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हवा में ही है पुणे का नया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा

  • फिलहाल फाइलों से निकल पर धरातल आता नजर नहीं आ रहा एयरपोर्ट

मोहन सिन्हा

पुणे के लोगों का अपने एयरपोर्ट का सपना पता नहीं कब फाइलों से निकल कर हकीकत में तब्दील होगा।

ऐसा नहीं कि पुणे में कोई एयरपोर्ट नहीं है। वास्तव में जो है वह वायुसेना की जमीन पर है।

वहां आने-जाने वाले हवाई यात्रियों पर कई तरह की पाबंदियां रहती हैं। इसके साथ वायु सेना लगातार भारत सरकार और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया से अपनी जमीन वापस मांग रही है ताकि वह भी अपने आधुनिक लड़ाकू विमानों के लिए उसको अपग्रेड और विस्तारित कर सके।

हालांकि पुणे में एयरपोर्ट आस्तित्व में बहुत पहले आ गया था। वर्ष 1939 में रॉयल एयरफोर्स ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बम्बई को एयर कवर देने के लिए पुणे में हवाई पट्टी की स्थापना की थी।

यह हवाई पट्टी1990 दशक में भी संचालित होती रही। लेखक का पुणे हवाई पट्टी पर वर्ष 1972 में इंडियन एयरलाइंस के प्लेन से यात्रा का अनुभव है, तब वह 14 वर्ष के थे।

उस समय वहां एक टिन शेड हुआ करता था जो फ्लाईट आने के आधा घंटे पहले खुुलता था। कुछ कुर्सियां वहां लगा दी जाती थीं।

जैसे ही फ्लाईट लैंड करती थी, एक अधिकारी वहां आता था और सबके टिकट चेक करने के बाद यात्रियों को जाने की इजाजत देता था।

फिर जैसे ही हवाईजहाज वहां से उड़ता था शेड फिर से बंद कर दिया जाता था और वॉचमैन और अधिकारी वहां से चले जाते थे।
आज लोहागांव एयर फोर्स स्टेशन पर पुणे का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

यह पूर्ण रूप से सिविल एयरपोर्ट है और इसको एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया संचालित करती है। लेकिन वास्तविकता है कि यह वायु सेना की भूमि पर स्थित है।

यहां आने जाने वालों यात्रियों को सख्त हिदायत दी जाती है कि एयरपोर्ट पर कोई फोटो न खींचे। वे वहां पर खड़े जेट लड़ाकू विमानों की फोटो नहीं खींच सकते हैं। एसा करना दंडनीय अपराध है।

जैसे ही 21वीं सदी शुरू हुई, पुणे एयरपोर्ट पर गतिविधियां जोर पकडऩे लगीं। वर्ष 2005 में जब पुणे में कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स कराने की घोषणा हुई तो एयरपोर्ट को आधुनिक बनाने के लिए 100 करोड़ रुपए की योजना का खाका तैयार किया गया।

अगस्त 2008 में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के आगमन और प्रस्थान की व्यवस्था और बेहतर बनाने के लिए दो नए विशाल टर्मिनल बनाए।

अब पुणे हवाई अड्डे पर नए एयरोब्रिज और नए प्रस्थान टर्मिनल हैं। हालांकि एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्ण अधिकार वाले सिविल एयरपोर्ट की समस्या वहीं की वहीं है।

हालांकि घरेलू उड़ानों के अलावा कुछ अंतरराष्ट्रीय उड़ानें पुणे से संचालित होती हैं लेकिन जम्बो जैसे विशालकाय विमान यहां रनवे छोटा होने के कारण नहीं आते। वर्तमान में पुणे एयरपोर्ट देश के व्यस्ततम हवाई अड्डों में एक है।

यहां से हजारों यात्री प्रतिदिन आते – जाते हैं। मई 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में पुणे देश का दसवां सबसे व्यस्त एयरपोर्ट था। इस वर्ष यहां से 80 लाख से अधिक यात्रियों ने यात्रा की थी।

समय के साथ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पिछले एक दशक से यहां एक और बड़े और आधुनिक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की जरूरत महसूस की जार रही है।

