Saturday - 6 January 2024 - 3:48 PM

म्यांमार में ‘सू की’ की अपार लोकप्रियता से घबराई सेना

कृष्णमोहन झा

भारत के एक पड़ोसी देश म्यांमार में  लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार का तख्ता पलट कर खुद ही सत्ता पर कब्जा जमा लेने की सेना की कार्रवाई का देश की जनता उग्र विरोध कर रही है। लोग सड़कों पर उतर कर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं। म्यांमार की सेना ने यद्यपि देश में एक साल के लिए लागू आपातकाल के बाद निर्वाचित होने वाली लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता हस्तांतरित कर देने का वादा किया है लेकिन सेना के इस वादे पर जनता को कतई भरोसा नहीं है।

देश की गिरफ्तार नेताओं की तत्काल रिहाई और लोकतांत्रिक सरकार की बहाली की मांग पर जनता अडिग है। जनता के उग्र विरोध प्रदर्शनों को दबा पाना सैन्य शासकों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है। अभी यह पता नहीं चल सका है कि देश में लोकतंत्र बहाली के लिए लंबा संघर्ष करने वाली लोकप्रिय नेता आन सांग सू की एवं अन्य सत्ताधारी नेताओं को तख्ता पलट की कार्रवाई के बाद हिरासत में कहां रखा गया है।

ये भी पढ़े: तीन राज्यों में चक्का जाम नहीं होने की ये है बड़ी वजह

ये भी पढ़े: ऐसे ही नहीं शिक्षण संस्थाओं को CM योगी ने दिया ये निर्देश

यहां  यह विशेष उल्लेखनीय है कि सत्ताधारी दल नेशनल लीग बार डेमोक्रेसी के फेसबुक पेज पर देश की शीर्ष नेता आंग सान ‌सू की ने पहले ही अपलोड किए गए एक बयान के जरिए इस तख्ता पलट की कार्रवाई की आशंका व्यक्त कर दी थी।

म्यांमार में फेसबुक की लोकप्रियता को देखते हुए सैन्य सरकार ने ७ फरवरी तक के लिए फेस बुक पर प्रतिबंध की घोषणा कर दी है ताकि नई सैन्य सरकार के विरुद्ध संगठित होने के लिए लोग फेसबुक का सहारा न ले सकें। सेना ने निर्वाचित सरकार का तख्ता पलटने का कारण चुनावों में धांधली होना बताया है परंतु निर्वाचन आयोग ने सेना के इस आरोप को ग़लत बताया है।

दरअसल देश के नवनिर्वाचित निचले सदन का सोमवार पहला सत्र आमंत्रित किया गया था उसके पहले ही सेना ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट कर खुद सत्ता पर कब्जा कर लिया। विश्व के अनेक देशों की सरकारों ने म्यांमार की सेना की इस  कार्रवाई की भर्त्सना करते हुए गिरफ्तार नेताओं की तत्काल रिहाई की मांग की है।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने म्यांमार की सैन्य सरकार  को चेतावनी दी है कि अगर वह तत्काल ही गिरफ्तार नेताओं को रिहा कर लोकतांत्रिक सरकार की पुनः बहाली नहीं करती है तो अमेरिका म्यांमार पर एक बार फिर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाने से नहीं हिचकेगा।

ये भी पढ़े: स्पा में करते थे गंदा काम, जानिए पुलिस ने कैसे किया भंड़ाफोड़

ये भी पढ़े: अदा शर्मा की ये ‘अदा’ नहीं देखी क्या, तस्वीरें देख कायल हुए फैंस

गौरतलब है कि अमेरिका ने म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार के गठन के बाद उसके विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों को शिथिल कर दिया था। म्यांमार में सेना द्वारा लोकतांत्रिक सरकार की तख्ता पलटे जाने की कार्रवाई पर भारत ने बहुत सीधी हुई प्रतिक्रिया दी है।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने म्यांमार के नए घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि भारत स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है। हमने हमेशा ही म्यांमार में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समर्थन किया है। हमारा मानना है कि देश में कानून का शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखा जाना चाहिए।

इस प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार म्यांमार में तख्ता पलट की कार्रवाई के लिए सीधे-सीधे वहां की सेना की भर्त्सना करने से परहेज़ करते हुए काफी हद तक तटस्थता का रुख अपनाने की नीति पर चल रही है। विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में म्यांमार के घटनाक्रम को  चिंता जनक बताया है।

भारत सरकार ने म्यांमार में तख्ता पलट की घटना के बावजूद उसे मानवीय सहायता जारी रखने का आश्वासन दिया है। गौरतलब है कि म्यांमार को कोरोना संकट से निपटने के लिए भारत द्वारा बड़ी मात्रा में वैक्सीन, दवाइयों और टेस्टिंग किट की आपूर्ति की आपूर्ति की जा रही है। म्यांमार में सेना ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्ता पलट कर खुद सत्ता पर काविज होने की जो महत्वाकांक्षा प्रदर्शित की है वह उस देश की जनता के लिए कोई नई बात नहीं है।

