पॉलिटिकल डेस्क
लोकसभा चुनाव के इस चुनावी मौसम में उत्तर प्रदेश की राजनीति एक ऐतिहासिक पल की गवाह बनने जा रही है। चुनाव प्रचार के नाम पर बैकफुट पर दिख रहा विपक्ष अब फ्रंटफुट पर आने की तैयारी में है।
करीब 25 साल बाद समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के राष्ट्रीय नेता एक साथ चुनावी मंच शेयर कर हाल में दलित आंदोलन के गढ़ बने सहारनपुर से चुनावी आगाज करने जा रहे हैं।

दरअसल, साल 1993 में यह नारा सुनने को मिला था- ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्री राम’ और सचमुच यूपी में ऐसी सियासी हवा चली कि एसपी-बीएसपी की आंधी में बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गई।
साल 1993 में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए तब सपा को 110 सीटें और बसपा को 67 सीटें मिलीं। चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था।

मुलायम सिंह यादव ने इसके बाद बीएसपी और अन्य कुछ दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। बसपा बाहर से सरकार का समर्थन कर रही थी, लेकिन 2 साल बाद ही यानी 1995 में गठबंधन टूट गया।
बीजेपी को उस सियासी नुकसान को भरने में सालों लग गए। अब एक बार फिर से पुरानी सियासी कड़वाहट को भुलाते हुए दोनों पार्टियों ने हाथ मिलाया है और सबकी नजरें अब इस बात पर टिकी हैं अखिलेश और मायावती का यह शक्ति प्रदर्शन यूपी की सियासत का रुख किस ओर मोड़ेगा।

बताया जा रहा है कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह के साथ मिलकर 10 से ज्यादा साझा रैलियां करेंगे। पहले चरण के चुनाव में कुछ ही दिन बाकी हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर बीजेपी और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है।
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