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इसके साथ ही वायुसेना ने भी अपने बेड़ों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर और जमीन की मांग की है। बढ़ती जरूरतों को हवाला देकर वायुसेना कई बार अपनी जमीन वापस मांग चुकी है।

दक्षिण कमान का मुख्यालय होने के नाते भी पुणे में वायुसेना की गतिविधियां बढ़ ही रही हैं।  अक्टूबर, 2016 में राज्य में आसीन तत्कालीन भाजपा-शिवसेना सरकार ने पुणे के पास पुरंदर में प्रस्तावित एयरपोर्ट को मंजूरी दे दी थी।

 

नए प्रस्तावित हवाई अड्डे का नाम भी छत्रपति साम्भाजी राजे एयरपोर्ट तय कर दिया गया था। यहां समस्या भूमि के अधिग्रहण को लेकर आई। जरूरत 2000 हेक्टेअर भूमि थी, जबकि सरकारी एजेंसियों के अधीन केवल 45 हेक्टेअर भूमि ही थी। शेष भूमि किसानों और अन्य लोगों के कब्जे में थी।

जिसके कारण योजना के कार्यान्वयन में देर हुई। यह विडम्बना ही तो है कि हर नयी सरकार पुणे में नए एयरपोर्ट की जरूरत बताती है और आसपास के इलाके की जमीन अधिग्रहीत करने पर जोर देती है।

जैसे ही यह बात सामने आती है विपक्षी दल विरोध चालू कर देते हैं। इसके साथ ही ग्रामीण भी विपक्षी दलों के सुर में सुर मिलाकर भारीभरकम मुआवजा मांगने लगते हैं।

पुरंदर से पहले प्रोजेक्ट के लिए खेद तालुका को चिह्नित किया गया था, लेकिन यह भी ग्रामीणों के विरोध की भेंट चढ़ गया।
सिविल एवियेशन मंत्रालय ने 8 मई, 2018 को पुणे के निकट पुरंदर में नए अंतरराष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

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प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कारपोरेशन को नोडल एजेंसी बनाया गया। उस समय प्रोजेक्ट की लागत 6000 करोड़ आंकी गई थी। और अब यह लागत बढ़कर 14000 रुपए हो गई है।

मार्च, 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने इसके लिए स्पेशल परपस व्हीकल (एसपीवी) का गठन किया। उस समय महाराष्ट्र सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ महाराष्ट्र को एसपीवी में 51 फीसदी शेयर के साथ मुख्य स्टेकहोल्डर बनाया गया जबकि एमएडीसी की हिस्सेदारी 19 फीसदी तय की गई।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में जब नवम्बर 2019 में महाअगाड़ी सरकार ने सत्ता संभाली तो ग्रामीणों के विरोध-प्रदर्शन के बावजूद उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने बताया कि पुरंदर एयरपोर्ट से संबंधित प्रस्ताव की कागजी कार्यवाही पूरी करके केंद्र को भेजी जा चुकी है।

पवार का मानना है कि प्रभावित किसानों को अधिग्रहीत भूमि का प्रचलित दरों के मुकाबले चार गुना अधिक मुआवजा दिया जाएगा। मौजूदा परिस्थिति में इससे बेहतर विकल्प नहीं हो सकता था क्योंकि सरकार किसी को वैकल्पिक प्लाट या परिवार के सदस्यों को नौकरी नहीं दे सकती थी।

हालांकि पवार ने अधिकारियोंं को ग्रामीणों के विरोध के चलते पुरंदरथाट में एयरपोर्ट बनाने की वैकल्पिक योजना बनाने को भी कहा है। और इस योजना में शरद पवार के चुनाव क्षेत्र बारामती के कुछ गांव भी शामिल करने की हिदायत दी है।

इस तरह पिछले करीब पंद्रह सालों पर नजर डाली जाए तो तमाम बैठकों, घोषणाओं, वादों के बावजूद पुणे में नया अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट दूर की कौड़ी ही साबित हो रहा है या नया हवाई अड्डा अभी केवल हवा में ही है।

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