Saturday - 6 January 2024 - 4:13 PM

दो सौ छप्पन तरह की मिठाइयां बनाते हैं छप्पन भोग

जायका लखनऊ का / कैसे पहुंचे शून्य से शिखर तक

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव

कोई 28 साल पहले शहर के दूसरे कोने सदर क्षेत्र में एक मिठाई की दुकान छप्पन भोग के नाम से खुली। चौक से लेकर हजरतगंज तक पचासों मिठार्ई की दुकानें तरह-तरह की मिठाई पेश कर रहे थे लखनवाइट्स के लिए। उनसे किसी तरह का मुकाबला करना वे सोच भी नहीं सकते थे। उन्हें विश्वास था अपनी क्वालिटी और हुनर पर।

नाम जरूर छप्पन भोग था लेकिन उस जमाने में बीस पच्चीस तरह की मिठाइयां ही बमुश्किल यहां बनती थीं। हेल्पर और कारीगर मिलाकर तीन लोग ही थे जो समोसा खस्ता से लेकर लड्डू, बर्फी व अन्य मिठाइयां बनाते थे।

छप्पन भोग के जनक और सृजक राम सरन गुप्ता को विश्वास था कि एक दिन वे भी अपनी मिठाइयों के जरिये पूरी दुनिया में जाने जाएंगे। आखिर उनकी व उनके तीनों बेटों की मेहनत रंग लायी और आज वे दो सौ छप्पन तरह की देशी घी की मिठाइयां और तीस-पैंतीस तरह के नमकीन बनाते हैं।

यही नहीं होली पर पचास हजार रुपये किलो वाली सोने की गुझिया भी बनाते हैं दिवाली में सोने के वर्क वाली मेवों से लेस पचास हजार रुपये वाली एक्जाॅटिका नाम की मिठाई भी मिलती है।

इसकी दो पीस वाली एक हजार की पैकिंग भी उपलब्ध है। उनकी मिठाइयां आईएसओ-2008 सर्टिफाइड हैं और यूएस, कनाडा, यूरोप और गल्फ कंट्रीज में आन लाइन जा रही हैं…

कहते हैं कि कोई काम तभी ऊंचाई पाता है जब पूरा परिवार लगता है। राम सरन के सबसे बड़े बेटे रवीन्द्र गुप्ता जो कानून की पढ़ाई के साथ पोस्ट ग्रेज्युएट हैं, बताते हैं कि छप्पन भोग को ब्रांड बनाने में उनके बाकी दो भाइयों विनोद और शेखर का भी बहुत बड़ा योगदान है।

हमने अपनी पैकेजिंग और हाईजीन का विशेष ख्याल रखा। हम आज आईएसओ-2008 व एचएसीसीपी सर्टिफाइड ब्रांड हैं। हमारी शुरुआत काफी छोटे स्तर से हुई थी। तब केवल तीन आदमी ही काम करते थे।

आज तीस कारीगरों और हेल्पर का स्टाफ है। हमने हमेशा इस बात का ध्यान रखा कम से कम गलतियां की जाएं। हमें जनता एक सीमा तक ही माफ कर सकती थी।

हमने कम से कम गलतियां कीं और शहर के एक कोने में होने के बावजूद लजीज मिष्ठान के दीवाने हम तक पहुंचने लगे। हमारे पास स्पेस भी कम था अत: लोग खड़े-खड़े पकवानों का स्वाद लेते।

यूं तो हम दो सौ छप्पन तरह की मिठाइयां बनाते हैं लेकिन प्रीमियम क्वालिटी की मेवा बाइट इंडिया में इंट्रोड्यूज करने वाले हमी हैं। इसकी डिमांड विदेशों में बहुत है।

इसके अलावा काजू कतली, ड्राई फ्रूट चिक्की, सोहन हलवा, पतीसा, सोहन पापड़ी, कराची का हलवा, बेसन के लड्डू व सभी तरह के पेठों को विदेशों में बैठे लोग बड़े शौक से मंगवाते हैं।

ये सभी मिठाइयां जल्दी खराब नहीं होतीं। हमारी जलेबियों की खासियत यह है कि इतनी छोटी और क्रिस्पी जलेबियां आपको शायद ही कहीं मिलें।

