Thursday - 11 January 2024 - 7:36 PM

गठबंधन में असमंजस बढ़ा रहा है भाजपा का हौसला 

उत्कर्ष सिन्हा 

लोकसभा चुनावोंं की आधिकारिक घोषणा के पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी को मथ डाला। गोरखपुर से लेकर कानपुर तक मोदी ने ताबड़तोड़ सभाएं की और हजारोंं करोड़ रुपये की योजनाओं की शुरुआत कर दी।

यही नरेंद्र मोदी की शैली है। एक तरफ मोदी हैं जो हमेशा आक्रामकता के साथ मैदान में डटे रहते हैं और दूसरी तरफ एक ऐसा विपक्ष जो अब तक अपने समझौतों के असमंजस से बाहर नहीं निकल पाया है।

अखिलेश यादव और मायावती के बीच हुए समझौते की जमीनी मजबूती से किसी को इंकार नहीं हो सकता लेकिन ये दोनों नेता खुद को चुनावी अभियान  के मोड में नहीं ला सके हैं। दूसरी तरफ सपा बसपा के महागठबंधन में कांग्रेस के शामिल होने या न होने के बारे में भी अभी स्थिति साफ़ नहीं हो पा रही है।

हालांंकि, महागठबंधन ने सोनिया और राहुल के खिलाफ कैंडिडेट नहीं उतारने की घोषणा की तो मंगलवार को कांग्रेस ने भी इशारा दे दिया की वो मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव , फिरोजाबाद में अक्षय यादव , कन्नौज में डिम्पल यादव सहित अखिलेश और मायावती के खिलाफ कैंडिडेट नहीं उतारेगी। लेकिन एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बारे में अभी  कोई फैसला नहीं हो पाया है।

प्रियंका के आने से मजबूत हुई कांग्रेस 

बीते दिनों प्रियंका गांंधी के यूपी की कमान संभालने के साथ ही कांग्रेस का ग्राफ चढ़ने लगा था।  बसपा और सपा के कई बड़े नेताओं की कांग्रेस में ज्वाइनिंग भी  हुई है और ये सिलसिला जारी है। अवध से जुड़े इलाकों में कुछ महत्वपूर्ण दलित चेहरे भी कांग्रेस में शामिल हुए हैं, जिसकी वजह से मायावती की त्‍यौरी चढ़ी हुई हैं।  जानकार बताते हैं  कि समाजवादी पार्टी का एक सॉफ्ट कार्नर कांग्रेस के प्रति जरूर है लेकिन मायावती कांग्रेस के साथ जाने को फिलहाल राजी नहीं हैं।

मायावती को लगता है की अगर कांग्रेस मजबूत हुई तो उसके दलित वोटबैंक  के खिसकने का खतरा  बढ़ जायेगा। कमोबेश ये खतरा समाजवादी पार्टी के साथ भी है। प्रियंका के आने के बाद  मुस्लिम वोटरों का रुझान कांग्रेस की तरफ बढ़ा है। मुस्लिम वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी के साथे बीते 25  सालों से रहा है।

कांग्रेस लगातार अपने उम्‍मीदवारों की घोषणा भी करती जा रही है। बदायूं से सलीम शेरवानी की उम्‍मीदवारी ने समाजवादी पार्टी के तेवर सख्त कर दिए हैं। बदायूं से यादव परिवार के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य धर्मेंद्र यादव जीतते रहे हैं और इस बार भी धर्मेंद्र मैदान में हैं। इस सीट पर कांग्रेस ने कैंडीडेट उतार कर धर्मेंद्र को मजबूत चुनौती दी है।

इसके बाद ही अखिलेश यादव का एक तल्खी भरा बयान भी आ गया। इसी तरह महागठबंधन की मजबूत  मानी जाने वाली  मुरादाबाद सीट पर भी यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर को उतारने की चर्चा है। चुनौती देने में महागठबंधन भी पीछे नहीं है।  जितिन प्रसाद की पारम्परिक सीट धरौहरा पर बसपा ने मजबूत कैंडिडेट उतारा है।

लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अब तक यूपी से 11 प्रत्याशियों के नाम का ऐलान कर दिया हैं। इन 11 प्रत्याशी में से अधिकतर वही हैं जो 2009 और 2014 में चुनाव लड़ चुके हैं। कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में मजबूत कैंडिडेट उतारकर गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जिसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है। इन 11 सीटों में से गठबंधन की तरफ से सपा को चार और बसपा को पांच सीटें मिली हैं।

दलित मुस्लिम वोटों पर नजर 

कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में  सहारनपुर, बदायूं और फर्रुखाबाद से मुस्लिम कैंडिडेट को उतारा है। सहारनपुर से इमरान मसूद इलाके का एक बड़ा नाम हैं और वे निश्चित रूप से मुस्लिम वोटों का विभाजन करेंगे। गठबंधन में यह सीट बसपा के खाते में गई है।

सहारनपुर में कुल 56.74 फीसदी हिंदू, 41.95 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या है।  इसके साथ ही इस इलाके में दलितों के बीच चंद्रशेखर रावण का बड़ा असर है। चंद्रशेखर और इमरान नजदीक रहे हैं और इमरान को इसका फायदा मिलेगा।

सहारनपुर पर मायावती अपना दावा करती रही हैं। अगर इमरान और  रावण की जुगलबंदी चली तो अगल बगल की कम से काम 4  सीटों पर इसका असर होना तय है। जाहिर हैं  इसका नुकसान गठबंधन को ही होगा

हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 में से 71 सीटें जीतने वाले एनडीए के लिए इस बार राह इतनी आसान भी नहीं । सपा-बसपा-आरएलडी के महागठबंधन की जमीनी चुनौती के साथ ही बदली हुई रणनीति के साथ मैदान में उतरी कांग्रेस ने प्रदेश की 17 लोकसभा सीटों पर भाजपा की चुनौती को काफी हद तक बढ़ा दिया है।

भाजपा अपने एंटी इंकम्बेंसी को काम करने के लिए अपने करीब 28 मौजूदा सांसदों का टिकट काटने का मन बना चुकी है, इसके साथ ही भाजपा ने अपने गठबंधन के सहयोगियों ओमप्रकाश राजभर और अनुप्रिया पटेल के साथ अपने रिश्ते भी दुरुस्त करने की कोशिश की है।

हाल अनुप्रिया पटेल वाले अपनादल के 9  और ओमप्रकाश राजभर की भासपा के 7 नेताओं को यूपी सरकार ने बिभिन्न निगमों में समायोजित किया है। अमित शाह से हुई मुलाकात के बाद अनुप्रिया पटेल और ओम प्रकाश राजभर के तेवर नरम जरूर पड़े हैं, लेकिन सीटों के  पेंच अभी भी फंसा हुआ है।

कांग्रेस अगर अकेली लड़ती है तो मुकाबला त्रिकोणीय होगा। बीते चुनावो में महज 9 प्रतिशत वोट पाने  वाली कांग्रेस इस वकत थोड़ी बेहतर स्थिति में दिखाई दे रही है। कांग्रेस अगर गठबंध का हिस्सा  तो भाजपा के लिए ये एक बेहतर स्थिति होगी, क्यूंकि भाजपा विरोधी वोटो का बंटवारा करीब करीब हर सीट पर होगा। विपक्ष अभी इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाया है और यही भाजपा के लिए फिलहाल एक बड़ी राहत है।

 

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