अशोक कुमार
वर्तमान समय में ऐसा देखा और सुना गया है कि उच्च शिक्षा में छात्र text books नहीं पढ़ते, केवल one week series में interested होते हैं या YouTube से पढ़ लेते हैं । प्रकाशक Text book छापने में असमर्थता दिखाता है । भविष्य में क्या होगा ?
यह एक बहुत ही प्रासंगिक और गंभीर चुनौती है जिसका सामना वर्तमान में भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली, विशेषकर प्रकाशक और शिक्षक कर रहे हैं। छात्रों का यह रुझान अकादमिक गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।

भविष्य में, इस प्रवृत्ति का परिणाम शायद पूरक पाठ्य सामग्री (Supplemental Study Material) के हावी होने और पारंपरिक पाठ्यपुस्तकों (Textbooks) की भूमिका के बदलने के रूप में सामने आएगा।
वर्तमान स्थिति का विश्लेषण और कारण
छात्रों के पाठ्यपुस्तकों से दूर होने और ‘वन वीक सीरीज़’ या YouTube पर निर्भर होने के मुख्य कारण ये हैं: परीक्षा-केंद्रित दृष्टिकोण (Exam-Centric Approach): छात्र केवल न्यूनतम प्रयास में अधिकतम अंक प्राप्त करना चाहते हैं। ‘वन वीक सीरीज़’ या YouTube वीडियो सीधे परीक्षा के प्रश्नों पर केंद्रित होते हैं, जिससे छात्रों को लगता है कि वे समय बचा रहे हैं।
अवधारणात्मक बोझ (Conceptual Burden): पारंपरिक पाठ्यपुस्तकें विस्तृत और गहन होती हैं। कई छात्र, खासकर सामान्य कॉलेजों में, विषय की जटिलता को समझने के बजाय, केवल पास होने के लिए सरल सारांश चाहते हैं। डिजिटल पहुँच और सुविधा (Digital Access and Convenience): YouTube, PDF नोट्स और वन-वीक सीरीज़ आसानी से उपलब्ध हैं और अक्सर निःशुल्क होते हैं। छात्र इन्हें कहीं भी, कभी भी पढ़ या देख सकते हैं, जबकि पाठ्यपुस्तकें महँगी और भारी होती हैं।
पठन संस्कृति की कमी: छात्रों में अब गहन पठन (Deep Reading) और शोध की आदत कम हो गई है, वे त्वरित और दृश्य सामग्री (Quick Visual Content) पसंद करते हैं। भविष्य में क्या होगा? (भविष्यवाणी)यह स्थिति उच्च शिक्षा के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित करेगी:
1. पारंपरिक पाठ्यपुस्तकों का स्वरूप परिवर्तन
छोटे और केंद्रित प्रकाशन: प्रकाशक अब विशाल, महंगी पाठ्यपुस्तकों के बजाय छोटी, मॉड्यूल-आधारित (Module-based) और अद्यतन (Updated) सामग्री प्रकाशित करेंगे जो केवल मुख्य अवधारणाओं पर केंद्रित होगी।
डिजिटल पाठ्यपुस्तकें (E-Textbooks) और हाइब्रिड मॉडल: पाठ्यपुस्तकें अनिवार्य रूप से डिजिटल रूप (ई-बुक या ऐप) में उपलब्ध होंगी, जिसमें इंटरैक्टिव क्विज़, वीडियो लिंक और 3D मॉडल जैसे डिजिटल पूरक शामिल होंगे।
खुला शैक्षिक संसाधन (OER) का उदय: गुणवत्तापूर्ण सामग्री को कम लागत पर उपलब्ध कराने के लिए ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज (OER) का उपयोग बढ़ेगा, जिससे प्रकाशकों को मुद्रण से जुड़ी समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
2. शिक्षक की भूमिका में परिवर्तन
पुनः प्रमाणन (Re-validation) की आवश्यकता: शिक्षकों को छात्रों को यह विश्वास दिलाना होगा कि केवल वन-वीक सीरीज़ पर्याप्त नहीं है। उन्हें पाठ्यपुस्तकों की सामग्री को कक्षा में व्यावहारिक अनुप्रयोगों (Practical Applications) के साथ जोड़कर पढ़ाना होगा।
स्रोत के रूप में शिक्षक: छात्र अब जानकारी के लिए पूरी तरह से शिक्षक पर निर्भर होंगे, जिसे शिक्षक को विभिन्न विश्वसनीय स्रोतों (Reliable Sources) (पाठ्यपुस्तकें, शोध पत्र, वीडियो) से एकत्र करना होगा और कक्षा में प्रस्तुत करना होगा।
3. प्रकाशकों का रूपांतरण (Transformation of Publishers)
कंटेंट प्रदाता (Content Providers): प्रकाशक अब मुद्रण कंपनी (Printing Company) के बजाय “शैक्षणिक समाधान प्रदाता” (Educational Solutions Provider) बन जाएँगे। वे पाठ्यपुस्तकों को छापने के बजाय डिजिटल सब्सक्रिप्शन मॉडल, ऑनलाइन सामग्री और परीक्षा तैयारी प्लेटफ़ॉर्म पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
परीक्षा केंद्रित प्रकाशनों का प्रभुत्व: वन वीक सीरीज़ या इसी तरह के परीक्षा-केंद्रित गाइड का उत्पादन बढ़ेगा, क्योंकि उनकी बाज़ार में मांग अधिक है। हालांकि, यह अकादमिक गुणवत्ता के लिए चिंता का विषय रहेगा।
अकादमिक गुणवत्ता के लिए खतरा
यह रुझान राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के गहन ज्ञान, अनुसंधान और बहु-विषयक शिक्षा के लक्ष्य को गंभीर रूप से चुनौती देता है।
सतही ज्ञान: वन-वीक सीरीज़ या त्वरित वीडियो से प्राप्त ज्ञान सतही होता है, जो छात्रों को उच्च अध्ययन (Higher Studies) या अनुसंधान के लिए तैयार नहीं करता।
कौशल की कमी: जब छात्र गहन पठन नहीं करते हैं, तो उनकी विश्लेषणात्मक क्षमता (Analytical Skills) और जटिल समस्या-समाधान (Complex Problem-Solving) कौशल कमज़ोर होते हैं।
निष्कर्ष:
भविष्य में, उच्च शिक्षा का परिदृश्य पाठ्यपुस्तक-मुक्त (Textbook-free) नहीं होगा, लेकिन यह निश्चित रूप से पेपर-मुक्त (Paper-free) और वन-वीक सीरीज़ द्वारा संचालित हो सकता है। छात्रों की इस प्रवृत्ति को बदलने के लिए शिक्षकों को कक्षा में पाठ्यपुस्तकों का महत्व सिद्ध करना होगा और प्रकाशकों को डिजिटल और इंटरैक्टिव सामग्री के साथ नवाचार करना होगा।
(लेखक पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर रह चुके हैं)
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