अशोक कुमार
“डमी स्कूल” एक ऐसा मॉडल है जहां छात्र किसी स्कूल में केवल नाम के लिए दाखिला लेते हैं, लेकिन वे नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते हैं। इसके बजाय, वे प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे JEE, NEET) की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटरों में अधिक समय बिताते हैं।
डमी स्कूलों की प्रथा, विशेष रूप से भारत में, एक जटिल मुद्दा है जिसके अपने फायदे और नुकसान हैं। जबकि कुछ लोग इसे प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता के लिए एक आवश्यक कदम मानते हैं, वहीं कई शिक्षा विशेषज्ञ और बोर्ड इसे औपचारिक शिक्षा प्रणाली के लिए हानिकारक मानते हैं।
नकारात्मक प्रभाव
समग्र विकास में बाधा : औपचारिक स्कूली शिक्षा केवल अकादमिक ज्ञान प्रदान करने तक सीमित नहीं है। यह छात्रों के सामाजिक कौशल, आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता, सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी और व्यक्तित्व विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। डमी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र इन महत्वपूर्ण अनुभवों से वंचित रह जाते हैं, जिससे उनका समग्र विकास प्रभावित होता है।
सामाजिक अलगाव : डमी स्कूलों में नियमित उपस्थिति न होने से छात्रों की सामाजिक अंतःक्रिया कम हो जाती है। वे साथियों, शिक्षकों और स्कूल के वातावरण से दूर रहते हैं, जिससे उनमें सामाजिक कौशल की कमी आ सकती है और अकेलापन महसूस हो सकता है।
आधारभूत ज्ञान की कमी : कई मामलों में, डमी स्कूलों में केवल परीक्षा-उन्मुख पढ़ाई पर ध्यान दिया जाता है, जिससे छात्रों के आधारभूत ज्ञान और अवधारणाओं की समझ कमजोर हो सकती है। यह दीर्घकालिक शिक्षा और भविष्य की चुनौतियों के लिए हानिकारक हो सकता है।
मानसिक दबाव और तनाव : सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने से छात्रों पर अत्यधिक मानसिक दबाव पड़ सकता है। यदि वे इन परीक्षाओं में सफल नहीं होते हैं, तो यह गंभीर निराशा और अवसाद का कारण बन सकता है, क्योंकि उनका पूरा ध्यान केवल एक ही लक्ष्य पर केंद्रित होता है।

नैतिक मूल्यों का हनन: डमी स्कूलों की प्रथा अक्सर शिक्षा प्रणाली के नियमों और नैतिक मूल्यों का उल्लंघन करती है। यह छात्रों को यह संदेश दे सकता है कि नियमों को तोड़ा जा सकता है, जो उनके नैतिक विकास के लिए अच्छा नहीं है।
शिक्षा प्रणाली का दुरुपयोग: डमी स्कूल शिक्षा बोर्डों द्वारा निर्धारित उपस्थिति नियमों का उल्लंघन करते हैं। यह शिक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता और उसकी मूल भावना को कमजोर करता है।
शिक्षण गुणवत्ता पर प्रभाव : जब छात्र नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते हैं, तो स्कूलों की शिक्षण गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उनका प्राथमिक कार्य छात्रों को पढ़ाना है।
अनैतिक व्यापारिक मॉडल : कई डमी स्कूल और कोचिंग सेंटर मिलकर एक अनैतिक व्यापारिक मॉडल चलाते हैं, जहां छात्रों को स्कूल न जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे केवल उनके वित्तीय हित पूरे होते हैं।
सकारात्मक प्रभाव
प्रतियोगी परीक्षाओं पर अधिक ध्यान : डमी स्कूलों का मुख्य आकर्षण यह है कि वे छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे JEE, NEET) की तैयारी के लिए अधिक समय और लचीलापन प्रदान करते हैं। स्कूल न जाने से उनका समय बचता है, जिसका उपयोग वे कोचिंग कक्षाओं और स्व-अध्ययन में कर सकते हैं।
“अनावश्यक” गतिविधियां : कुछ छात्रों और अभिभावकों का मानना है कि नियमित स्कूल में अनावश्यक गतिविधियों (जैसे खेल, सांस्कृतिक कार्यक्रम) पर समय बर्बाद होता है, जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण समय खा जाता है। डमी स्कूल इस “बर्बाद” समय को बचाते हैं।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, डमी स्कूल औपचारिक शिक्षा के लिए विनाशकारी हैं। जबकि वे कुछ छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दे सकते हैं, वे छात्रों के समग्र विकास, सामाजिक कौशल और आधारभूत ज्ञान के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।
सीबीएसई (CBSE) और शिक्षा मंत्रालय जैसी संस्थाएं डमी स्कूलों के खिलाफ सख्त कदम उठा रही हैं, जिसमें 2025-26 से बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने के लिए नियमित स्कूल उपस्थिति को अनिवार्य करना शामिल है।
यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि शिक्षा प्रणाली छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए औपचारिक स्कूली शिक्षा के महत्व को मानती है और डमी स्कूलों की प्रथा को रोकना चाहती है।
भविष्य में, नियमित स्कूली शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए , ताकि छात्र केवल परीक्षा-केंद्रित न रहें, बल्कि एक संतुलित और पूर्ण शैक्षिक अनुभव प्राप्त कर सकें।
(लेखक: पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर)