Wednesday - 10 January 2024 - 6:26 AM

अपने रिस्क पर बने सिंघम और दबंग!

विजय शंकर सिंह

रियल लाइफ और रील लाइफ में बहुत बड़ा फर्क होता है। इस बात को जो लोग नहीं समझते उन्हें कई बार बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। मेरठ के एसपी सिटी अखिलेश नारायण सिंह भी शायद इस फेर को समझने में चूक गए। पिछले कुछ समय में बॉलीवुड की फिल्मों में ‘पुलिस अफसरों’ की हीरोपंती खूब पसंद की गई। इतना ही नहीं कई अफसर अब सलमान खान के ‘दबंग’ और अजय देवगन के ‘सिंघम’ वाले करैक्टर को कॉपी करते भी नजर आते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस तरह के रोल फिल्मों में तो तारीफ बटोरते हैं पर जब हकीकत में कोई अधिकारी इस तरह का व्यवहार करता है तो उस पर सवाल उठने लगते हैं।

मैं जब नौकरी में था तब भी और अब भी यही बात कहता हूं, जो कार्य विधिसम्मत हो उसे ही करें। नही तो अपने रिस्क पर सिंघम और दबंग बने। विभाग जब भी गलत कदम पर देखेगा, रगड़ देगा। पुलिस महकमा बहुत ही बेमुरव्वत महकमा है।

इन दिनों मेरठ के एसपी सिटी का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों को पाकिस्तान जाने की हिदायत दे रहे हैं। उनके इस बयान को नेताओं ने लपक लिया है और राजनीति शुरू हो गई है।

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एसपी सिटी मेरठ अखिलेश के ‘पाकिस्तान चले जाओ’ बयान पर बहुत सी प्रतिक्रिया आ रही है। कुछ एसपी सिटी को शाबाशी दे रहे हैं तो कुछ इसकी निंदा कर रहे हैं।

मेरठ के एसपी सिटी अखिलेश नारायण सिंह

एसपी सिटी के बयान पर मामला राष्ट्रीय चर्चा में है और अगर यह विवाद बढ़ा तो उनसे इस तरह के बयान पर स्पष्टीकरण भी मांगा जा सकता है। उनका यह कथन आपत्तिजनक है और इस पर कार्यवाही भी हो सकती है।

सरकार और डीजीपी चाह कर भी अखिलेश का बहुत बचाव नहीं कर पाएंगे। क्योंकि उनके इस तरह की बयानबाजी का कोई औचित्य नहीं है। इससे विभाग भी असहज स्थिति में हो जाता है। पुलिस अफसरों को यह समझना चाहिए कि, उन्हें स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए। पुलिस अधिकारी उच्च प्रशिक्षित होते हैं। इसलिए उन्हें प्रशिक्षित प्रतिक्रिया ही करनी चाहिए।

अभी पूरा मामला गरम है, एसपी सिटी मेरठ को कुछ लोगों से शाबाशी भले ही मिल रही हो लेकिन अगर विवाद बढ़ा तो उन्हें अपनी इस गैर जिम्मेदाराना प्रतिक्रिया की कीमत भी चुकानी पद सकती है। उस समय शाबाशी देने वाले लोग कहीं नजर नहीं आयेंगे।

एक पुलिस अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह भावनाओं में न बहे। हमें इसके लिए प्रशिक्षित भी किया जाता है। हालांकि कई बार भीड़ का व्यवहार बड़ा ही अमर्यादित होता है लेकिन तब भी हमें संयम नहीं खोना चाहिए। यही हमारा कर्तव्य है।

आज का समय सूचना क्रांति का समय है। हर किसी के हाथ में मोबाइल है। कोई भी व्यक्ति कहीं भी आपकी बातों को या कार्रवाई को रिकॉर्ड कर सकता है। कुछ समय के लिए इन्टरनेट शटडाउन करके आप सूचनाओं को रोक तो सकते हैं लेकिन उन्हें हमेसा के लिए ख़त्म नहीं किया जा सकता। ऐसे में बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

‘पाकिस्तान चले जाओ’ जैसे बयान किसी पार्टी और नेताओं के लिए लाभकारी हो सकते हैं, लेकिन एक पुलिस अधिकारी के लिए यह अप्पतिजनक ही माना जाएगा। प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों को हमेसा याद रखना चाहिए कि कोई अपना राजनीतिक एजेंडा उनके कंधे पर रख कर आगे न बढ़ाने पाए।

(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)

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