अशोक कुमार
विभिन्न विश्वविद्यालयों में लोकपाल की नियुक्ति 2019 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (लोकपाल) विनियम, 2019 के अधिसूचित होने के बाद शुरू हुई थी। यह विनियम भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) द्वारा जारी किया गया था।
विनियमों के अनुसार, प्रत्येक विश्वविद्यालय को एक लोकपाल नियुक्त करना अनिवार्य है। 2023 में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उन विश्वविद्यालयों को डिफ़ॉल्टर घोषित कर दिया जिन्होंने लोकपाल नियुक्त नहीं किए थे।
विश्वविद्यालयों में लोकपाल की नियुक्ति एक महत्वपूर्ण कदम था जो भ्रष्टाचार को कम करने, छात्रों और शिक्षकों को सुरक्षा प्रदान करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने के लिए सहयोग करेगा।
लोकपाल को छात्रों की प्रमुख शिकायतों में प्रवेश, शुल्क, छात्रवृत्ति, परीक्षा, परिणाम, अनुशासनात्मक कार्रवाई, और यौन उत्पीड़न का समाधान शामिल हैं। लोकपाल को भ्रष्टाचार, उत्पीड़न, भेदभाव और अन्य गलत व्यवहार के मामलों की जांच करने का अधिकार भी दिया गया है।
यह सत्य है कि वर्तमान में विश्वविद्यालयों में छात्रों की समस्याओं को लेकर लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। छात्रों से जुड़े कई मुद्दे सामने आते रहे हैं, जिनके कारण विरोध प्रदर्शन हुए हैं। छात्रों के प्रदर्शन के कुछ सामान्य कारण जैसे कि शैक्षणिक मुद्दे: फीस वृद्धि, परीक्षा प्रणाली में बदलाव,पाठ्यक्रम में बदलाव ,ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ी समस्याएं (कनेक्टिविटी, संसाधन आदि) , गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, शोध और नवाचार पर पर्याप्त ध्यान न देना ! राज्य सरकार से पर्याप्त वित्तीय सहायता न मिलना, जिससे विश्वविद्यालयों में संसाधनों की कमी हो सकती है।सूत्रों के अनुसार अभी बहुत से विश्वविद्यालयों मे लोकपाल के लिए बैठने का स्थान भी उपलब्ध नहीं है , छात्रों को अधिकारिक रूप से लोकपाल की जानकारी भी नहीं है , शिकायती प्रकोष्ठ भी नही है , विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ कोई औपचारिक बैठक भी नहीं हुई है।
विभिन्न शहरों में, हम अक्सर संसाधनों की कमी और व्यवस्थाओं में खामियों की चुनौतियों का सामना करते हैं, लेकिन एक ऐसे महत्वपूर्ण पद के लिए बुनियादी सुविधा का अभाव चिंताजनक है।
यदि लोकपाल के लिए बैठने का स्थान ही नहीं है, तो यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस पद को गंभीरता से नहीं ले रहा है या फिर व्यवस्था में गंभीर कमियां हैं। ऐसी स्थिति में लोकपाल प्रभावी ढंग से अपना कार्य कैसे कर पाएंगे? छात्रों को अपनी शिकायतें दर्ज कराने और उनसे मिलने में कितनी असुविधा होगी?
यह स्थिति लोकपाल की नियुक्ति के उद्देश्य को ही विफल कर देती है। लोकपाल का उद्देश्य छात्रों के लिए एक सुलभ और निष्पक्ष शिकायत निवारण मंच प्रदान करना है, लेकिन यदि उनके पास बैठने तक की जगह नहीं है, तो यह संदेश जाता है कि छात्रों की समस्याओं को सुनने और उनका समाधान करने की प्राथमिकता विश्वविद्यालय प्रशासन के एजेंडे में बहुत नीचे है।
ऐसी स्थिति में, छात्रों को और भी मुखर होकर इस मुद्दे को उठाना चाहिए। उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन से लोकपाल के लिए उचित स्थान और आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने की मांग करनी चाहिए। वे छात्र संगठन, मीडिया और अन्य हितधारकों का समर्थन भी जुटा सकते हैं ताकि प्रशासन पर दबाव बनाया जा सके।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छात्रों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पहले से ही संघर्ष करना पड़ रहा है, और अब लोकपाल जैसी महत्वपूर्ण संस्था भी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही है।
यह महत्वपूर्ण है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार छात्रों की इन समस्याओं को गंभीरता से लें और उनका समाधान निकालने के लिए उचित कदम उठाएं।
छात्रों के साथ संवाद स्थापित करना और उनकी शिकायतों को सुनना एक स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण के लिए आवश्यक है। लोकपाल जैसी नियुक्तियों का उद्देश्य भी छात्रों की समस्याओं का समय पर और निष्पक्ष निवारण करना है, इसलिए इन पदों पर प्रभावी व्यक्तियों की नियुक्ति और उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है।
(पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर)