प्रयागराज में कुंभ का समापन हो गया। कुंभ में बहुत सारे रिकार्ड बने। कुंभ की अद्भुत छटा ने सबको सम्मोहित किया, शायद इसीलिए देश के कोने-कोने से लेकर विदेशों से भी लोग प्रयागराज की पावन धरती पर लोग आये।
सबने कुंभ का अद्भुत दृश्य देखा लेकिन इसी बीच कुंभ का एक ऐसा चेहरा भी उभरकर सामने आया जिसकी सबने अनदेखी किया या नियति मानकर आगे बढ़ गए।
कुंभ में सैकड़ों बच्चे अपने परिवार के साथ या खुद अकेले श्रद्धालुओं के लिए उपयोग में आने वाले विभिन्न प्रकार के सामान बेचते रहे हैं या फिर देवी देवताओं का रूप धारण करके भीख मांगते फिरते रहे लेकिन इनकी तरफ किसी की नजर नहीं गई।
1- रुक्मिणी, गीता, रोहित, बबलू, मीना और रानी जैसे सैकड़ों बच्चे अपने माता पिता के साथ कुंभ के शुरूआती दिनों से ही आ गए थे और अंत समय तक बने रहे, लेकिन कुंभ की दिव्यता और भव्यता की चकाचौंध उनके लिए बेमानी रही। रुक्मिणी के माता पिता अक्षय त्रिवेणी संगम पर गंगाजल भरने का डिब्बा, श्रद्धालुओं के उपयोग में आने वाले अन्य सामानों के साथ श्रृंगार का सामान बेचते हैं।
2- रुक्मिणी के कुल पांच भाई बहन हैं, सभी कुंभ मेला परिक्षेत्र में देवी देवताओं का वेश धारण करके अपने आप का प्रदर्शन करके घूम-घूमकर भीख मांगते हैं, जिससे एक दिन में 400 से 500 रूपये मिल जाता है। शाम को बड़े हनुमान मन्दिर के पास परिवार के सभी लोग इकठ्ठा होते थे। वंही मन्दिर के पास ही सोते थे। इन बच्चों से बात करने पर पता चला कि ये चित्रकूट, मैहर जैसे धार्मिक स्थलों पर आयोजित होने वाले बड़े मेले में देवी देवताओं का रूप धारण करके भीख मांगने का काम करते हैं।
3- मिर्जापुर की 12 वर्षीया सुनीता ने बताया कि, जब कभी भीख मांगने में कमी हो जाती है तो माता-पिता गालियां देने के साथ पिटाई करते हैं। सुनीता, सुम्मी और बबलू जिनकी उम्र 12 से 8 साल के बीच है, ये अपने परिवार सहित कुंभ में शुरुआत से ही आए थे। उन्होंने बताया कि, स्नान पर्व पर हममें से हरेक को 10 से 12 किलो चावल और लगभग 400 से 500 रुपए मिल जाता है, जबकि सामान्य दिनों में 150 से 200 रुपए मिल जाया करता है। रात में हनुमान मन्दिर के पास सोते हैं लेकिन कभी-कभी वहां जगह नही मिलती तो रेत पर ही सो जाते हैं। इन बच्चों ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है, लेकिन हिसाब-किताब धड़ल्ले से करते हैं।
4- कुंभ की कड़कड़ाती ठंड में अधिक पैसों के लालच में ये बच्चे बड़ी-बड़ी गाडियों और देखने में अमीर लोगों के पीछे-पीछे भागते रहें। ये बच्चे सुबह के 4 बजे से स्नान घाटों पर पहुंचकर अपने काम में, मतलब जिन्हें भीख मांगना हो वे भीख मांगने में और जिन्हें सामान बेचना हो वे सामान बेचने में लग जाया करते थे।
5- मेला प्रशासन, पुलिस सुरक्षा व्यवस्था, धार्मिक संस्थाएं, विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं, बाल अधिकारों की पैरोकार संस्थाएं इन सबके प्रयास इन बच्चों के लिए नाकाफी रहे, क्योंकि यही स्थिति कुम्भ के अंतिम दिन तक बनी रही। 45 दिनों तक पूरी दुनिया को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा कराने वाला सर्वसिद्धिप्रद कुंभ के आयोजन का बजट 2012 के बजट 200 से बढाकर 12 गुना अधिक बजट 2500 करोड़ कर किया गया था।
6- कुंभ की छटा 25 करोड़ लोगों ने देखी। श्रद्धालुओं के साथ-साथ 32 सौ प्रवासी भारतीय प्रयागराज की धरती पर पहुंचे। 71 देशों के राजनायिक, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री मॉरीशस, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के साथ उत्तर प्रदेश कैबिनेट प्रमुख रूप से शाामिल हुए।
7- 500 शटल बसों का एक रूट पर एक साथ संचालन, 7000 से अधिक लोगों द्वारा हैण्ड पेंटिंग और 10 हजार सफाई कर्मियों द्वारा तीन सडकों पर सफाई जैसे रिकार्ड गिनीज बुक में दर्ज कराया गया।