Wednesday - 10 January 2024 - 3:53 PM

जाते-जाते अमेरिकी लोकतंत्र पर ट्रंप ने पोत दी कालिख

कुमार भवेश चंद्र

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को तो जाना ही था। इसी महीने की 20 जनवरी को उनके हाथ से सत्ता का हस्तांतरण तय है। डेमोक्रेट जो बाइडेन को देश ने अपना नया राष्ट्रपति चुना है। वे अमेरिका में नया अध्याय लिखने के लिए तैयार भी हैं। लेकिन इससे पहले ही ट्रंप और उनके समर्थकों ने अमेरिकी लोकतंत्र में देश और अपने लिए एक काला अध्याय जोड़ दिया है।

रिपब्लिकन डॉनल्ड ट्रंप चुनाव के बाद से ही इस जीत को चुनौती देते आ रहे हैं। उनके रुख को देखते हुए सत्ता का ये हस्तांतरण विवादों से परे तो नहीं माना जा रहा था। लेकिन बुधवार को ट्रंप समर्थकों ने जिस तरह से हिंसा और उत्पात मचाया है उससे तीन सौ सालों से भी पुराना लोकतंत्र शर्मसार हुआ है।

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हिंसा और दंगे की जो तस्वीरें सोशल मीडिया के लेकर अमेरिकी वेबसाइटों पर दिख रही हैं वह हैरान करने वाली है। लोकतांत्रिक तरीके से होने वाले चुनाव नतीजों को गलत साबित करने के लिए ट्रंप समर्थकों ने संसद के भीतर घुसकर हिंसा की और तोड़फोड़ मचाई। ट्रंप समर्थकों के हाथों में पिस्टल भी देखा गया। सेना को दखल देना पड़ा।

Chaos, violence, mockery as pro-Trump mob occupies Congress - The Mainichi

इस घटना के बाद कभी दुनिया के ताकतवर नेता माने जा रहे डोनल्ड ट्रंप का सामाजिक बहिष्कार शुरू हो गया है। इस डिजिटल दौर में इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एक अमेरिकी राष्ट्रपति को उसके कार्यकाल के दौरान ही सोशल मीडिया साइट ट्विटर ने उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया।

दुनिया भर के नेता निश्चित ही अमेरिकी राष्ट्रपति के समर्थकों के इस रवैये और इसके पीछे ट्रंप की भूमिका को सही नहीं मानते हैं। और इसके लिए उनकी घोर आलोचना भी हो रही है। फेसबुक ने भी डॉनल्ड ट्रंप के उस वीडियो को अपने साइट से हटा दिया है जिसमे वे अपने समर्थकों को जो बाइडेन की जीत को गलत बताते दिख रहे हैं।

Chaos, violence, mockery as pro-Trump mob occupies Congress | MPR News

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अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक मुल्क में पूरे कार्यकाल शासन करने वाले ट्रंप ने एक जिद्दी शासक के रूप में अपनी छवि गढ़ी है और आखिर में उनके समर्थकों और खुद उन्होंने जो किया है उससे उनकी ये छवि और मजबूत ही हुई है। चुनावों से यह तय हो गया कि जो बाइडेन को अमेरिका ने नई भूमिका के लिए चुन लिया है।

लेकिन अपने ही प्रशासन की नाक के नीचे होने वाले चुनाव के बावजूद ट्रंप ने बाइडेन की इस जीत को कभी स्वीकार नहीं किया। चुनावी धांधली के आरोप लगाकर वे लगातार जो बाइडेन की जीत पर सवाल उठाते रहे। सत्ता नहीं छोड़ने की धमकी देते रहे।

अब जबकि सत्ता हस्तांरण में महज दो हफ्ते बचे हैं ट्रंप समर्थकों का ये तमाशा अमेरिका की साख पर बट्टे की तरह ही है। हिंसा और अलोकतांत्रिक कृत्यों से उनके समर्थकों ने अमेरिका के माथे पर एक ऐसा काला अध्याय लिख दिया है जिसे मिटाया नहीं जा सकेगा।

ट्रंप समर्थकों के हिंसक हो जाने के वीडियो पूरी दुनिया की आंखों के सामने है। संसद के भीतर और बाहर हुई हिंसा में तीन लोगों की जानें भी गईं। सेना को बीच बचाव में उतरना पड़ा। घंटो संसदीय कार्यवाही में बाधा पहुंची। संसद को जो बाइडेन की जीत पर औपचारिक मुहर लगानी है। वह लगेगी भी।

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3 नवंबर को चुनाव के अंतिम नतीजे के लिहाज से जो बाइडेन को 306 और ट्रंप को 232 वोट मिले। किसी तरह की गड़बड़ी को साबित नहीं कर पाने के बावजूद इस जीत को कुबूल करने के लिए कभी तैयार नहीं हुए। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा लेकिन ट्रंप की बात सही साबित नहीं हुई। दुनिया के नेताओं में उनकी साख को तो तभी झटका लगा था। अब तो उनकी बची खुची छवि भी नष्ट हो रही है।

दुनियाभर में हो रही है ट्रंप की थू थू

जाहिर है ट्रंप समर्थकों की इन गैरलोकतांत्रिक कोशिशों ने दुनिया भर के नेताओं को अमेरिका के इस कृत्य पर निंदा करने को मजबूर किया है।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अमेरिका में ताजा हालत को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा है कि वाशिंगटन डीसी में हिंसा और दंगा जैसे हालात देखकर निराशा हो रही है।

शांतिपूर्ण और मान्य व्यवस्थाओं को अपनाते हुए सत्ता का हस्तांतरण होना चाहिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में इस तरह की गैरकानून विरोध का कोई अर्थ नहीं।

इसी तरह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री जैकिंडा ने भी इस तरह की हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा की है।

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क्यों शुरू हुई हिंसा

दरअसल दो प्रांतों एरिजोना और पेन्सिलवेनिया में बाइडेन की जीत के विरोध में ऐतराज उठाए गए। हालांकि सदन ने इसे खारिज कर दिया है। पहला ऐतराज एरिजोना के लेकर था, जिसे सीनेट में रखा गया। लेकिन खारिज कर दिया गया तो यह मामला हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के पास पहुंचा। वहां भी इसे अस्वीकर कर दिया गया।

सीनेट में भी रिपब्लिकन नाकाम हो गए। इसी दौरान ट्रंप के समर्थक काफी संख्या में पहले संसद के बाहर जुटे और फिर अचानक जोर जबरदस्ती सुरक्षा को चुनौती देते हुे संसद के भीतर घुस गए। सेना के दखल देने तक वे संसद भवन के परिसर में और अमेरिकी लोकतंत्र पर कई चोट कर चुके थे।

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