जुबिली न्यूज डेस्क
तिरुवनंतपुरम: केरल में महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हेल्थ को लेकर जागरूकता लगातार बढ़ रही है। हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम (HMIS) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में बीते 9 वर्षों में अबॉर्शन के मामलों में 76 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-15 में जहां कुल 17,025 अबॉर्शन हुए थे, वहीं 2023-24 में यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 30,000 हो गया। इनमें से 21,282 मामले निजी अस्पतालों से और 8,755 मामले सरकारी अस्पतालों से सामने आए।
10 सालों में करीब 2 लाख अबॉर्शन
HMIS डेटा के अनुसार, वर्ष 2015-16 से 2024-25 तक राज्य में कुल 1,97,782 अबॉर्शन के मामले दर्ज किए गए। इनमें से 1,30,778 केस निजी अस्पतालों में और 67,004 केस सरकारी अस्पतालों में दर्ज किए गए।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन आंकड़ों में महिलाओं की इच्छा से कराए गए अबॉर्शन के साथ-साथ वह भी शामिल हैं, जो सामाजिक या पारिवारिक दबाव में कराए गए।
MTP एक्ट में बदलाव बना मददगार
गौरतलब है कि वर्ष 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम में संशोधन के बाद गर्भपात की वैधानिक सीमा 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई थी। इससे महिलाओं को निर्णय लेने में अधिक स्वतंत्रता मिली है।
निजी अस्पतालों पर अधिक निर्भरता
रिपोर्ट यह भी बताती है कि महिलाएं अबॉर्शन के लिए सरकारी की तुलना में निजी अस्पतालों को ज्यादा प्राथमिकता दे रही हैं। इसका कारण निजी अस्पतालों में बेहतर सुविधा, गोपनीयता और बिना सवाल-जवाब के इलाज मिलने को बताया जा रहा है। वहीं, सरकारी अस्पतालों में कई बार महिलाओं से विवाह प्रमाणपत्र जैसी चीजों की मांग की जाती है, जिससे वे हतोत्साहित होती हैं।
अबॉर्शन को लेकर समाज में नजरिया बदलने की जरूरत
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अबॉर्शन को आज भी समाज में नकारात्मक नजरिए से देखा जाता है, जबकि यह महिलाओं के स्वास्थ्य और अधिकारों से जुड़ा विषय है। अधिकतर अबॉर्शन चिकित्सकीय या मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर कराए जाते हैं, न कि केवल सामाजिक सुविधा के लिए।
विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि डॉक्टरों और अस्पतालों को महिलाओं के फैसलों का सम्मान करना चाहिए, और उन्हें जानकारी और समर्थन देने के लिए आगे आना चाहिए।
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केरल में बढ़ते आंकड़े यह संकेत देते हैं कि महिलाएं अब अपने शरीर और स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा सजग हो रही हैं। हालांकि, सरकारी अस्पतालों की संरचना और समाज की सोच में बदलाव की अब भी ज़रूरत है ताकि हर महिला को बिना भेदभाव और दबाव के उचित स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।