Friday - 12 January 2024 - 3:47 PM

#BhagwanBirsaMunda : एक ऐसा व्यक्ति जिसने आदिवासियों को अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट किया

स्पेशल डेस्क।

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस के मौके पर रविवार को गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने श्रद्धां‍जलि अर्पित की। राजनाथ सिंह ने ट्विटर पर अपने संदेश में लिखा-भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर मैं उन्हें स्मरण एवं नमन करता हूं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पुण्यतिथि पर याद कर श्रद्धांजलि दी है।

वहीं ट्विटर पर भी #BhagwanBirsaMunda ट्रेंड कर रहा है। आइए जानते हैं आखिर बिरसा मुंडा कौन हैं, जिन्हें गृह मंत्री से लेकर ममता बनर्जी तक सभी याद कर रहे हैं।

कौन है बिरसा मुंडा

आदिवासी क्रांतिकारी बिरसा मुंडा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में उन्होंने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। आदिवासी समुदाय को एक करने और राष्ट्र के लिए लड़ने में मुंडा की भूमिका सबसे अधिक थी।

15 नवंबर, 1875 को झारखंड के खूंटी में जन्में बिरसा मुंडा ने आजादी की लड़ाई में आदिवासियों को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था। इतना ही नहीं वे आदिवासी समुदाय के ऐसे पहले नेता बने जिन्होंने आदिवासियों की पूजा प्रथा को बदलकर एक ईश्वर में विश्वास करने की नींव डाली थी। अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया।

1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके में “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।

अगस्त 1897 में बिरसा और उनके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई, जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी। इससे बौखला कर अंग्रेजी सरकार के इशारे पर इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।

जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था, जिसमें बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में बिरसा भी 3 मार्च, 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून, 1900 को राँची कारागार में लीं।

आज भी बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा भी है।

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