Saturday - 6 January 2024 - 3:58 PM

वंचितों के बाद अब मध्यवर्ग पर मंडरा रहा है खतरा

उत्कर्ष सिन्हा

ये मान लेने में कोई शक नहीं है कि हालात वाकई बुरे हैं. परमाणु हथियारों पर इतराते दुनिया के शक्तिशाली देश फिलहाल एक विषाणु के हमले से इस कदर हिले हुए हैं कि जिंदगी ठप्प पड़ गयी है.

अब जबकि भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया है, तब ये फ़िक्र और भी गहरी होने लगी है कि देश की आधी आबादी किस तरह अपनी ज़िन्दगी बिताएगी.

अच्छी बात ये है कि सरकार गरीबो और मजदूरों के खातो में पैसे भेज रही है. फिलहाल राहत पहुँचाने का यही एक तरीका भी है. लेकिन अपनी निगाहों के लेंस को थोडा और फोकस करेंगे तो आने वाले दिनों के संकट की झलक साफ़ दिखने लगेगी .

फिलहाल तो संकट में कमजोर तबका दिखाई दे रहा है. वो दिहाड़ी मजदूर जो इस संकट काल में सैकड़ो किलोमीटर पैदल चलकर आए वे अपनी आजीविका खो चुके हैं. फैक्ट्रियां बंद पड़ी है और कामगार बेकार हो गए हैं.

आइये देखते हैं विशेषज्ञों की राय क्या कह रही है-

खतरे का इशारा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आईएलओ की रिपोर्ट कर रही है. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के असंगठित सेक्टर पर आने वाले दिनों में बड़ी गाज गिर सकती है जिसका सबसे गहरा असर निचले स्तर के कर्मचारियों और मजदूरों पर पड़ेगा. देश की कुल वर्क फ़ोर्स का 90 फीसदी कामगार इस सेक्टर में कार्यरत है.

चिंता ये भी है कि लाक डाउन के बाद रोजगार के लिहाज से  हालात और भी  डरावने हो सकते हैं.करोना संकट की वजह से उद्योग धंधे, उत्पादन और निर्माण कार्य ठप्प हो चुके हैं और महामारी से उबरने के रास्ते धुंधले पड़े हुए हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भारत को लेकर जाहिर अपनी चिंताओं में कहा है कि लॉकडाउन की बहुत सख्त और बहुत लंबी मियाद की वजह से भारत में असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर निर्णायक असर पड़ा है.

भारतीय उद्योग परिसंघ, सीआईआई ने का मानना है कि अगर पर्यटन और होटल जैसे उद्योगों में रिकवरी अक्टूबर से आगे तक खिंचती है तो आधा से ज्यादा इकाइयों का काम रुक सकता है और दो करोड़ से अधिक नौकरियां जा सकती हैं. लेकिन ये कहानी सिर्फ होटल या पर्यटन उद्योग की नहीं, दूसरे सेवा क्षेत्रों में स्थितियां नाजुक हैं,

एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन पूर्व भारत में रोजगार वाले लोगों की अनुमानित संख्या करीब 40 करोड़ थी. और करीब तीन करोड़ लोग बेरोजगार थे. लेकिन लॉकडाउन लागू होने के एक सप्ताह बाद के अनुमान के मुताबिक साढ़े 28 करोड़ लोग ही रोजगार में बने रह पाए थे. यानी अंदेशा ये है कि इस दौरान करीब 12 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं.

अब मध्यवर्ग की बारी है.

भारत की तरक्की का पैमाना मध्यवर्ग की तरक्की से लगाया जाता है. 30 साल पहले हुए परिवर्तन ने भारत में निजी क्षेत्र को विस्तार दिया था. इसने भारत में नया मध्यवर्ग पैदा किया जो घरो से बहार की जिंदगी का लुत्फ़ उठाता था. नतीजतन रेस्तरा, होटल, पर्यटन जैसे कई सेक्टर तेजी से उभरे. ये नया हिंदुस्तान नयी तरह की ज़िन्दगी जी रहा था. लेकिन संकट भी नया है तो नतीजे भी असरकारी होंगे.

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आर्थिक पत्रकार अंशुमन तिवारी का कहना है की एवियेशन, होटल, कैब, रियल स्टेट  जैसे सेक्टर बहुत प्रभावित होने वाले हैं. जाहिर है इन सेक्टर्स के प्रभावित होने की दशा में नौकरियाँ भी ख़त्म होंगी ही.

असर तो ग्लोबल बिजनेस पर भी पड़ेगा. उपभोक्ताओं की आय कम होगी तो खपत भी कम होगी और बचत की प्रवित्ति पहले से तेज होगी. नतीजा होगा बाजार में पूंजी के प्रवाह की कमी. बैंको के लोन के साए में जी रहा मध्यवर्ग जब कमजोर होगा तो असर बैंको पर भी पडेगा.

फिलहाल मोर्चे पर डाक्टर और जीववैज्ञानिक है जो विषाणु को नियंत्रित करने के काम में युद्ध स्तर पर जुटे हैं, लेकिन अगली चुनौती अर्थशास्त्रीयों के कंधे पर होगी. दुर्भाग्य वाली बात सिर्फ ये है की भारत सरकार के पास फिलहाल इस मोर्चे पर भारी कमी है.

मंत्रालय से लेकर नीति आयोग तक अच्छे अर्थशास्त्रीयों की कमी दिखाई दे रही है. सरकार फिलहाल मनमोहन सरकार की आर्थिक नीतियों की तरफ एक बार फिर झुक रही है जिसमे ग्रामीण इलाकों में निश्चित आय गारंटी स्कीम प्रमुख थी. इसके सिवा रास्ता भी नहीं है.

आईएलओ का कहना है कि 75 साल से ज्यादा के समय में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का ये सबसे बड़ा इम्तहान होने जा रहा है. एक देश भी नाकाम रहता है तो वो सबकी नाकामी होगी. जाहिर है कि ऐसे नाजुक मौकों पर वैश्विक समाज को असाधारण एकजुटता दिखानी होगी. सरकारों को भी अपने अपने देशों में हालात सुधारने के लिए युद्धस्तर पर अभी से जुट जाना होगा. अपने बेहाल नागरिकों की जीवनयापन की स्थितियां सुधारना सबसे बड़ी और सबसे पहली चुनौती होनी चाहिए.

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लेकिन क्या होगा जब मध्यवर्ग इसकी चपेट में आ जाएगा ? यही वो मौका है जब एक महीने बाद आर्थिक मोर्चे के लिए रणनीति बनानी शुरू की जानी चाहिए.

उम्मीद है हमारी वित्त मंत्री ये काम जरूर कर रही होंगी.

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