Sunday - 7 January 2024 - 2:51 PM

सब ताज उछाले जायेंगे सब तख्त गिराए जायेंगे

जुबिली न्यूज़ डेस्क

नई दिल्ली. सब्र का पैमाना सबका अलग-अलग होता है. सब्र का यह पैमाना बर्दाश्त की कुव्वत से तय होता है. हालात जब नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो जाते हैं तो सब्र का पैमाना छलक जाता है. जब पैमाना छलकता है तो क्रांति के हालात बनते हैं. यह हालात इन दिनों अमेरिका में नज़र आ रहे हैं. यह पहली बार हुआ है कि अमरीकी राष्ट्रपति को जान बचाने के लिए बंकर में छुपना पड़ा.

दुनिया में सुपर पॉवर की शक्ल में अपनी पहचान रखने वाले मुल्क में लोगों का गुस्सा अपने उफान पर है. लोगों ने अमेरिका के जनक कोलम्बस की मूर्ति को ध्वस्त कर दिया है. ब्रांज की बनी दस फुट ऊंची मूर्ति देखते ही देखते धूल धूसरित हो गई.

अमेरिका में श्वेत बनाम अश्वेत की जंग छिड़ गई है. एक ज़माने से शोषित होते आ रहे अश्वेतों ने जार्ज फ्लायड के कत्ल के बाद जो आन्दोलन शुरू किया वह धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया है. लोग इतना गुस्से में हैं कि अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं. व्हाइट हाउस को घेर रहे हैं, सड़कों पर जुलूस निकाल रहे हैं.

अमेरिका के लोग सिर्फ सरकार से नहीं पूरे सिस्टम से नाराज़ हैं. इस पूरे मामले में जार्ज फ्लायड तो सिर्फ एक टूल की शक्ल में सामने आया है. श्वेत पुलिसकर्मी के हाथों अश्वेत फ्लायड मारा गया. इस एक मौत ने अरसे से सोये हुए लोगों को जगा दिया. लोग एक तरफ कोरोना से जूझ रहे हैं तो दूसरी तरफ नस्लभेद से उपजी नफरत भी उन्हें जीने नहीं दे रही है.

लोग नाराज़ हैं कि कोरोना लाशें बिछाता जा रहा है लेकिन सरकार सियासत के मद्देनज़र अपनी चालें तय कर रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को चुनाव का सामना करना है. वह सारे फैसले अपने चुनाव के मद्देनज़र ले रहे हैं. कोरोना काल में भी राष्ट्रपति दोबारा उसी कुर्सी पर बैठने के लिए इतने बेताब हैं कि ईरान के सुप्रीम कमांडर कासिम सुलेमानी को हत्या कराने के बाद उन्हें आतंकी बता दिया, ईरान ने जो जवाबी वार किया उसने ट्रम्प के कद को बौना बना दिया. रही सही कसर चीन ने पूरी कर दी.

जार्ज फ्लायड के कत्ल के बाद ट्रम्प ने अगर अपने नागरिकों की भाषा बोली होती तो हालात इतने नहीं बिगड़े होते. ट्रम्प को एलान करना चाहिए था कि फ्लायड की कुर्बानी बेकार नहीं जायेगी. ज़िम्मेदार को कड़ी सजा दिलाने के लिए मज़बूत केस बनाया जाएगा मगर ट्रम्प अपने नागरिकों से ही दो-दो हाथ करने को आमादा थे. नतीजा सामने है. पूरा आन्दोलन ट्रम्प के खिलाफ हो गया.

नाराज़ लोगों ने सेंट पॉल स्थित क्रिस्टोफर कोलम्बस की ब्रांज की बनी विशाल प्रतिमा को उसके बेस समेत उखाड़कर उसे धूल धूसरित कर दिया. अश्वेत फ्लायड की मौत से खफा अमरीकियों ने कोलम्बस की मूर्ति उखाड़ी क्योंकि कोलम्बस से अमेरिका के समुद्री मार्ग को भारत के भ्रम में खोजा था और वहां के मूल नागरिकों की इन्डियन कहा था. अमरीकी मानते हैं कि यूरोपीय समुदाय ने अश्वेतों की सामूहिक हत्याएं कीं और उन्हें हमेशा गुलाम बनाकर रखा इसके लिए कोलम्बस ही ज़िम्मेदार था.

