Saturday - 6 January 2024 - 8:17 PM

लखनऊ में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था ने बढ़ाया मौत का आंकड़ा

जुबिली स्पेशल डेस्क

जबसे उत्तर प्रदेश की चिकित्सा व्यवस्था प्रशासनिक अधिकारियों (आई ए एस) के हाथ में गई तभी से सरकारी अस्पतालों में एक ओर तो  स्टाफ और दवाओं की कमी हुई तो दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों की बिल्डिंगें खूब बनीं।

प्रदेश के चिकित्सा विभाग के मुखिया हों या मेडिकल कालेजों के निदेशक केवल सिफारिश पर बनाये जाने लगे भले ही वह जूनियर ही क्यों न हों।अस्पतालों में पैरामेडिकल से लेकर चिकित्सकों की भर्ती संविदा और आउट सोर्स एजेन्सियों से की जाने लगी ।

वहां भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और कर्मचारियों के शोषण पर की शिकायतें हुईं लेकिन अस्पतालों की दशा केवल कागजों पर अच्छी हो गई लेकिन धरातल पर दुर्दशा ही बढ़ती गई।

अब कोविड की महामारी ने सरकारी अधिकारियों के निर्देशन में चलाई जा रही चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल दी है।  अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था इतनी बदहाल है कि चिकित्सा के काम में लगे डाक्टर भी अपने परिजनों को बेड नहीं दिला पा रहे हैं।
हालात इतने खराब हो गये हैं कि  Pms association ने cm को चिठ्ठी लिखकर गुहार लगाई है कि कोरोना मरीज़ों का इलाज कर रहे सरकारी डॉक्टर्स और उनके परिजनो के लिए अस्पतालों में बेड आरक्षित किये जायें।

 

कल  एक बड़े चिकित्सक,अपने परिजन को कम हो रहे  आक्सीजन स्तर की वजह से आक्सीजनयुक्त बेड दिलाने के लिये लगातार प्रयास करते रहे  लेकिन बेड नहीं मिला ,जहां मिल रहा था वहां आक्सीजन नहीं है ,वेंटिलेटर नहीं था और उनके परिजन की आज सुबह सांसे थम गईं।
यह एक बानगी भर है सैकड़ों की संख्या में लोग इस दुर्व्यवस्था के शिकार होकर मर रहे हैं और प्रचार हो रहा है किआक्सीजन पर्याप्त है,बेड बढ़ा दिये गये हैं लेकिन असलियत उनसे पूछिये जिनके लोगों की बेड आक्सीजन ,वेंटिलेटर न मिल पाने से जानें जा रही हैं।
प्राइवेट अस्पतालों में भी आक्सीजन के लिये हाहाकार मचा है। गंभीर मरीजों को घर भेजा जा रहा है भले ही वो मरें या जियें।

क्या है सरकारी अस्पतालों की असली तस्वीर

 नहीं है आक्सीजन सपोर्ट बेड,वेंटिलेटर और चिकित्सा कर्मी :  सरकार ने घोषणा कर दी है कि बलरामपुर सहित कई प्राइवेट बडे़ अस्पतालों में बेड बढ़ा दिये गये हैं लेकिन हकीकत है कि केवल बेड की संख्या बढी़ है वेंटिलेटर,आक्सीजन सिस्टम वाले बेड और चिकित्सा कर्मी नहीं बढे़ हैं।

लोग आक्सीजन लेबिल गिरने पर अस्पतालों की ओर भाग रहे हैं लेकिन जब आ सी यू बेड, ,वेंटिलेटर की संख्या सीमित ही है तो सुविधा कहां बढ़ी है केवल कोरी बयानबाजी से लोगों की जान नहीं बचने वाली है।

सूत्र बता रहे हैं कि राजधानी के सबसे बड़े अस्पताल बलरामपुर में 200बेड बढ़ाये गये हैं लेकिन केवल बेड हैं एक्स्ट्रा आक्सीजन सपोर्ट वाले बेड,आइसीयू ,एक्स्ट्रा वेंटिलेटर और स्टाफ नहीं है।

आप भगवान भरोसे बेड पर आ जाइये ऐसा वहां के कर्मचारियों का कहना है। लखनऊ के बक्शी तालाब में बने रामसागर मिश्रा अस्पताल का कहना है कि हमारे पास स्टाफ नहीं है,   डाक्टर को मिलाकर 27पैरामेडिकल स्टाफ कोविड से ग्रस्त है,बार बार महानिदेशक और उच्च अधिकारियों से निवेदन किया जा रहा है कि स्टाफ दे दें लेकिन कोई सुनवाई नहीं है।

सिविल हास्पीटल में नान कोविड मरीज जिनकी आक्सीजन क्षमता लगातार घट रही है उनको भर्ती नहीं किया जा रहा है। राम मनोहर लोहिया संस्थान का हाल सबसे बुरा है।साल भर से राजनीति का अखाड़ा बन चुका अस्पताल सबसे ज्यादा दुर्दशा का शिकार है।
कर्मचारियों का कहना है कि पूर्व अपर मुख्य सचिव चिकित्सा शिक्षा इसके लिये जिम्मेदार हैं,उनका ध्यान केवल बिल्डिंग बनाने और मनमर्जी के डायरेक्टर को बिठाने में लगा रहा।
कभी उन्होंने इस लिहाज से मानीटरिंग नहीं कि कि मरीजों को दी जाने वाली सुविधा कितनी बढा़ई गई है।कितनी OPD और IPD है।बताया जा रहा है कि वर्तमान डायरेक्टर राउण्ड तक नहीं करते हैं जबकि पिछले डायरेक्टर कम से कम राउण्ड तो करते थे।

