांव वालों से बकायदा चंदा इकट्ठा किया जाता था।
33 साल बाद आज एक फिर फिर हमारी टीवी स्क्रीन पर रामायण दिख रही है। लोगों में फिर वहीं क्रेज दिख रहा है जो 33 साल पहले था। चूंकि अब सबके घरों में टीवी है, बिजली हैं, इसलिए वो मजमा नहीं जुट रहा, लेकिन देख सभी रहे हैं, तभी तो रामायण ने टीआरपी का सारा रिकार्ड तोड़ दिया है। बच्चों को भी रामायण खूब भा रहा है, खासकर हनुमान जी। उस समय और आज के दौर में बस इतना अंतर है कि आज किरदार निभाने वाले के बारे में जब जान रहे हैं और उस समय लोगों के दिमाग अरूण गोविल दीपिका ही असल राम-सीता थे।
आज एक बार फिर रामायण देखना कैसा लग रहा है के सवाल पर सेवानिवृत्ति अध्यापिका श्रीमती वसुधा श्रीवास्तव कहती है मैंने तो कभी सोचा नहीं था कि हम रामायण को रंगीन में देखेंगे। सुखद अनुभूति हो रही है। मुझे खुशी है कि मेरा नाती जो 6 साल का है उसे रामायण देखने को मिल रहा है जिसको लेकर हम सब पागल थे।
वह कहती हैं उस समय तो मेरे पास टीवी नहीं थी। पड़ोस के घर में छोटी ब्लैक एंड व्हाइट टीवी थी। हम सब परिवार समेत उनके घर टीवी देखने जाते थे। पुराने दिनों के याद करते हुए कहती है, जब रामायण आता था, उसी दौरान जो बुजुर्ग महिलाएं देखने आती थी वह जैसे ही रामायण शुरु होता था हाथ जोड़ लेती थी। ऐसा लगता था कि जैसे उन्होंने साक्षात भगवान को देख लिया हो।
एक बार फिर रामायण देखना गोरखपुर की किरन सिंह के लिए नया और सुखद अनुभव है। मैंने तो कभी सोचा नहीं था कि रामायण ेदेखने को मिलेगा। बाद के दिनों में भी कई लोगों ने रामायण बनाया और दिखाया लेकिन इस रामायण जैसा कोई नहीं बना पाया। यह तो हमारे दिलों दिमाग में रच बस गया था।
वह कहती हैं 33 साल पहले जब रामायण दिखाया जा रहा था तो मैं बिजली के चलते कई एपीसोड नहीं देख पाई थी। गांवों में तब टीवी भी कम थी और बिजली भी बहुत कम रहती थी। अब मैं वो सारे छूटे एपीसोड देख पाऊंगी। अब समय भी है और बिजली की भी दिक्कत नहीं है। मैं सबसे ज्यादा अपने बच्चों को लेकर खुश हूं कि उन्हें देखने को मिल रहा है। तब बच्चे पैदा भी नहीं हुए थे। वह भी बहुत खुश हैं।
रामायण के पुन: प्रसारण पर लखनऊ के नेवी से रिटायर रंगेश शुक्ला कहते हैं, यह तो बिन मांगे मुराद पूरी होने जैसी बात है। 33 साल पहले जब रामायण आता था तब मैं नौकरी में था। नौकरी के चलते कई एपीसोड नहीं देख पाया था, जिसका मलाल मुझे आज था, लेकिन अब नहीं है।
वह कहते हैं, सरकार को शुक्रिया कहना चाहूंगा इस लॉकडाउन में रामायण का पुन: प्रसारण करने के लिए। इसी बहाने हमारी नई पीढ़ी को भी इससे परिचित होने का अवसर मिला है। सबसे बड़ी बात आज के समय में जब हम अवसाद के मुहाने पर खड़े हैं यह एक औषधि की तरह हैं।