Tuesday - 22 July 2025 - 10:33 AM

उपराष्ट्रपति का इस्तीफा: नाराजगी की पटकथा पहले से लिखी जा चुकी थी?

जुबिली स्पेशल डेस्क

नई दिल्ली। देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार रात अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है। बताया जा रहा है कि उन्होंने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है, लेकिन सूत्र कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

कार्यकाल अधूरा छोड़ने वाले तीसरे उपराष्ट्रपति

जगदीप धनखड़ वर्ष 2022 में उपराष्ट्रपति बने थे और उनका कार्यकाल 2027 तक था। लेकिन अब वह कार्यकाल पूरा न करने वाले देश के तीसरे उपराष्ट्रपति बन गए हैं। इससे पहले कृष्णकांत और वीवी गिरी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे।

BAC बैठक और नाराज़गी की वजह

सोमवार को संसद के मानसून सत्र के दौरान बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की दो बार बैठक हुई। दोपहर की बैठक के बाद शाम 4:30 बजे फिर से मीटिंग बुलाई गई, लेकिन सत्ता पक्ष के दो अहम चेहरे, राज्यसभा में नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू इस बैठक से अनुपस्थित रहे।

सूत्रों के अनुसार, इन मंत्रियों की गैरमौजूदगी से उपराष्ट्रपति धनखड़ नाराज़ हो गए। सबसे अहम बात यह रही कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से यह सूचना भी नहीं दी गई कि दोनों नेता बैठक में नहीं आ रहे हैं। इसके चलते उन्होंने BAC की अगली बैठक मंगलवार दोपहर 1 बजे के लिए टाल दी।

राजनीतिक हलकों में चर्चाएं तेज

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर कहा कि यह पूरी स्थिति बेहद असामान्य रही और इसके पीछे जरूर कोई गंभीर राजनीतिक संदेश छिपा हुआ है। उन्होंने दावा किया कि दोपहर और शाम के बीच कुछ ऐसा हुआ, जिसने इस्तीफे की भूमिका तैयार कर दी।

वहीं, कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने इस घटनाक्रम को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़ते हुए कहा कि बीजेपी चुनावी रणनीति के तहत यह फैसला ले रही है। भगत ने संकेत दिया कि हरिवंश को उपराष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है।

क्या पार्टी दबाव में थे धनखड़?

कई विपक्षी नेताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि बीजेपी नेतृत्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर पार्टी लाइन पर चलने का दबाव बना रहा था, जिससे वे मानसिक रूप से असहज महसूस कर रहे थे। यह भी कहा जा रहा है कि लगातार हो रही अनदेखी और सीमित संवाद ने उन्हें यह कड़ा फैसला लेने पर मजबूर किया।

धनखड़ का इस्तीफा केवल एक स्वास्थ्यगत फैसला नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक नाखुशी और संस्थागत असंतोष छिपा हो सकता है। आने वाले दिनों में यदि बीजेपी की तरफ से कोई बड़ा नाम सामने आता है, तो यह पूरी घटनाक्रम और भी स्पष्ट हो जाएगा।

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