ये भी पढ़े: समंदर किनारे योगा करती नजर आई नागिन फेम

ये भी पढ़े: इतने लाख लोगों का टीकाकरण कर UP ने फिर रच दिया इतिहास

देश को सैन्य तानाशाहों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए आंग सान सू की ने जिस अहिंसक संघर्ष की शुरुआत की थी उसे जनता ने भारी समर्थन प्रदान किया था। सैन्य तानाशाहों ने जनता के बीच उनकी अपार लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें लगभग दो दशकों तक नजरबंद भी रखा परंतु अंततः सैन्य तानाशाहों को उनके आगे झुकना पड़ा।

देश में लोकतांत्रिक सरकार के गठन के लिए चुनाव तो जरूर कराए गए लेकिन सेना ने सत्ता पर परोक्ष नियंत्रण रखने के इरादे से संविधान में इस तरह संशोधन कर दिया कि सू की नई सरकार में किसी पद पर काबिज न हो सकें। सेना ने संविधान में यह प्रावधान कर दिया कि देश का कोई नागरिक यदि विदेश में विवाह करता है तो वह सरकार में कोई पद अर्जित करने का अधिकारी नहीं होगा।

इसी प्रावधान ने आंग सान सू की को देश में लोकतांत्रिक सरकार का गठन होने पर उसके राष्ट्रपति पद से वंचित कर दिया। महत्वाकांक्षी चतुर सैन्य शासकों ने लोकतांत्रिक सरकार पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए संविधान में यह संशोधन भी कर दिया कि संसद में एक चौथाई सदस्यों का मनोनयन सेना अपनी मर्ज़ी से करेगी और गृह, रक्षा और सीमा मंत्रालय सेना अपने पास रखेगी।

देश में लोकतंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करने हेतु ‌आंग सान सू की ने सेना की इन शर्तों को स्वीकार कर लिया। संसदीय चुनावों में सू की के नेतृत्व वाली नेशनल लीग बार डेमोक्रेसी ने प्रचंड बहुमत से जो जीत हासिल की वह इस बात का प्रमाण थी कि सू की देश की जनता के बीच कितनी लोकप्रिय हैं। सेना को आंग सान सू की की यह अपार लोकप्रियता कभी पसंद नहीं आई।

ये भी पढ़े: दुनिया के 15 फीसदी किशोर अभी भी पीते हैं सिगरेट

ये भी पढ़े: भारत के किसान आन्दोलन पर ब्रिटेन की संसद में होगी चर्चा

सू की यद्यपि सरकार में किसी संवैधानिक पद पर नहीं थीं परंतु परोक्ष रूप से सरकार में उनका में सर्वोच्च स्थान था। बताया जाता है कि तीन महीने बाद सेवानिवृत्त होने वाले म्यांमार के सेनाध्यक्ष ने स्वयं राष्ट्रपति बनने की महत्वाकांक्षा के चलते इस तख्तापलट की योजना बनाई थी जिसकी भनक आंग सान सू की को लग गई थी इसीलिए उन्होंने पहले ही सत्ता धारी दल के फेसबुक पेज पर इसकी आशंका जता दी थी।

म्यांमार में हुए इस तख्तापलट में चीन का हाथ होने की भी खबरें सामने आ रही हैं यद्यपि चीन सरकार ने इन खबरों को ग़लत बताया है परंतु यह भी आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में म्यांमार की घटना को लेकर निंदा प्रस्ताव पेश किया गया तो चीन ने स्थायी सदस्य के रूप में वीटो पावर का प्रयोग करते हुए उस प्रस्ताव का अनुमोदन नहीं होने दिया।

चीन ने इस मुद्दे पर रवैया अख्तियार किया वह किसी संदेह को जन्म देता है। दरअसल लोकतांत्रिक सरकार में आंग सान सू की किसी पद पर न होते हुए भी जिस तरह सुप्रीम हस्ती बनी हुई थीं वह सेना को रास नहीं आ रहा था इसलिए वहां की सेना ने तख्ता पलट का रास्ता चुन लिया।

सेना की इस कार्रवाई का विरोध करने के लिए जनता जिस तरह देश की सड़कों पर उतर आई है उसे देखते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सेना को अपने कदम पीछे भी खींचना पड़ सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय दबाव से निपट पाना भी सेना के अब पहले जैसा आसान नहीं है।

ये भी पढ़े: यूपी में 10 फरवरी से खुलेंगे स्कूल

ये भी पढ़े: ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ से दिक्कत नहीं, तो ग्रेटा के ट्वीट से बैर क्यों?

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com