Sunday - 7 January 2024 - 1:54 PM

माता पिता और बच्चे के रिश्ते की आध्यात्मिक नींव

प्रशस्य दत्त

पिछले लेख में हमने शादी और उसके आध्यात्मिक महत्व पर चिंतन किया था और आध्यात्मिक प्रेम द्वारा पति पत्नी के बीच आपसी एकता की प्राप्ति का विवरण दिया था। इस लेख में हम माता पिता और बच्चों के बीच कैसे आपसी प्रेम और समझ को बढ़ायें और अपेक्षाओं की जगह बच्चों को एक ऐसा वातावरण दें जहां उनकी स्वेच्छित और स्वतंत्र विकास हो।

हमारा प्रेम यदि हमारे प्रिय के बंधन बन जाए तो वो प्रेम आत्म इच्छा की पूर्ती दर्शाता है और शरण भर की मानसिक संतुष्टि इन बंधन वाली अपेक्षाओं की उत्पत्ति का कारण होती हैं। वही प्रेम यदि अध्यात्म पर आधारित हो और बंधन और अपेक्षाओं की जगह अपने प्रिय की स्वतंत्र विकास और स्वेछित हृदयपूर्वक निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ावा दे, ऐसा प्रेम दूसरों व स्वयं का आत्मिक विकास और एक अनंत आत्मिक संतुष्टि और समझ प्रदान करता है।

बच्चों के साथ माता पिता का रिश्ता यदि इस आद्यात्मिक आधार पर हो तो माता पिता बच्चों के लिए एक नींव प्रदान करते हैं जहां वे एक निर्णय लेने वाले की जहां एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। माता पिता स्वयं एक उम्र में बच्चे थे उनकी अपनी इच्छाएं थीं ,तब उनके माता पिता की उनसे अपेक्षाएं थी उस समय और समाज और उनकी समझ के आधार पर।

इस तरह की परिस्थिति में बच्चों के रूप में शायद उनमे से कुछ ने अपनी इच्छा व्यक्त भी की होगी और शायद कई ने अपनी इच्छाओं को अपने अंदर ही रख दिया होगा। पीढ़ी दर पीढ़ी जो सोच में विकास होता है और यदि हम इसके साथ नहीं बढ़ते हैं तो माता पिता एक नई समझ और दृष्टिकोण से अपने बच्चों को नहीं देख पाते हैं। वे कोशिश करते हैं भरपूर लेकिन सोच का दायरा उनके प्रयास की सीमाओं को निर्धारित कर देता है।बच्चों के रूप में माता पिता की खुद इच्छाएं थीं, वे खुद चाहते थे कोई हमे समझे और समय दे, उनके बच्चे भी यही चाहते हैं। आज माता पिता के पास अपने जीवन के इस हिस्से को अपने बच्चों के साथ मिलकर विकसित करने का मौका है। अपेक्षाओं की जगह उनकी इच्छाओं को समझना और एक स्वतन्त्र मार्गदर्शक के रूप में अपने बच्चों के जीवन में यह भूमिका निभाना।

पति पत्नी का रिश्ता जहां आपसी एकता का होता है प्रेम के द्वारा एक दूसरे में विलीन हो जाना वहीं बच्चों के साथ यही प्रेम एक नया रूप ले लेता है, जैसे प्रकृति जीवों को जीवन के लिए साधन देती है और यह हमारे ऊपर होता है की हम उन संसाधनों का उपयोग किस प्रकार करते हैं, यह हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास की नींव रखता है जहां हम खुद के माध्यम से सीखते हैं और समझते हैं, और आज भी हम सबसे खुश तब होते हैं जब हम प्रकृति की गोद में होते हैं।

यदि हम भी प्रकृति की तरह, हमारे बच्चों को जिनको होने जीवन दिया है उनको एक स्वतन्त्र विकास का वातावरण एक मार्गदर्शक के रूप में दें तो हम भी यही सुख अपने बच्चों के साथ प्राप्त कर सकते हैं जहां प्रेमपूर्वक एक दूसरे को समझना और सीखना रिश्ते की नींव बनाता है। अपने जीवन और अपने भतार अपने हृदय की भावनाओं से आज हम अपने बच्चों को समझने की कोशिश करें और वो प्रेम दें और दर्शन दें जो हमारे हृदय ने प्रेमपूर्वक इच्छित किया था तो हमारे बच्चे भी वैसे ही रिश्ता हमसे रखेंगे जैसे वही स्वतंत्रता और प्रेम किसी ने हमे दिया होता है।

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