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31 मार्च 2021से  PMSके डाक्टरों को लोहिया से हटा दिया गया है चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई है।सूत्रों के अनुसार अस्पताल में नान कोविड मरीज के लिये कुल 12बेड हैं ,बेड बढ़ाये नहीं गये हैं इस लिये यह संख्या ऊंट के मुंह में जीरा बन गई है और नानकोविड की नई भर्ती नहीं ली जा रही है।

वेंटिलेटर डिब्बे में बन्द हैं, चलाये कौन 

जब मरीज वेंटिलेटर के अभाव में मर रहे हैं तब  बलरामपुर,लोकबन्धु और राम सागर मिश्रा अस्पतालों में  50से अधिक वेंटिलेटर डिब्बों में बन्द हैं। बताया जा रहा है कि कर्मचारी तैनात ही नहीं  हैं जो इसे चला सके। इस तरह का हाल  अन्य जिलों में भी है।

 संविदा और आउट सोर्सिंग से कर्मचारियों की भर्ती भी एक बड़ा कारण है

सरकार स्थाई कर्मचारियों की भर्ती न करके संविदा और आउट सोर्सिंग से कर्मचारियों की भर्ती कर रही है और पगार भी नाम मात्र की,शोषण अलग से।ऐसे में महामारी के समय वह जिम्मेदारी नहीं महसूस कर रहे हैं । उनका कहना है कि इतने कम पैसे और  अस्थाई नौकरी के लिये हम जान नहीं देंगे ना ही रिस्क लेंगे। वह भी हाथ खड़े कर चुके हैं या फिर नौकरी छोड़ रहे हैं।

सरकारी अस्पतालों में आपूर्तित इंजे रेमडेसिवीर की गुणवत्ता पर उठ रहे हैं सवाल

कोरोना की इस महामारी में इंजे रेमडेसिवीर की डिमांड इतनी बढ़ गई है कि बाजार में नकली इंजे रेमडेसिवीर की बिक्री होने लगी जिसमें कई लोग पकड़े भी गये।

ऐसी परिस्थिति में सूत्र बता रहे हैं कि जिलों में इंजे रेमडेसिवीर (Remdesivir) की आपूर्ति के समय जिलों को न तो ओरिजनल बाउचर दिये जा रहे हैं और न ही इंजे रेमडेसिवीर की टेस्टिंग रिपोर्ट (एन ए बी एल) NABL सर्टीफिकेट,जिससे यह पता करना मुश्किल है कि आपूर्तित इंजे रेमडेसिवीर कितना असली है।और इसकी गुणवत्ता है भी या नहीं।

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उ प्र मेडिकल कार्पोरेशन स्वास्थ्य विभाग से अरबों रुपये ( कुल बजट का 80प्रतिशत पैसा)लेता है लेकिन उसने इस आपदा के लिये कोई तैयारी नहीं की है। सप्लाई करने वाले और कार्पोरेशन के कर्मचारी नियम का उल्लंघन करते हुए शान से कह रहे हैं कि न तो बाउचर मिलेंगे और न ही NABL।
हांलाकि ये सप्लाई सी एम ओ को सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के लिये दी जा रही है।

आखिर ऐसा क्यों,? यह भी एक बड़ा सवाल है 

  • भर्ती के नाम पर दलालों की हो गयी है चांदी : इस समय अस्पतालों में भर्ती कराने को लेकर दलाल भी सक्रिय हो गये हैं,लोग उनके चंगुल में फंस‌ हैं रहे हैं।अस्पतालों के बाहर मिल कर मोबाइल नं देकर बात करने के लिये कह दे रहे हैं और पता नहीं उनके पास कहां से जुगाड़ है।

मुख्य मंत्री जी तक नहीं पहुंच रही है असलियत

ऐसा लगता है कि सरकारी अफसर मुख्यमंत्री जी को सही हालात से अवगत नहीं करा रहे हैं।क्योंकि सख्त छवि वाले मुख्यमंत्री इस तरह की दुर्व्यवस्था को कभी बर्दाश्त नहीं करते और कई बड़े प्रशासनिक अफसरों पर अब तक गाज गिर चुकी होती। लेकिन अब अगर गाज गिरेगी तो छोटे अधिकारियों पर बड़े फिर वैसे ही अपनी मनमानी चलायेंगे।

मुख्यमत्री जी को प्रशासनिक अधिकारियों की जगह जिम्मेदार चिकित्साधिकारियों के हाथ में कमान देकर चिकित्सा व्यवस्था को दुरूस्त करने की एक कोशिश जरूर करनी चाहिये।

कोविड की दूसरी वेब के ढाते कहर,और अस्पतालों की बदहाली से दहशत इस कदर है कि अधिकांश लोग बुखार,सर्दी खांसी होते ही घर पर ही ट्रीटमेण्ट शुरू कर दे रहे हैं और टेस्ट भी नहीं करा रहे हैं।

जिससे उनके पास लक्षण होते हुए भी कोविड की रिपोर्ट नहीं है।बाद में कुछ लोग आक्सीजन लेबल गिरते ही अस्पतालों की ओर भाग रहे हैं जबकि धैर्य रखकर कायदे से जांच कराकर दवा ली जाय तो इस महामारी का मुकाबला काफी हद तक किया जा सकता है।

कुल मिलाकर देखा जाये तो कोरोना ने चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। सरकार अक्सर चिकित्सा व्यवस्था बेहतर करने की बात जरूर करती है लेकिन ये सब केवल हवाहवाई होते हैं। ऐसे में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था के चलते आम इंसानों की जिंदगी अब केवल भगवान भरोसे हैं

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