Saturday - 6 January 2024 - 5:19 AM

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में शारीरिक संबंध बनाना रेप है या नहीं, जानें बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा

जुबिली न्यूज डेस्क 

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। शादीशुदा वयस्कों के बीच सहमति से बने विवाहेतर रिश्ते को रेप मानने से इनकार कर दिया है। यही नहीं, कोर्ट ने इस रिश्ते का राज खुलने के बाद महिला द्वारा आरोपी प्रेमी के खिलाफ दर्ज रेप की एफआईआर रद्द कर दी है।

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा एफआईआर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से जुड़ी महिला के पति के घर छोड़ने का नतीजा है। ऐसी परिस्थिति में हमें यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना और कुछ नहीं, केवल कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

जस्टिस अनुजा प्रभु देसाई व जस्टिस एनआर बोरकर की बेंच ने कहा कि शिकायतकर्ता अच्छी तरह से जानती थी कि आरोपी शादीशुदा है। वह शादी के दौरान उससे विवाह नहीं कर सकता है। इसके बावजूद दोनों शादीशुदा वयस्कों ने संबंध बनाए। दोनों के बीच रजामंदी से रिश्ते बने थे।

जो सहज ढंग से तब तक जारी रहे, जब तक उनका खुलासा नहीं हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि महिला के पति ने उसे छोड़ दिया। इसके बाद एफआईआर दर्ज कराई गई, अन्यथा यह रिश्ता सहमति से चल रहा था। मौजूदा केस में शिकायतकर्ता को तथ्यों को लेकर कोई गलतफहमी नहीं थी।

पति के छोड़ने के बाद दर्ज कराई शिकायत

एफआईआर में वर्णित तथ्यों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने पाया कि केस का आरोपी और शिकायतकर्ता विवाहित हैं। उनके बच्चे भी हैं। पुलिस महकमे से जुड़े दोनों लोगों का शुरुआती परिचय जल्द ही प्रेम संबंधों में बदल गया था। जनवरी 2020 से मई 2021 तक दोनों एकदूसरे के साथ विवाहेतर रिश्ते में शामिल थे। दोनों ने कई बार शारीरिक संबंध बनाए। समस्या तब शुरू हुई, जब दोनों के विवाहेतर रिश्ते की भनक उनके पति-पत्नी को लग गई। फिर महिला ने पुलिस में आरोपी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, अन्यथा उनका रिश्ता सुचारू रूप से सहमति से चल रहा था।

जबरदस्ती संबंध बनाने का आरोप

कोर्ट ने साफ किया कि इस केस की एफआईआर में उल्लेखित तथ्यों से आईपीसी की धारा 375 के अर्थ में रेप और धोखाधड़ी के अपराध का खुलासा नहीं होता है। लिहाजा आरोपी के खिलाफ मुंबई सत्र न्यायालय में आईपीसी की धारा 376, 376(2), 377 और 420 के तहत प्रलंबित केस रद्द किया जाता है।

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आरोपी ने एफआईआर और कोर्ट में पेंडिग केस को रद्द करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। याचिका में दावा किया गया था कि महिला के आरोपों से रेप का मामला नहीं बनता है। महिला की शिकायत के मुताबिक, आरोपी ने उसे पत्नी को तलाक देकर शादी का वादा किया था। आरोपी ने उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाए थे।

यह दीं दलीलें

सुनवाई के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि आरोपी व महिला के बीच सहमति से रिश्ते बने थे। इसलिए रेप का केस नहीं बनता, जबकि शिकायतकर्ता के वकील ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोर्ट को अपराध की गंभीरता को देखते हुए एफआईआर रद्द करने के अधिकार का संयमित ढंग से इस्तेमाल करना चाहिए। बेंच ने कहा कि कोर्ट न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए और न्याय के उद्देश्य को सुरक्षित रखने के लिए एफआईआर रद्द करने के अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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