Sunday - 7 January 2024 - 5:35 AM

राजनेताओं के लिए जातीय सर्वे क्यों जरूरी? और क्या मजबूरी

जुबिली न्यूज डेस्क

जातिगत जनगणना को लेकर एक बार फिर सियासत तेज हो गई है. उत्तर प्रदेश में भी मांगे उठने लगी है, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसकी मांग की थी जिसके बाद अब बसपा सुप्रीमों भी पिछे नहीं रही कही न कही मजबुर होकर आखिरकार मायावती ने भी जातिगत जनगणना की मांग की है.

बिहार में जातीय सर्वे पर रोक हटने से यूपी में भी सियासी पारा चढ़ने लगा है. वो राजनीतिक दल जिनकी राजनीति जातिगत गुणा-भाग पर चलती है उनके लिए इसका विरोध कर पाना संभव नही है. यही वजह है कि सत्ता पक्ष के साथ हों या विपक्ष के पटना हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद उन नेताओं ने जातिगत सर्वे का स्वागत किया है. चाहे एनडीए का हिस्सा हों या विपक्ष के दल, सभी जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं.

अब जिस तरह से बीएसपी प्रमुख मायावती ने बीजेपी पर हमला बोल कर प्रदेश के साथ-साथ देश भर में जातिगत जनणना की मांग उठाई है, उससे साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में इस बार जातिगत जनगणना बड़ा मुद्दा बनेगा.

अखिलेश यादव ने किया स्वागत

अखिलेश यादव में ट्वीट कर कहा है कि जातिगत सर्वेक्षण पर रोक हटना सामाजिक न्याय की जीत है. उनका कहना है कि कि जातीय जनगणना ही सामाजिक न्याय का सच्चा रास्ता साबित होगा. अखिलेश यादव जातीय गणना की मांग यूपी में भी उठाते आये हैं. लोकसभा चुनाव की तैयारी के क्रम में अखिलेश यादव ने इस बार पीडीए का फॉर्मूला बनाया है. पीडीए में पी का मतलब पिछड़े, डी से दलित और ए से अल्पसंख्यक है. अखिलेश यादव पीडीए को बीजेपी के हिंदुत्ववादी राजनीति की काट के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.

कौन कौन जातीय सर्वे के पक्ष में?

उत्तर प्रदेश में जातियों की राजनीति करने वाले अन्य नेता भी जातीय सर्वे के समर्थन में रहे हैं. इसमें अखिलेश यादव और मायावती के अलावा बीजेपी के सहयोगी भी शामिल हैं. इसमें केंद्रीय मंत्री और अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल, यूपी सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद और सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर हैं. सहयोगियों के अलावा बीजेपी के कद्दावर नेता और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी जातीय जनगणना के सवाल पर इसका समर्थन करते रहे हैं. हालांकि वो खुद से ये मांग नहीं उठाते बल्कि सवालों के जवाब में ही समर्थन करते दिखते हैं.

जातीय सर्वे क्यों जरूरी? और क्या मजबूरी

उत्तर प्रदेश में जातियों का हमेशा से बेहद अहम रोल रहा है. हिंदुत्व की राजनीति का झंडा उठाने वाली बीजेपी को रोकने के लिए विपक्षी दलों का सबसे धारदार हथियार जातियां ही हैं. विरोधी दलों के अलावा सत्ता के साथ खड़े दल भी इस मामले पर खुलकर समर्थन करते रहे हैं. उनकी मजबूरी भी है क्योंकि उनकी राजनीतिक जमीन जातियों के गणित पर ही आधारित है और वो भी पिछड़ी जाति. ऐसे में वो कमज़ोर जातियों को इसी बहाने अपने साथ जोड़े रखने के लिए समय समय पर ये मांग उठाते रहे हैं. बीजेपी इस मामले पर बेहद सजग है. उसे मालूम है कि जातीय गणना का विरोध उसे नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए पार्टी खुल कर सामने नहीं आती. सरकार भी खामोश रहती है लेकिन पार्टी के पिछड़े वर्ग से जुड़े नेता इसका समर्थन करते रहते हैं जिससे उनकी छवि पिछड़े विरोधी के तौर पर न बन जाए.

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विधानसभा में हुई थी नोकझोंक

फरवरी महीने में विधानसभा सत्र के दौरान सपा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने जातीय जनगणना का मुद्दा सदन में उठाते हुए कहा था कि जातीय जनगणना के बिना हमारी आबादी, हिस्सेदारी पता नहीं चलेगी. ऐसे में आप कैसे सबका विश्वास जीतेंगे. उन्होंने कहा कि जातीय जनगणना के बिना लोगों का विकास अधूरा रहेगा. सबका साथ सबका विकास बिना जाति जनगणना के संभव नहीं है.

अन्य कई राज्य भी कर चुके हैं मांग 

केवल बिहार ही नहीं बल्कि कुछ और राज्य भी हैं जो जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. बिहार, महाराष्ट्र और उड़ीसा ने भी जातिगत जनगणना की मांग की है. वहीं इन राज्यों के अलावा कुछ संगठनों ने भी मांग की है.

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