Tuesday - 9 January 2024 - 10:02 PM

लालू यादव की राजनीति से अलग क्या अपनी सियासी लकीर खींच रहे हैं तेजस्वी

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वहीं, लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव सत्ता में वापसी के लिए हरसंभव कोशिशों में जुटे हैं।

तेजस्‍वी की चुनावी रैलियों में जिस तरह से उनको सुनने के लिए भीड़ जुट रही है, उससे साफ जाहिर है कि नीतीश कुमार को इस चुनाव में जीत मिलना पहले जैसा आसान नहीं होगा।

तेजस्वी यादव अभी पांच साल पहले ही सियासत में आए हैं और लोकप्रियता के मामले में जिस तरह से नीतीश कुमार के लिए चुनौती बनकर उभरे हैं, इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि तेजस्वी के राजनीतिक उभार के पीछे आखिर वजह क्या है?

तेजस्वी के सियासी उभार के पीछे क्या लोगों की संवेदना है या फिर नीतीश कुमार के प्रति एंटी इनकंबेंसी का माहौल नजर आ रहा है?  नीतीश कुमार की पॉपुलरिटी का ग्राफ पिछले चुनाव की तुलना में काफी गिरा है।

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दरअसल, नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। अक्टूबर 2005 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी ताजपोशी हुई थी। इसके बाद बीच में 8 महीने के लिए जीतनराम मांझी के कार्यकाल को निकाल दें तो नीतीश लगातार सत्ता में बने हुए हैं।

ऐसे में नीतीश के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर की बात कही जा रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री के तौर उनकी जो लोकप्रियता 2010 और 2015 के चुनाव में थी, इस बार उसमें कमी देखने को मिल रही है। ऐसे में क्या नीतीश के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा तेजस्वी यादव को मिल रहा है।

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तेजस्वी यादव के सियासी ग्राफ बढ़ने की दूसरी वजह क्या लोंगो की संवेदनाएं उनके साथ हैं। तेजस्वी अपने पिता लालू यादव की राजनीति से अलग अपनी सियासी लकीर खींच रहे हैं। लालू के सामाजिक न्याय को पीछे छोड़कर विकास के एजेंडे पर वोट मांग रहे हैं। तेजस्वी यादव पहले ही अपने माता-पिता के दौर के शासन के लिए माफी मांग चुके हैं और आरजेडी को एम-वाई समीकरण से निकालकर ए-टू-जेड की पार्टी बनाने का दावा कर रहे हैं।

बिहार के 10 लाख युवाओं को रोजगार देने और नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने का वादा तेजस्वी यादव अपनी हर रैली में कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी के लोकलुभावने बातों को लोग तवज्जो दे रहे हैं, जिसके चलते उनका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा है।

तेजस्वी सड़क से लेकर सदन तक लगातार नीतीश सरकार पर हमलावर रहे और यहां तक की नीतीश कुमार को उन्होंने ‘पलटू राम’ की उपाधि दे दी। इस बीच, बीते 3 वर्षों में तेजस्वी का जनाधार बढ़ता गया और वह युवाओं के बीच लगातार लोकप्रिय होते गए। इस बीच, 2019 में लोकसभा चुनाव हुए लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को बुरी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपनी लड़ाई को जारी रखा और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे।

इसकी एक वजह तेजस्‍वी का आक्रमक छवि को भी बताया जा रहा है। तेजस्‍वी ने जिस तरह नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर बैठ कर नीतीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है उससे कहीं न कहीं उनकी छवि पर असर पड़ा है।

राजनीतिक विश्‍लेषक कहते हैं कि महागठबंधन ने सामाजिक समीकरण का ऐसा हिसाब-किताब बिठाया है, जो सफल हो जाए तो बिहार की सियासी कहानी बदल जाएगी। दरअसल सवर्णों का विरोध करने के लिए जानी जाने वाली पार्टी आरजेडी ने अपनी छवि बदलने की कोशिश की है और पहले की तुलना में काफी अधिक हिस्सेदारी दी है। इसमें पिछड़े वर्गों और मुस्लिम समुदाय को भी साधने की कवायद साफ-साफ दिखती है।

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इसके अलावा विश्लेषकों के अनुसार, तेजस्वी को एक बड़े जातीय वर्ग यादव मतदाताओं का काफी समर्थन मिल सकता है। लालू प्रसाद भले ही चुनावी रणक्षेत्र में अपनी पार्टी का नेतृत्व करने के लिए आस-पास न हों, लेकिन उनके विरोधियों के दावों के अनुसार उन्होंने उम्मीदवारों के चयन और सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने में निर्णायक भूमिका निभायी है। चारा घोटाला मामले में वह रांची में वर्तमान में सजा काट रहे हैं। राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांग्रेस, भाकपा, माकपा और भाकपा मामले शामिल हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस बार भी मुस्लिम समुदाय का रूझान राजद-कांग्रेस गठबंधन की ओर प्रतीत हो रहा है। महुआ के मौजूदा विधायक और तेजस्वी के बड़े भाई तेजप्रताप यादव इस बार समस्तीपुर जिले के हसनपुर से अपना भाग्य आजमा रहे हैं।

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