यशोदा श्रीवास्तव
भारतीय सेना में अग्निवीर योजना लागू होने के बाद नेपाल के गोरखा युवा निराशा व असमंजस की स्थिति में हैं।
भारत ने 2022 में सैन्य भर्ती प्रणाली में परिवर्तन कर सेना में अग्निवीर योजना लागू की थी। नेपाल सरकार को भारत की यह योजना रास नहीं आई अतः उसने गोरखा युवाओं को भारतीय सेना गोरखा रेजीमेंट में भर्ती पर रोक लगा दी। बावजूद इसके गोरखा युवा भारतीय सेना का हिस्सा बनने को इच्छुक हैं।
वहीं चीन ने अपने लोगों को गोरखा युवाओं को यह समझाने के लिए लगा दिया है कि भारत और नेपाल के बीच उत्पन्न तनाव के बावजूद वे भारतीय सेना का हिस्सा क्यों बनना चाहते हैं ?
दरअसल गोरखा युवाओं की बहादुरी ,निष्ठा और कर्त्तव्यपरायणता ही चीन को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है और इसका लाभ वह स्वयं लेने की कोशिश में है।
भारत की अग्निवीर योजना से गोरखा युवाओं में निराशा को चीन अपने लिए एक अच्छा अवसर की दृष्टि से देख रहा है और वह इन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की हर कोशिश पर उतारू है।
चीन ने गोरखा युवाओं की बहादुरी को उसी समय परखा था जब गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेना में झड़प हुई थी। उस समय भारतीय सेना की तरफ से गोरखा रेजीमेंट के जवानों ने सैन्य बल का प्रदर्शन करते हुए चीनी सेना से डटकर मुकाबला किया था।
भारत की नई सैन्य भर्ती योजना अग्निवीर से नेपाल के गोरखा युवाओं में बेरोजगारी का संकट पैदा हो गया है ऐसे में चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी गोरखा युवाओं पर नजर गड़ाए बैठा है। लेकिन मुश्किल यह है कि 1947 के त्रिपक्षीय समझौते के तहत नेपाल अपने युवा शक्ति को केवल ब्रिटिश और भारत की सेना में ही सेवा की मंजूरी दे सकता है।
फिर भी नेपाल इस बात को लेकर चिंतित है कि भारतीय सेना में भर्ती को इच्छुक उसके युवा किसी तीसरे देश का मोहरा न बन जायं। नेपाल पहले से ही करीब डेढ़ हजार अपने युवाओं के रूस की बैगनर सेना में छिपे तौर पर शामिल होने से चिंतित हैं। नेपाल के ये युवा विदेश में कहीं पढ़ाई कर रहे थे तो खाड़ी देशों में रोजगार या श्रम कर रहे थे। इसी दौरान वे रुस के 2500 अमरीकी डॉलर और साल भर के अंदर रुसी नागरिकता के आफर से आकर्षित हुए और बैगनर का हिस्सा बन गए।
गोरखा रेजीमेंट के एक सेवानिवृत्त सैन्य अफसर ने इस पर चिंता जताते हुए भारत की नई सैन्य भर्ती प्रक्रिया पर पुनर्विचार की आवश्यकता बताई है वहीं भारतीय सेना के अवकाश प्राप्त मेजर जनरल गोपाल गुरूंग कहते हैं कि हर साल भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में 1400 के करीब युवाओं की भर्ती होती थी और इतने ही रिटायर होते थे। नेपाल सरकार द्वारा अग्निवीर योजना के तहत भारतीय सेना में नेपाली युवकों की भर्ती रोक देने से एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नेपाली युवकों की संख्या शून्य हो जाय। वे कहते हैं कि हालांकि अग्निवीर योजना केवल नेपाली गोरखा युवाओं के लिए नहीं है। यह समान रूप से सबके लिए है। इसे लेकर नेपाल की अपनी चिंता हो सकती है लेकिन उसे भर्ती रोकने के अपने फैसले पर विचार करना चाहिए क्योंकि नेपाल अभी भी आर्थिक रूप से न तो समृद्ध हो पाया है और न ही स्वावलंबी।
