Saturday - 27 January 2024 - 3:59 PM

अधूरे वादे, बेरोजगारी, सामाजिक और सांप्रदायिक विभाजन , क्या है इस चुनाव का नरेटिव !

रतन मणि लाल

महीनों की तैयारी, बहस और प्रचार के बाद लोक सभा चुनाव 2019 का पहला चरण सामने है। गुरुवार 11 अप्रैल को इस चरण में उत्तर प्रदेश में आठ लोक सभा क्षेत्रों में मतदान होगा, और पूरे देश की नजर मतदान के हर आयाम पर रहेगी। सब जानना चाहेंगे कि किस क्षेत्र में कितने लोग मतदान देने के लिए निकले, उनमे पुरुष महिलाऐं, बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक कितने थे और किस क्षेत्र में कैसे माहौल में मतदान हुआ।

ये आठ क्षेत्र पश्चिम उत्तर उत्तर प्रदेश में दिल्ली से लगे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (नेशनल कैपिटल रीजन या एनसीआर) का या तो हिस्सा हैं या उससे मिले हुए हैं। ये हैं – सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बागपत, गौतमबुद्धनगर और गाजियाबाद। एक अनुमान के अनुसार इन क्षेत्रों में कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 1.50 करोड़ है, और इनके लिए कुल 6,716 मतदान केन्द्रों की व्यवस्था की गई है। यह उल्लेखनीय है कि कुल 96 प्रत्याशियों में केवल दस महिलाएं हैं जो इस क्षेत्र में खाप पंचायत, पुरुष-प्रधान सामाजिक ढांचे और महिलाओं की स्थिति की ओर संकेत करता है।

इन क्षेत्रों में प्रमुख दलों के उम्मीदवार इस प्रकार हैं –

  • सहारनपुर – राघव लखनपाल (भाजपा), इमरान मसूद (कांग्रेस), फजलुर रहमान (बसपा) 
  • कैराना – प्रदीप चौधरी (भाजपा), हरेन्द्र सिंह मालिक (कांग्रेस), तबस्सुम हसन (सपा)
  • मेरठ – राजेंद्र अग्रवाल (भाजपा), हरेन्द्र अग्रवाल (कांग्रेस), हाजी मोहम्मद याकूब (बसपा)
  • बिजनौर – कुंवर भारतेन्द्र सिंह (भाजपा), नसीमुद्दीन सिद्दीकी (कांग्रेस), मलूक नागर (बसपा)
  • गौतमबुद्धनगर – महेश शर्मा (भाजपा), अरविन्द कुमार सिंह (कांग्रेस), सतबीर नागर (बसपा)
  • गाजियाबाद – वीके सिंह (भाजपा), डॉली शर्मा (कांग्रेस), सुरेश बंसल (सपा)
  • मुजफ्फरनगर – संजीव बालियान (भाजपा), अजित सिंह (रालोद)
  • बागपत – सत्यपाल सिंह (भाजपा), जयंत चौधरी (रालोद)

जाट राजनीति का केंद्र

यह क्षेत्र जाट राजनीति का केंद्र है और जनसँख्या में मुस्लिम वर्ग की बड़ी हिस्सेदारी की वजह से व्यापर, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों पर इसका असर भी दीखता है. जाट वर्ग में भी हिन्दू व मुस्लिम का वर्गीकरण है।

स्व चौधरी चरण सिंह ने इस क्षेत्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी और जाट समुदाय मेरठ व बागपत में परंपरागत तौर से उनका, और उनके बाद अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल का समर्थक रहा है।

पिछले चुनाव में रालोद कोई भी सीट नहीं जीत पाई थी और भारतीय जनता पार्टी ने इस क्षेत्र में एकतरफा में एकतरफा जीत हासिल की थी. इस चुनाव में रालोद समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन का हिस्सा है और उसके लिए तीन सीटें छोड़ी गयी हैं।

