Wednesday - 10 January 2024 - 8:31 AM

यादों के आईने में लखनऊ का वो रेस्तरां जहां कभी जुटते थे दिग्गज

प्रदीप कपूर

एक दौर था जब हजरतगंज के चौराहे पर कोने पर बेनबोज रेस्टोरेंट हुआ करता था।

उस ज़माने में काफी हाउस को लोअर हाउस और बेनबोज को अपर हाउस कहा जाता था।बेनबोज की काफी और बेकरी आइटम पूरे शहर में मशहूर थे।

दिन में काफी हाउस और शाम को बेनबोज मैं रौनक रहती थी। अब जिनको दोनो जगह की आदत हो तो वे अपने अपने समय पर दोनो जगह पहुंचते थे।

मेरे पिता बिशन कपूर अपनी मित्र मंडली के साथ दिन में काफी हाउस और शाम को बेनबोज नियमित जाते थे।

60 और 70 के दशक में हम  एक चक्कर हजरतगंज का लगा कर लगभग रोज बेनबोज की ब्रेड लेकर घर जाते थे। कभी कभी केक और चॉकलेट मिठाई या सफेद रसगुल्ला भी ले जाते थे।

बेनबोज मैं मैंने एनडी तिवारी जी, आचार्य नरेंद्र  देव के बड़े बेटे अशोक नाथ वर्मा और उनकी पत्नी शकुंतला आंटी , जगदीश राजवंशी व  मेरे पिता को अक्सर वार्ता करते हुए देखा।विभिन्न राजनैतिक दलों के बड़े नेता आचार्य जेबी कृपलानी, चंद्रशेखर चंद्रजीत यादव सैयद सिब्ते राजी, इब्ने हसन सभी लोग समय समय पर बेनबोज बैठते रहे हैं। वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री डा अम्मार रिजवी जी ने बताया कि 50 साल पहले आदरणीय लालजी टंडन जी से उनकी पहली मुलाकात कम्युनिस्ट नेता रमेश सिन्हा जी ने बेनबोज मैं ही कराई थी। अम्मार साहब और टंडन जी भी बेनबोज नियमित बैठते रहे हैं।

बेनबोज मैं अक्सर वामपंथियों, दक्षिणपंथी, सोशलिस्ट और कांग्रेस विचारधारा के नेता एक ही मेज पर बहस करते हुए देखे जा सकते थे। लेखकों में यशपाल जी और उनकी पत्नी प्रकाशवती जी को भी हमने बेनबोज मैं देखा।

बेनबोज मैं काफी के साथ एक स्टैंड रखा जाता था था जिसमें बिस्कुट और हल्का नाश्ता के आइटम होते थे। आप जितना लेंगे बाद मैं वो बिल में जुड़ जाता था। बेनबोज का स्क्रैंबल एग भी बहुत मशहूर था।

बेनबोज की बेकरी इतनी मशहूर थी कि कांग्रेस के बड़े नेता मंत्री लखनऊ मेल से प्रधान मंत्री कार्यालय के सबसे ताकतवर लोग यशपाल कपूर और आर के धवन के लिए केक और सफेद रसगुल्ला ले जाते थे।

बेनबोज के मालिक सरदार ओबेराय जी और मैनेजर दत्ता बाबू हमें याद रहेंगे। ओबेराय जी हमेशा चूड़ीदार पजामा और अचकन  या कुर्ता और दत्ता बाबू धोती कुर्ते में रहते थे।  उन दोनो का दोस्ताना अंदाज ही बेनबोज पहुंचने वालों को रोज जाने की दावत देता था। अब सोचते हैं की बेनबोज के भी क्या दिन थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और लखनऊ के काफी हाउस पर लिखी उनकी पुस्तक काफी चर्चित रही है) 

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