अमेरिका में एक तरफ कोलम्बस की मूर्ति गिराई जा रही थी तो दूसरी तरफ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मूर्ति को पीटते हुए भीड़ का वीडियो भी पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है. हालांकि यह वीडियो चार साल पुराना है लेकिन मौजूदा हालात में इसका वायरल होना और अमेरिका के जनक की मूर्ति का गिराया जाना यह बताता है कि उसका सम्मान स्थाई नहीं होगा जिसने क्रूरता की हदें पार की होंगी. जिसने इंसानों के बीच फर्क की लकीरें खींची होंगी.

जिसने भी इंसानों के बीच फर्क की लकीर खींची है उसकी लोकप्रियता कभी स्थाई नहीं रही है. सद्दाम हुसैन ने शिया और सुन्नी के बीच फर्क की लकीर खींची थी. इराक में एक ज़माने तक जिस सद्दाम हुसैन का सिक्का चलता था जब वही सद्दाम सत्ता से निर्वासित कर दिए गए और दुनिया के सबसे खतरनाक शख्स की पहचान रखने वाले सद्दाम को बंकर में शरण लेनी पड़ी तब इराक के नागरिकों ने देश के प्रमुख चौराहों पर लगी सद्दाम हुसैन की आदमकद मूर्तियों को ढहा दिया. बगदाद के फिरदौस चौक पर लगी सद्दाम की मूर्ति को जब लोगों की भीड़ नहीं गिरा पाई तो लोगों ने मूर्ति पर चढ़कर इसे हथौडियो से टुकड़ों में तोड़ दिया.

त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव में सीपीएम की हार के बाद बेलोनिया के सेंटर ऑफ़ कालेज स्कवायर में रूसी क्रांति के नायक और वामदल विचारधारा के प्रतीक माने जाने वाले व्लादिमीर लेनिन की मूर्ति को लोगों ने जेसीबी के माध्यम से गिरा दिया. लेनिन की मूर्ति गिराए जाने के पीछे वह ताकतें थीं जो त्रिपुरा में वामदलों की हार के बाद उसे दोबारा पनपने भी नहीं देना चाहती थीं. लेनिन वामपंथी विचारधारा को बढाने वाले थे इसलिए विरोधी उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पाते थे.

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ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत में लाकर उसके ज़रिये भारत को गुलाम बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले राबर्ट क्लाइव की मूर्ति को हटाने के लिए लन्दन में ही लोग लामबंद होने लगे हैं. क्लाइव भारत में पहला ब्रिटिश गवर्नर था. लन्दन के श्र्यूसबेरी में लगी क्लाइव की मूर्ति को हटाने के लिए तैयार की गई पिटीशन पर 1700 लोगों ने हस्ताक्षर किये हैं. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारत में हुई लाखों निर्दोषों की हत्या के बावजूद ब्रिटिश राष्ट्रवाद का जश्न मनाने के लिए क्लाइव की मूर्ति लगाना सही कैसे हो सकता है जबकि भारत को लूटने क्लाइव की भूमिका सबसे अहम थी. यह वक्त का बदलाव है. की ब्रिटिशर्स खुद यह मान रहे हैं कि ज़ालिम का सम्मान नहीं किया जाना चाहिए.

मूर्तियाँ सम्मान का प्रतीक होती हैं. देवी-देवताओं की आराधना मूर्तियों के माध्यम से ही होती हैं. जो किसी दौर में नायक बनकर उभरते हैं उनकी मूर्तियाँ भी लोग उनके सम्मान में लगाते हैं. लेकिन जिन्होंने इंसानों पर ज़ुल्म किया उनके प्रभाव में मूर्तियाँ लगा दी गईं या फिर उन्होंने खुद की मूर्तियाँ लगवा लीं तो उनकी मूर्तियों को गिरना ही पड़ता है. ऐसे हालात आते हैं तो फिर वही माहौल जिन्दा हो जाता है जिसमें फैज़ अहमद फैज़ को लिखना पड़ा था कि जब अर्ज़-ए खुदा के काबे से सब बुत उठवाये जाएंगे. हम अहले सफा मरदूद-ए हरम मसनद पे बिठाए जायेंगे. सब ताज उछाले जायेंगे सब तख्त गिराए जायेंगे. लाजिम है कि हम भी देखेंगे.

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