न्यूज डेस्क
केंद्र सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन बिल (CAB) लाने की तैयारी में है। बुधवार को मोदी कैबिनेट से इस बिल को मंजूरी मिल सकती है, जिसके बाद इसे संसद में पेश किया जाएगा। NRC के बाद नागरिकता संशोधन बिल का विपक्ष जोरदार विरोध कर रहा है और केंद्र सरकार पर निशाना साध रहा है।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इस बिल का विरोध कर रही हैं। विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार धर्म के आधार पर नागरिकता को बांट रही है और शरणार्थियों को धर्म के आधार पर बांट रही है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हों, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी हों या फिर अन्य विपक्षी नेता हर किसी ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोला हुआ है। इस बिल का सर्वाधिक विरोध पूर्वोत्तर में हो रहा है, इसके तहत नागरिकता के नियमों में बदलाव होना है।
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार इस बिल को लाकर 1985 के असम अकॉर्ड का भी उल्लंघन कर रही है। ना सिर्फ विपक्षी पार्टियां बल्कि बीजेपी के कुछ साथी दल भी इसका विरोध कर रहे हैं, पूर्वोत्तर में एनडीए में साथी असम गण परिषद (AGP) इस बिल का विरोध केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तक दर्ज करा चुकी है।
लेकिन विरोध के बाद भी आज सुबह 9.30 पर मोदी कैबिनेट की बैठक होगी, जिसमें इस बिल को मंजूरी मिल सकती है। इस बिल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसद में पेश करेंगे।
एनआरसी बिल के बाद केंद्र सरकार की ओर से नागरिकता संशोधन बिल पर जोर दिया जा रहा है। बीजेपी की ओर से इस दौरान अपने सभी सांसदों को सदन में उपस्थित रहने के लिए कहा गया है, ऐसे में इसी हफ्ते सरकार इस बिल को सदन में पेश भी कर सकती हैं।
बता दें कि अनुच्छेद 370 को लेकर जो बिल सरकार लाई थी, उस दौरान भी ऐसा ही हुआ था। पहले बिल से कैबिनेट से मुहर लगी, फिर तुरंत सदन में पेश कर दिया गया। तब भी भाजपा ने अपने सभी सांसदों को सदन में उपस्थित रहने के लिए कहा था।
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता देने वाले नियमों में बदलाव होगा। इस बिल में संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता आसान हो जाएगा।
इसके अलावा अभी भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल देश में रहना जरूरी होता है, लेकिन नए बिल के प्रावधान में इस अवधि को 6 साल किया जा सकता है।