डॉ. रोमा बोरा
कोरोना आज भी पहेली बनी हुई है। तीन माह हो गए कोरोना का वजूद सामने आए, पर दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पहेली को सुलझा नहीं पा रहे हैं। तभी तो हर दिन इसके बारे में कोई न कोई जानकारी सामने आ रही है। कभी वैक्सीन लाने की बात कही जाती तो कभी दवा की, लेकिन ठोस नतीजे अब तक सामने नहीं आए हैं। अब तक हुए रिसर्च के बाद यह तो साफ है कि कोरोना किसी का सगा नहीं है। बच्चे-बूढ़े और जवान सभी इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें आठ माह के बच्चे को एक नर्स दुलारती हुई दिख रही है। इस वीडियो के बारे में कहा गया कि यह छोटा बच्चा कोरोना संक्रमित है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में सिर्फ तीन दिन का नवजात कोरोना संक्रमित हो गया है। कई और जगहों से भी बच्चों में कोरोना संक्रमण की खबरें आ रही है। इससे पहले लगातार कहा जा रहा था कि बच्चों मे कोरोना संक्रमण न के बराबर है।
दरसल ऐसा इसलिए कहा जा रहा था क्योंकि कोरोना संक्रमित मरीजों का जो आंकड़ा हैं उसमें बच्चों की संख्या बहुत ही कम है। ये भी सही है कि इस वायरस ने अब तक बच्चों को अपना शिकार बमुश्किल ही बनाया है। कई रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों में कोरोना का खतरा काफी हद तक कम है। शायद ये रिपोर्ट पढ़कर हर वह अभिभावक खुश होगा जिसके बच्चे छोटे हैं, लेकिन उन्हें निश्चिंत होने की जरूरत नहीं है।
यह भी पढ़ें: कोरोना महामारी के बीच एक अनोखी प्रेम कहानी
जब से कोरोना का वजूद सामने आया है तब से यह पूछा जा रहा है कि क्या बच्चे भी कोरोना से संक्रमित हो सकते हैं? जी हां, बिल्कुल हो सकते हैं। आंकडे गवाह है इसके। हां, यह जरूर है कि उस पैमाने पर नहीं जितना बड़े-बुजुर्ग होते हैं। जब चीन में कोरोना कहर बरपा रहा था, उसी दौरान तीन फरवरी को सात माह के बच्चे में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी। बच्चा डॉक्टरों की निगरानी में रहा और 20 फरवरी को बच्चों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी। बच्चों मे कोरोना का यह पहला मामला था।
यह भी पढ़ें: पास्ता के लिए स्पेशल ट्रेन चला रहा है जर्मनी
चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन ने 20 फरवरी तक करीब 72,314 कोविड-19 पीडि़तों का डाटा इकट्ठा किया ,था जिसमें मात्र 2 प्रतिशत लोग 19 साल से कम उम्र के थे। इसी प्रकार अमेरिका ने 508 कोरोना पीडि़तों पर अमरीका ने एक स्टडी की थी जिसमें एक भी बच्चे की मौत कोरोना से नहीं हुई थी। हालांकि यह शुरुआती दौर था। अब तो आंकड़े बेहद डरावने हो गए हैं। बच्चे की संख्या में इजाफा हो रहा है।
बच्चों को कोरोना से दूर है इसकी कई वजहे हैं। पहली तो यह है कि आमतौर पर कोरोना का संक्रमण एक इंसान से दूसरे इंसान में पहुंचता है। चूंकि वयस्क लोगों का ही बाहर आना-जाना, घूमना-फिरना और लोगों से मिलना ज्यादा होता है लिहाजा इस वायरस का शिकार भी वही ज्यादा होते हैं। दूसरी वजह यह है कि दो सप्ताह से बच्चे घरों में बंद हैं और तीसरा जो बेहद अहम हैं। बहुत से देशों में अभी तक उन्हीं लोगों का टेस्ट किया जा रहा है, जिनमें कोरोना के लक्षण नजर आ रहे हैं और इनमें बच्चों की संख्या बहुत ही कम या यूं कहें कि ना के बराबर है। हो सकता है बच्चों में भी ये संक्रमण हो लेकिन अभी उसके लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं।
यह भी पढ़ें: कोरोना : यह फिजिकल नहीं बल्कि टेक्नोलॉजी फाइट है
यह भी पढ़ें: लॉकडाउन : बढ़ेगी सिंगापुर की चुनौती
अभी तक जितनी रिसर्च हुई हैं, वो सभी ये इशारा करती हैं कि वयस्कों की तुलना में बच्चों पर इस वायरस का असर कम होता है। उनमें वायरस के लक्षण भी कम ही उजागर होते हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कोरोना से मरने वालों में अभी तक सिर्फ 3 किशोर शामिल हैं, जिसमें चीन में एक 14 साल का लड़का, बेल्जियम में 12 साल की लड़की और लंदन में 13 साल के एक लड़का शामिल है।
कोविड-19 को लेकर बच्चों पर किए गए शोध के डेटा से पुष्टि होती है कि कोरोना संक्रमित आधे से ज्यादा बच्चों में बहुत ही मामूली लक्षण नजर आते हैं। जैसे कि उन्हें बुखार, खांसी, गले में जलन, नाक बहना और बदन दर्द की शिकायत होती है, जबकि एक तिहाई बच्चों में निमोनिया, सांस लेने में परेशानी और बार-बार बुखार की शिकायत होती है। बहुत ही कम बच्चों में मुश्किल से सांस लेने की शिकायत देखने को मिलती है। दरअसल होता यह है कि कोविड-19 बच्चों के फेफड़ों में ना जाकर ऊपरी हिस्सों यानी नाक, मुंह, गले तक ही सीमित रहता है और उन्हें खांसी, जुकाम की मामूली शिकायत होती है। यही वजह है कि बच्चों में कोरोना के लक्षण वयस्कों जैसे नजर नहीं आते और न ही उनमें ये वायरस मौत की वजह बनता है।
यह भी पढ़ें: कोरोना :अलर्ट है मगर डरा नहीं है सिंगापुर
रिचर्स के अनुसार कोरोना वायरस की एक प्रजाति कोविड-19 है। लिहाजा अभी इसके बारे में पुख्ता तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। इसलिए बच्चों को लेकर लापरवाह बिल्कुल भी नहीं हुआ जा सकता। यह सही है कि कई मायनों में बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता वयस्कों से अलग तरीके की होती है। इसलिए कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद बच्चों में वो स्थिति पैदा नहीं हो पाती, जो कि हम वयस्कों में देखते हैं।
बच्चों के प्रति अधिक जिम्मेदार होने की जरूरत इसलिए भी हैं, क्योंकि कोरोना से बच्चों को शायद उतना नुक़सान न पहुंचे, जितना बड़ों को हो रहा है। बच्चे दूसरों को कहीं ज़्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं, खासतौर से बीमार और बुज़ुर्गों के लिए ये जानलेवा भी हो सकता है। सिर्फ कोरोना ही नहीं, और भी कई तरह के वायरस हैं, जो बच्चों को कम नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन वयस्कों में बच्चों से ये वायरस पहुंच जाता है। मिसाल के लिए स्वाइन फ्लू का वायरस बच्चों के लिए उतना घातक नहीं था जितना कि गर्भवती महिलाओं और बज़ुर्गों के लिए था।
(डॉ. रोमा बोरा, बाल रोग की वरिष्ठ विशेषज्ञ हैं। वह नेपालगंज मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)
यह भी पढ़ें: घर तो जाता हूं मगर फिर भी अकेला हूं