वे कहते हैं कि भारतीय सेना सिर्फ पैसा कमाने का जरिया नहीं है। वे स्वयं इस गौरवशाली सेना का हिस्सा रहे हैं। यह हमारे लिए एक भावनात्मक जुड़ाव है। इसे भारत और नेपाल के शासकों को समझना होगा। पूर्व सैन्य अफसर गोपाल गुरूंग की चिंता यह है कि सेना की तैयारी कर रहे गोरखा युवाओं की ओर दुनिया के कई देशों की नजर है। ये युवा किसी तीसरे देश के हाथ की कठपुतली बन गए तो बुरा होगा। इनके भविष्य को बचाने की जरूरत है।
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आजाद भारत के पहले ब्रिटिश की सेना में दस गोरखा रेजीमेंट थे। आजादी के बाद चार गोरखा रेजीमेंट ब्रिटिश सेना में समाहित हो गए और छः भारतीय सेना में। वर्तमान में भारतीय सेना में सात गोरखा रेजीमेंट है और उनकी कुल 39 बटालियन है जिसमें 60 प्रतिशत सैनिक नेपाल से हैं और 40 प्रतिशत भारतीय मूल के गोरखाली भाषी हैं। इस तरह करीब 40 हजार गोरखा सैनिक भारतीय सेना में हैं। इसके अलावा एक लाख बीस हजार अवकाश प्राप्त गोरखा रेजीमेंट के नेपाली सैनिक पेंशनभोगी हैं जिन्हें भारत से पेंशन मिलता है।
अग्निवीर योजना के तहत मात्र चार साल के लिए सेना में भर्ती होने वाले जवानों में दक्षता के आधार पर 25 फीसदी को चार साल बाद सेना में ही स्थाई कर दिया जाएगा बाकी 75 प्रतिशत को 12.50 लाख रुपये के एकमुश्त पैकेज ‘सेवानिधि’ के साथ घर भेज दिया जाएगा।इससे पहले भारतीय सेना में भर्ती होने वाले सभी जवानों को पेंशन मिलती थी,लेकिन अग्निवीर योजना में सैनिकों के लिए पेंशन नहीं है।भारत के इस नए सैन्य नीति को नेपाल ने भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन बताया है।
भारतीय सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे तमाम नेपाली युवा कहते हैं कि भले ही उन्हें पहले की तरह पेंशन न मिले, लेकिन अग्निवीर के तहत भर्ती होने में कोई नुकसान नहीं है। सेवानिवृत्त के बाद मिलने वाले धनराशि से वे कोई बिजनेस कर जीवनयापन कर सकते हैं।
तमाम नेपाली युवाओं से बात चीत में ऐसा लगा कि वे भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट का हिस्सा बनने को तैयार हैं। वे कहते हैं कि भारत को भी नेपाल से वार्ता कर सेना भर्ती बहाल करने की पहल करनी चाहिए। कई युवाओं ने साफ कहा कि भारत और नेपाल को इस बात को लेकर चिंतित होना चाहिए कि गोरखा युवाओं पर रूस और चीन की भी नजर है।
यूक्रेन युद्ध के बाद भारी संख्या में नेपाली युवकों का पलायन हुआ है जो गुपचुप तरीके से रूस के निजी सेना बैगनर का हिस्सा बने हैं। बैगनर रूस समर्थक निजी सेना है जो पूर्वी यूक्रेन में रूस समर्थक अलगाववादियों की मदद करता है। अप्रत्यक्ष तौर पर इसे रूसी सेना के नाम से भी जाना जाता है।
रूस समर्थक इस निजी सेना का नेतृत्व येवेगिन ब्रिगेझिम के हाथ में है। अमरीका इस सैन्य संगठन को अंतरराष्ट्रीय आपराधिक संगठन की दृष्टि से देखता है। इन्हें भाड़े के सैनिक नाम से भी जाना जाता है जहां भाषा की कोई बाधा नहीं रहती। बिना रूसी भाषा की जानकारी के ही नेपाल,अफगान व अन्य देशों के युवा बैगनर में शामिल होकर अपनी जान तक देने को तैयार हैं।