जुबिली स्पेशल डेस्क
दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल द्वितिया को भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है। इसको यमद्वितिया भी कहा जाता है, क्योंकि इस तिथि से यमराज और द्वितिया तिथि का सम्बन्ध होता है। इस दिन बहनें अपने भाई का तिलक लगाती हैं। उसका स्वागत कर उनके लम्बी आयु की कामना करती हैं।
ये भी माना जाता है कि जो भाई इस दिन बहन के घर जाकर भोजन करता है और तिलक लगवाता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी दिन यमराज के सचिव चित्रगुप्त जी की भी पूजा की जाती है।
क्यों मनाते है भाई दूज
पौराणिक कथा में ऐसा मान्यता है कि सूर्य भगवान की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि अपने मित्रों के साथ उसके घर आकर भोजन करे। वहीं अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहते थे।
यमुना ने घर आने का निमंत्रण देकर किया वचनबद्ध
एक दिन कार्तिक शुक्ल का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। इस पर यमराज सोचे कि ‘मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता।
बहन इतनी सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।’ उसके बाद यमराज चल दिए बहन के घर। और उसी समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
दिया यम का भय न रहने का वर
उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भाई को भोजन कराया। इसके बाद यमराज ने प्रसन्न होकर बहन से वर मांगने के लिए कहा। इस पर यमुना ने कहा, ‘भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करें।
इसके अलावा यमुना ने कहा कि जो बहन मेरी तरह आज के दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करेगी, उसे तुम्हारा भय न रहेगा।’ यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर विदा लिया।
तभी से भैया दूज की परंपरा शुरू हुई। ऐसा माना जाता है कि जो भाई इस दिन आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं होता। इसी वजह से भैया दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।