जुबिली न्यूज डेस्क
धर्मशाला – तिब्बती आध्यात्मिक नेता 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो जल्द ही 90 वर्ष के होने जा रहे हैं। इसी के साथ उनके उत्तराधिकारी को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। दलाई लामा ने इस मुद्दे पर स्पष्ट बयान जारी करते हुए कहा है कि उनका उत्तराधिकारी पूरी तरह से तिब्बती बौद्ध परंपराओं के अनुसार चुना जाएगा, और इसमें चीन की कोई भूमिका नहीं होगी।
600 साल पुरानी परंपरा का होगा पालन
दलाई लामा का चयन कोई साधारण प्रक्रिया नहीं है। यह परंपरा करीब 600 वर्षों से चली आ रही है, जिसमें दिवंगत दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज और पहचान की जाती है। अब जब 14वें दलाई लामा की उम्र बढ़ रही है, तो दुनिया भर की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि 15वें दलाई लामा का चयन कब और कैसे होगा।
चीन को लेकर क्या बोले दलाई लामा?
दलाई लामा ने यह साफ किया है कि उत्तराधिकारी के चयन में चीन सरकार को कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि यह एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है, जिसे सिर्फ तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु ही आगे बढ़ा सकते हैं।“उत्तराधिकारी का चयन तिब्बती परंपराओं के अनुसार होगा, इसमें किसी भी बाहरी राजनीतिक ताकत की दखलअंदाजी स्वीकार नहीं की जाएगी।” — दलाई लामा
गादेन फोडरंग ट्रस्ट को सौंपी जिम्मेदारी
अपने उत्तराधिकारी के चयन को लेकर दलाई लामा ने Gaden Phodrang Trust को औपचारिक रूप से यह जिम्मेदारी सौंप दी है। यह ट्रस्ट दलाई लामा के प्रशासनिक और धार्मिक कार्यों को संभालता है। उन्होंने 2011 की बैठक का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने तब ही यह निर्णय ले लिया था कि संस्था को भविष्य में भी जारी रखा जाएगा।
चीन क्यों चाहता है नियंत्रण?
गौरतलब है कि चीन तिब्बत पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने के लिए दलाई लामा के चयन में दखल देना चाहता है। चीन का दावा है कि अगला दलाई लामा केवल उसकी मंजूरी से तय होगा। हालांकि, तिब्बती समुदाय और वैश्विक मानवाधिकार संगठन इस पर आपत्ति जताते रहे हैं।
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14वें दलाई लामा का यह बयान न केवल तिब्बती समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए भी एक मजबूत संदेश है। दलाई लामा ने जहां अपनी परंपरा और सिद्धांतों को दोहराया, वहीं चीन को यह संकेत भी दे दिया कि आध्यात्मिक उत्तराधिकार कोई राजनीतिक फैसला नहीं होता।