रवीन्द्र बताते हैं कि हम देशी घी में मिठाइयां बनवाते हैं। कुछ नमकीन ऐसे हैं जो रिफाइंड व सरसों के तेल में ही जायकेदार बनते हैं। हमने आधुनिक मशीनों को इस्तेमाल भी शुरू किया है लेकिन हम मशीनों को उसी सीमा तक इस्तेमाल करते हैं जिससे हमारा स्वाद बरकरार रहे। हम अपनी क्वालिटी को मेनटेन करने के लिए सबसे बेहतर सामग्री का चयन करते हैं। चाहे वह खोया हो, ड्राई फ्रूट्स हों, दूध हो या मैदा, बेसन या मसाले हों।

रवीन्द्र बताते हैं कि हमने देखा कि लखनऊ में एक वर्ग सुबह के नाश्ते में वैराइटी पसंद करता है। यही नहीं यहां के बुजुर्ग शाम की जगह सुबह पार्टी करना पसंद करते हैं वो भी समोसे, खस्ते और जलेबी के अलावा भी कुछ मजेदार डिश के साथ। हमने उनके लिए ढोकला, मलाई मक्खन व खांडवी को ताजा व जायके से परिपूर्ण गर्मागर्म पेश किया।

यही नहीं हम पचास हजार रुपये किलो की सोने के वर्क वाली गुझिया भी बनाते हैं। होली पर बनायी जाने वाली इस गुझिया में हिमाचल से लाया गया चिलगोजा अौर कश्मीर से लायी गयी केसर का इस्तेमाल होता है। इसका एक पीस आठ सौ रुपये में मिलता है। गल्फ कंट्री में इसकी खास मांग रही है।

पैकेजिंग की बात चली तो रवीन्द्र बताते हैं कि किसी भी चीज को पेश करने का तरीका अगर उम्दा, आर्टिस्टिक और नफीस नहीं है तो उसमें रखी चीज अपना जायका खो देती है।

कहते हैं कि आदमी कोई भी चीज मुंह से खाने से पहले आंखों से खाता है। और फिर कोई चीज सबसे अलग तरह की पैकेजिंग में आप किसी को भेंट करते हैं तो आपको भी एक खास तरह की स्पेशल फील आती है जो अंदर तक सुख देती है साथ ही गर्व का भी अहसास कराती है।


ब्रांच खोलने व फ्रेंचाइजी देने के सवाल पर रवीन्द्र बताते हैं कि हम नहीं चाहते हैं कि हमारी मेहनत से बनाये नाम को और लोग अपनी तरह से बर्बाद करें। हां, ब्रांच खोलने की दिशा में हम जरूर सोच रहे हैं। मैं मानता हूं कि आज सभी को अपने दरवाजे पर हर मनचाही चीज चाहिए। ग्राहक आराम से घर में बैठकर हमारे पकवान और मिष्ठान का आनन्द लेना पसंद करते हैं। हमारी मिठाइयां आईएसओ -2008 सर्टिफाइड हैं और भारत के अलावा यूएस, कनाडा, यूरोप और गल्फ कंट्रीज में आन लाइन जा रही हैं।

रवीन्द्र बताते हैं कि कोई भी बिजनेस एक पेड़ लगाने की तरह ही होता है। पहले वह पौधा होता है उस पर मौसम की मार पड़ती है। तमाम तरह के झंझावत को झेलते हुए वह बढ़ने की प्रक्रिया में संलग्न रहता है।

फिर वह और बड़ा होता है आंधी तूफान को भी झेलने की ताकत अपने में पैदा कर लेता है। और फिर वह एक मजूबत पेड़ बनकर खड़ा हो जाता है।

वह छाया भी देता है और स्वदिष्ट फल भी। अभी हम ग्रो कर रहे हैं। एक बात मैं जरूर कहना चाहूंगा कि हमें लोगों को प्यार और सपोर्ट मिला जिसके चलते हम यहां तक पहुंचे हैं।

हम लोगों को प्यार और सहयोग को हमेशा सम्मान देते आये हैं और अपने उन ग्राहकों को भी निराश नहीं करते जो डायबिटीज को फेस कर रहे हैं। उनके लिए दस बारह तरह की शुगर फ्री मिठाइयां बनाते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी दुकान से कोई बिना मुंह मीठा किये न जाए। हमारी मेहनत का इनाम तो ग्राहक के चेहरे पर आयी मुस्कान ही है।

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