जुबिली स्पेशल डेस्क
गुजरात की विसावदर सीट पर उपचुनाव में मिली जीत ने आम आदमी पार्टी (AAP) को नई ऊर्जा दी है। इस जीत के कुछ ही घंटों बाद पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी अब बिहार विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाएगी—वो भी पूरी तरह अकेले।
केजरीवाल का यह फैसला बिहार की राजनीति में सिर्फ AAP की एंट्री नहीं, बल्कि संभावित तीसरे मोर्चे की दस्तक भी माना जा रहा है। खासकर तब, जब AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पहले से इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
बिहार में AAP की तैयारी या कांग्रेस को फिर से घेरने की रणनीति?
AAP की अब तक की राजनीतिक रणनीति देखें, तो एक बात साफ है—पार्टी का सबसे बड़ा असर कांग्रेस पर ही पड़ा है। दिल्ली में शीला दीक्षित को सत्ता से बाहर करने के बाद पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी की हार में भी AAP की बड़ी भूमिका रही। गुजरात चुनाव में पार्टी ने बीजेपी से ज्यादा नुकसान कांग्रेस को पहुंचाया और कई सीटें उससे छीन लीं।
दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने AAP के वोट काटे, और बदले में AAP सत्ता से दूर रह गई। यानी दोनों पार्टियों के बीच प्रतिस्पर्धा सिर्फ वैचारिक नहीं, चुनावी ज़मीन पर भी साफ नजर आती है।
अब जब केजरीवाल बिहार का रुख कर चुके हैं, तो ये सवाल अहम है कि क्या यह कदम केवल सियासी विस्तार की कोशिश है या कांग्रेस के लिए फिर एक नया संकट?
जमीन कम, इरादा बड़ा!
बिहार में AAP की कोई बड़ी संगठनात्मक मौजूदगी नहीं है—न स्थानीय नेता, न मजबूत कार्यकर्ता नेटवर्क। लेकिन इसके बावजूद 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर देना केवल राजनीतिक साहस नहीं, बल्कि एक बड़ी रणनीति का संकेत देता है।
गौरतलब है कि बिहार में लंबे समय से प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार भी सक्रिय हैं, लेकिन वे अब तक 243 मज़बूत प्रत्याशी ढूंढ पाने में असमर्थ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है—क्या AAP इस चुनौती से पार पा सकेगी?
पुराने अनुभव से कुछ नहीं सीखा?
2014 में केजरीवाल ने बिना तैयारी के वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और बुरी तरह हारे थे। अब फिर वही जोश बिहार में दिख रहा है। लेकिन इस बार क्या रणनीति कुछ अलग है या यह भी सिर्फ एक “शोर मचाओ, सीट भुलाओ” टाइप की चाल है?
INDIA गठबंधन अब बीते कल की बात?
केजरीवाल ने खुद ही कहा कि INDIA गठबंधन महज़ लोकसभा चुनाव के लिए था। यानी आने वाले राज्य चुनावों में AAP किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी। ऐसे में कांग्रेस और RJD के साझा समीकरण को AAP कितना नुकसान पहुंचा सकती है, यह देखना दिलचस्प होगा।