Tuesday - 9 January 2024 - 11:38 AM

संकट काल में भी सत्ताधारी अपना रहे है विभाजनकारी नीतियां

रफ़त फ़ातिमा

COVID-19 के रूप में विश्व को जिस संकट का सामना करना पड़ रहा है उसकी भयावहता को हम किसी भी तरह नकार नही सकते है। आज के ग्लोबल विलेज की अभिधारणा के अंतर्गत भारत भी इस संकट से जूझ रहा है। लेकिन हम को इस तथ्य को समझना होगा कि देश के राजनीतिक नेतृत्व ने अदूरदर्शिता और अपरिपक्वता का परिचय देते हुए इसकी गम्भीर को समझने में विलम्ब किया है।

जबकि राहुल गांधी निरन्तर विभिन्न प्लैट्फ़ॉर्म और माध्यम से इसकी गम्भीरता के प्रति ध्यान आकर्षित करने का भरपूर प्रयास कर रहे थे। जो केवल उनके ट्वीट्स से ही साबित हो जाता है।

अगर एनडीए की सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी द्वारा समय-समय पर व्यक्त चिंताओं को संज्ञान में लिया होता तो हमारा देश अन्य देशों की तुलना में काफ़ी व्यवस्थित तरीक़े से इस लड़ाई को आज लड़ रहा होता। लेकिन तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार, उनकी पार्टी के लोग और गोदी मीडिया की प्राथमिकतायें कुछ और थीं।

एक ओर जहां एनडीए लीडरशिप निष्क्रिय रही, वहीं मीडिया ने भी कांग्रेस विरोधी रुख़ इख़्तियार करके जनता के सामने वास्तविक स्थिति को पेश नहीं किया।

ख़ैर अब पछताय क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत

आज के परिप्रेक्ष्य में केंद्र की सत्ता धारी दल की राजनीति का आधार विभाजनकारी है वहीं यह मनभेद के आधार पर भी चलायी जा रही है, जिसमें देश हित से ऊपर व्यक्तिगत घमंड और हठधर्मिता को विशेष स्थान हासिल है और यह इनकी बॉडी लैंग्विज से भी स्पष्ट है।

तमाम आँकड़ों से स्पष्ट है कि कांग्रेस के शासन काल में हमेशा बुनयादी सहूलियतों के विकास व विस्तार और जनपक्षधरता पर बल दिया है। इसके पीछे कांग्रेस की एक लम्बी विरासत, समाजवादी और समावेशी सोच कार्यरत रही है। उन्नति का रास्ता स्वस्थ सेवाओं से हो कर गुजरता है।

इसलिए सरकारी हॉस्पिटल और सुपर स्पेशीऐलिटी हॉस्पिटल के निर्माण और तकनीक के विकास को प्राथमिकता दी जिसका परिणाम AIMS, IIT जैसे उच्च कोटि के संस्थानों के रूप में सामने आये हैं। कांग्रेस ने निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच एक संतुलन की नीति अपनायी ताकि विकास का लाभ जनता तक पहुँच सके।

वर्तमान में सरकार को सोचना चाहिये कि इस बिंदु पर आकर काम ख़त्म नही हो जाता है। हम जानते है इतनी बड़ी आबादी के लिए लगातार प्रयासरत रहने की ज़रूरत होती है। कुछ बुनयादी सवालों का उठाया जाना बहुत ज़रूरी ही नहीं बल्कि आज के वक्त की माँग भी है कि हेल्थ सेवाओं सम्बंधित मौजूदा सरकार कितना गुणात्मक और गणनात्मक रूप से कितना विस्तार दिया है या प्रयास मात्र किये हैं।

  • क्या जनता के मूल मुद्दे से मौजूदा सरकार का कभी सरोकार रहा?
  • क्या ताली और लाइट से सारी ज़िम्मेदारी ख़त्म हो जाती है?

लेकिन देश पर पड़ी विपदा को कांग्रेस अनदेखा नही कर सकती इसीलिए लगातार सोनिया जी,राहुल जी और प्रियंका जी सरकार को पत्र लिखकर आगाह करने के साथ ही वाजिब और जायज़ माँग भी करते रहे हैं। इनका ताल्लुक़ चाहे डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मी की निजी सुरक्षा से हो या उनके परिवार की,मामला उनको PPE किट और उच्च कोटि के मास्क उपलब्ध कराने से हो या फिर उनके मानदेय भुगतान और निष्कासित करने का मुद्दा हों।

निचले पायदान पर खड़ा हमारा पलायन करने वाले मज़दूर जो खाने और परिवहन सुविधा के लिए गुहार कर रहा और भूखा प्यासा पैदल ही निकल पड़ा तब उसके खाने,गंतव्य स्थान तक पहुँचाने कि माँग या फ़्री फ़ोन वैलिडिटी ही बढ़ाने की माँग क्यूँ ना हो, इन तमाम मुद्दों पर कांग्रेस शाना बा शाना साथ खड़ी रही।

देशवासियों के साथ उनके दुःख दर्द में खड़े होना कांग्रेस पार्टी अपना फ़र्ज़ समझती है। इसलिए देश के हर कोने में कांग्रेस के सिपाही अपनी ज़िम्मेदारी के निर्वहन और कर्तव्य पालन करते हुए पूरी एकजुटता,भाईचारे और तन्मयता के साथ खड़े रहे।

सरकार कोई भी हो उसका दायित्व है कि वह देश की जनता के हित को देखते हुए फ़ैसले ले।कोई भी फ़ैसला जल्दबाज़ी से नही बल्कि सोचीं समझी नीति के तहत व्यापक हित में हो जिसमें संविधान द्वारा निर्धारित समावेशी दृष्टिकोण और समाजवादी जनपक्षधरता स्पष्ट रूप से नज़र आये।

अब आगे के लिए उम्मीद करते है कि केंद्र सरकार महामारी के बाद होने वाले प्रभाव के लिए उचित और बेहतर क़दम उठाएगी जिसमें ग़रीब और हाशिए पर खड़े व्यक्ति को ध्यान में रख कर फ़ैसले होगे और उसमें आम आदमी के प्रति सम्वेदनायें निहित होगी।।

(लेखिका कांग्रेस पार्टी की आल इंडिया माइनॉरिटी सेल की नेशनल को-ओर्डिंनेटर हैं)

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