Sunday - 7 January 2024 - 8:55 AM

ट्यूबवेल खोदते-खोदते अरबपति बन गया यह शख्स

न्यूज़ डेस्क।

दुनियाभर में लोग तरह-तरह के काम करते हैं। कड़ी मेहनत और बड़ी पूंजी लगाकर लोग लखपति बनने का सपना देखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कोई शख्स ट्यूबवेल खोदते-खोदते अरबपति हो गया हो। नहीं सुना होगा, लेकिन ऐसा हुआ है। मामला मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले का है।

दरअसल जबलपुर में एक रिटायर्ड इंजीनियर के ठिकानों पर जब छापे पड़े तो 400 करोड़ की काली कमाई का मालिक निकला। पीएचई में तैनाती के दौरान सुरेश उपाध्याय नाम के अफसर ने इतनी रकम जुटाई कि हिसाब करते-करते जांच टीम के पसीने छूट रहे हैं।

जबलपुर के आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने मंगलवार की तड़के एक रिटायर्ड एसडीओ के कई ठिकानों पर छापेमारी की तो करोड़ों की काली कमाई का खुलासा हुआ।

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आरोप है कि सुरेश उपाध्याय ने करोड़ों की काली कमाई की और उसे खपाने के लिए रियल एस्टेट के कारोबार को चुना। ईओडब्ल्यू के एसपी देवेंद्र सिंह राजपूत की अगवाई में करीब 70 लोगों की टीम ने एक साथ छापे की कार्रवाई को अंजाम दिया। टीम जब रिटायर्ड एसडीओ सुरेश उपाध्याय के तिलहरी स्थित अनंतारा के बंगले पर पहुंची तो पूरा परिवार सोता हुआ मिला।

उपाध्याय को सर्च वारंट दिखाकर जब इस आलीशान बंगले की तलाशी शुरू की गई तो वहां मौजूद शाही साजो सामान और विलासिता की इंपोर्टेड चीजें देखकर जांच दल की आंखें भी चौंधिया गई।

एसडीओ रहे सुरेश उपाध्याय ने बेटे सचिन उपाध्याय के जरिए रियल एस्टेट कारोबार में कदम रखा और चैतन्य प्रमोटर्स नाम से कई कॉलोनियां बनाई। जांच में तिलहरी और कजरवारा क्षेत्र में कई एकड़ जमीन होने का भी खुलासा हुआ है।

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ईओडब्ल्यू के निशाने पर आने वाले सुरेश उपाध्याय की पत्नी अनुराधा उपाध्याय भाजपा की पार्षद भी रह चुकी हैं। माना जा रहा है कि उपाध्याय परिवार के कई दिग्गज भाजपा नेताओं से नजदीकी कारोबारी रिश्ते हैं।

शुरुआती जांच में ईओडब्ल्यू को बिलहरी, तिलहरी और कजरवारा क्षेत्र में कई एकड़ जमीनें मिली हैं, इसके अलावा अनंतारा में 42 नंबर का बंगला, कजरवारा और सदर में एक एक मकान, कई आलीशान गाड़ियां, सोने के जेवर और कई बैंक खातों का खुलासा हुआ है।

इस तरह कमाए करोड़ों रुपये

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सुरेश उपाध्याय सब इंजीनियर से असिस्टेंट इंजीनियर और बढ़ते-बढ़ते एसडीओ से रिटायर हुआ। उसने एक स्व. पूर्व विधायक के करीबी होने का फायदा उठाया और ड्रिलिंग मशीन चलाने और ट्यूबवेल खोदने का काम किया।

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1990 के बाद पीएचई में ड्रिलिंग की बड़ी मशीनें आईं और इसके बाद ही कमाई के रास्ते खुले। यह सिलसिला 2005 तक चलता रहा और तब तक हर जिले में 2000 तक ट्यूबवेल व हैंडपंप खोदे गए।

100 से 200 फीट की खुदाई को 300 से 400 फीट का बताकर भुगतान उठाया गया। इसी में जमकर कमीशन का खेल हुआ। कई मामलों में बिना खुदाई ही बिल बनवाकर करोड़ों कमाए।

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