अब, अजित सिंह के लिए कहा जा रहा है कि वे शायद इसके बाद चुनाव नहीं लड़ेंगे और इसी भावनत्मक मुद्दे पर उनके लिए समर्थन माँगा जा रहा है। कांग्रेस ने अपनी ओर से दरियादिली दिखाते हुए बागपत और मुज़फ्फरनगर से अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा किया है। कांग्रेस के न होने से और अजित सिंह-जयंत के प्रति भावनात्मक जुड़ाव होने की वजह से भाजपा के संजीव बालियान और सत्यपाल सिंह के सामने कड़ी चुनौती है।

जहाँ गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर (नॉएडा और ग्रेटर नॉएडा) का काफी हिस्सा दिल्ली की तर्ज पर बड़े शहर की तरह लगता है, वही बाकी क्षेत्र अभी भी बेतरतीब तरीके से बढ़ रहे घनी आबादी वाले कस्बों की तरह लगते हैं। कई निजी शिक्षण संस्थानों, जैसे इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी और अन्य स्कूल-कॉलेज इस क्षेत्र में हैं जिसकी वजह से ट्रांसपोर्ट और अनियोजित रिहाईशी कॉलोनियों की भरमार दिखती है।

उन्नत खेती, ख़ास तौर पर गन्ना, और छोटे-माध्यम उद्योगों के कारण इन जगहों पर गरीबी अपेक्षाकृत कम है। सड़कों और अन्य उद्योगों की वजह से जमीन अधिग्रहण के बदले लोगों को कई सालों से अच्छा मुआवजा मिलता रहा है। नौकरी या कैसे भी तरह का काम करने के लिए दिल्ली का पास होना हमेशा काम आता है। विकास से जुड़े मुद्दे इसलिए कभी भी हावी नहीं रह पते।

सपा-बसपा गठबंधन, और कांग्रेस के लिए मोदी सरकार की कथित विफलताएं, अधूरे वादे, बेरोजगारी, सामाजिक और सांप्रदायिक विभाजन और प्रदेश की योगी सरकार के प्रति असंतोष ही सबसे बड़े मुद्दे हैं।

सांप्रदायिक विभाजन

मुज़फ्फरनगर और कैराना पिछले कुछ वर्षों से सांप्रदायिक हिंसा व एक-पक्षीय पलायन के लिए चर्चा में रहे हैं. प्रदेश में भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के बाद इस क्षेत्र में प्रदेश पुलिस ने व्यापक स्तर पर अपराध-नियंत्रण अभियान चलाया था, जिसके अंतर्गत न केवल दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर उनके ऊपर कार्यवाई की गई, बल्कि, कई अपराधी मुठभेड़ में मारे भी गए। इस पूरे प्रकरण में जहां सरकार ने इसे अपनी बड़ी कामयाबी बताया, वहीँ विपक्षी दलों और अन्य संगठनों ने इस पर सवाल उठाये।

चुनावी मुद्दों में गन्ना किसानों को उनका बकाया मिलने में देरी, कथित मुठभेड़ों की उपयोगिता और सांप्रदायिक विभाजन मुख्य हैं, जिनके आधार पर तीन मुख्य दल समर्थन जुटाने में लगे हुए थे।  निश्चित तौर पर प्रधान मंत्री मोदी की लोकप्रियता और उनसे किये गए वादे पूरे होने का विश्वास अभी भी बना हुआ है जिसकी वजह से भाजपा मजबूती का दावा कर रही है।

दूसरी ओर, कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशी एक दूसरे के खिलाफ ही खड़े नजर आते हैं। सहारनपुर, गौतम बुद्ध नगर और गाजियाबाद में यह अंतर्विरोध स्पष्ट नजर आता है, जहां भाजपा-विरोधी मतों के विभाजन होने से भाजपा को लाभ हो सकता है।

पहला चरण होने की वजह से इस क्षेत्र के लोगों को अभी तक के घटनाक्रम के आधार पर ही अपना मन बनाना है, जबकि अभी डेढ़ महीने तक चलने वाले प्रचार में बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप चलते रहेंगे. इस प्रकार पहले चरण का मतदान लोगों की अपनी सोच से ज्यादा प्रभावित होगा, न कि प्रचार के मुद्दों से।

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