सुरेंद्र दुबे
दिल्ली में फरवरी में विधानसभा के चुनाव होने हैं। दिल्ली विधानसभा एक केंद्र शासित प्रदेश है पर केंद्र सरकार की राजधानी दिल्ली के सीने में बैठी हुई है इसलिए यह भाजपा के लिए नाक की लड़ाई है।
भाजपा में सबसे बड़ी नाक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है और उनके बाद दूसरी नंबर की नाक गृहमंत्री अमित शाह की है। अन्य किसी नाक का कोई मतलब नहीं है इसलिए यहां के चुनाव मोदी व शाह की नाक की लड़ाई ही मानी जाएगी।
कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। वर्ष 2015 में जब दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए थे तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे और पूरे देश में उनका परचम लहरा रहा था, क्योंकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी जीत मिल चुकी थी। यह कल्पना से परे था कि ऐसे माहौल में अरविंद केजरीवाल भाजपा को ऐसी पटकनी लगाएंगे कि विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीत लेंगे।

वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव के समय भाजपा के पास डॉ हर्षवर्धन और विजय गोयल जैसे कद्दावर नेता मौजूद थे। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली की सलाह पर मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर चुनाव की जिम्मेदारी सौंप दी थी। अब एक तरफ पूर्व आईआरएस अधिकारी अरविंद केजरीवाल थे तो दूसरी तरफ पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी। किरण बेदी के आने से भाजपा के तमाम नेता मुंह फुलाए हुए थे।
किरण बेदी ने भाजपा के नेताओं को साथ लेकर चलने के बजाए एक पुलिस अफसर की तरह चुनावी डंडा चलाना शुरू किया। अरविंद केजरीवाल अन्ना आंदोलन से निकले एक सिपाही थे इसलिए दिल्ली में उनकी अच्छी छवि व घुसपैठ थी। फिर क्या हुआ, एक सिपाही ने एक आईपीएस अफसर को चारों खाने चित कर दिया।

भाजपा अभी उस हार को भूली नहीं है पर उनके पास ले देकर भोजपुरी गानों की दुनिया से राजनीति में आए मनोज तिवारी के अलावा कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी दिल्ली में बसे पूर्वांचल के लोगों में काफी लोकप्रिय हैं। पर उनकी लोकप्रियता भाजपा की चुनावी वैतरणी को पार लगाने के लिए काफी नहीं है।
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त बिजली, छोटी-छोटी कॉलोनियों तक पीने का पानी, सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की सुंदर व्यवस्था तथा मौहल्ला क्लीनिक खुलवा कर दिल्ली वासियों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी है। सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों को पीछे छोड़ दिया है। बोर्ड परीक्षाओं में निजी स्कूलों का परीक्षा परिणाम 93 प्रतिशत रहा, जबकि सरकार स्कूलों के 96 प्रतिशत छात्र पास हुए।

भाजपा फिर मंदिर और भगवा के नाम पर वोट बंटोरने के प्रयास में है। नागरिकता संशोधन कानून की भी अलख जगाई जा रही है। देशभक्ति, राष्ट्रभक्ति और बिगड़ चुकी अर्थव्यवस्था के बावजूद देश को 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था तक ले जाने के सहारे भाजपा दिल्ली के मतदाताओं के दिलों तक पहुंचना चाहती है।
दूसरी ओर अरंविद केजरीवाल इन मुद्दों को धता बताते हुए झुग्गी–बस्तियों के निवासियों को रजिस्ट्री पत्र सौंपने तथा आज ही 150 नए मौहल्ला क्लीनिकों का उद्घाटन करने जैसे जनता से जुड़ी समस्याओं को हल करने में मशगूल हैं। अब यह तो चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि जनता राष्ट्रवाद के गुमान में वोट देती है या फिर रोजमर्रा की जिंदगानी से जुड़े मसलों के आधार पर ईवीएम पर बटन दबाती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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