Friday - 5 January 2024 - 12:44 PM

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले की बड़ी बातें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की प्रक्रिया को सही करार दिया है। सोमवार को फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। SC ने कहा कि संविधान सभा की सिफारिशें राष्‍ट्रपति पर बाध्‍य नहीं थीं।

अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त होने की अधिसूचना जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के भंग होने के बाद भी बनी रहती है। फैसले में कहा गया कि यह अदालत राष्ट्रपति के फैसले पर अपील पर विचार नहीं कर सकती कि अनुच्छेद 370 के तहत विशेष परिस्थितियां मौजूद हैं या नहीं।

5 जजों की संविधान पीठ ने तीन फैसले दिए हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ इस बेंच के मुखिया थे। बेंच में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी रहे। सीजेआई, जस्टिस गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने एक फैसला दिया। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसके कौल ने अलग फैसला लिखा।

सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 में जम्मू-कश्मीर में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर फैसला देने से इनकार कर दिया। SC ने कहा कि इसे याचिकाकर्ता द्वारा विशेष रूप से चुनौती नहीं दी गई थी।

सीजेआई ने कहा, जब राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो राज्यों में संघ की शक्तियों पर सीमाएं होती हैं। अनुच्छेद 356 के तहत शक्ति के प्रयोग की उचित वजह होनी चाहिए।

सीजेआई ने कहा, संवैधानिक व्यवस्था ने यह संकेत नहीं दिया कि जम्मू-कश्मीर ने संप्रभुता बरकरार रखी है। जम्मू-कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग बन गया, यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है।

CJI ने कहा- अनुच्छेद 370 (3) के तहत राष्ट्रपति की अधिसूचना जारी करने की शक्ति कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, जम्मू-कश्मीर संविधान सभा के विघटन के बाद भी कायम रहती है।

हमें यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर का UT में पुनर्गठन वैध है या नहीं। केंद्र शासित प्रदेश के रूप में लद्दाख के पुनर्गठन को बरकरार रखा गया है क्योंकि अनुच्छेद 3 राज्य के एक हिस्से को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की अनुमति देता है: सीजेआई

सीजेआई ने अपने आदेश में कहा, यह सवाल खुला है कि क्या संसद किसी राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदल सकती है।
हम निर्देश देते हैं कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कराने के लिए कदम उठाए जाएं। राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाएगा।

367 का उपयोग करके अनुच्छेद 370 में संशोधन के संबंध में, मैंने कहा है कि जब कोई प्रक्रिया निर्धारित की जाती है, तो उसका पालन करना होगा। पिछले दरवाजे से संशोधन की अनुमति नहीं है।

पांच जजों की बेंच ने 16 दिन तक सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। 20 से ज्यादा याचिकाओं के जरिए आर्टिकल 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती दी गई थी। 5 अगस्‍त, 2019 को सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था। यह पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता था। राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया।

अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कई नामी-गिरामी वकीलों की दलीलें सुनीं। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट्स- हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य ने दलीलें पेश कीं। याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यंत दवे और अन्य सीनियर एडवोकेट्स ने जिरह की।

याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि आर्टिकल 370 को निरस्त ही नहीं किया जा सकता। जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश से ही राष्ट्रपति उसे निरस्त कर सकते थे। संविधान सभा 1951 से 1957 तक फैसला ले सकती थी, लेकिन उसके बाद इसे निरस्त नहीं किया जा सकता।

सीनियर वकील सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि चूंकि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का कार्यकाल खत्म हो गया था, ऐसे में 1957 के बाद इसे निरस्त नहीं किया जा सकता। यह संवैधानिक कार्रवाई नहीं है।

केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने बताया था कि गृह मंत्री ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पेश करते हुए कहा था कि सही समय आने पर राज्य का दर्जा दे दिया जाएगा। केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा स्थायी नहीं है।

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि आजादी के 75 साल बाद वहां के लोगों को एक अधिकार मिला है, जिससे वह वंचित थे। इसे निरस्त किए जाने से देश के अन्य लोगों को जो बड़ी संख्या में मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। वह अधिकार भी जम्मू-कश्मीर के लोगों को मिल गया। उन्हें एक व्यापक संप्रभुता भी मिली है।

भाजपा की जम्मू कश्मीर इकाई के प्रमुख रविंदर रैना ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से दोनों पक्षों को सुना है। रैना ने कहा, ‘हमें विश्वास है कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं रह जाएगा। न्यायालय जो भी फैसला करेगा, उसका सभी को सम्मान करना चाहिए और उसे स्वीकार करना चाहिए।’

इसी बीच केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक 2023 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2023 को लोकसभा में पेश किया और उसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया है। जम्मू में पहले 37 विधानसभा सीटें थी, जो बिल में बढ़ाकर 43 कर दी गई है। कश्मीर में पहले 46 सीटें थी, जिसे 47 कर दिया गया है। पहले नॉमिनेटेड मंबर दो थे, उसे पांच कर दिया गया है। परिसीमन के बाद दो सीटें कश्मीरी विस्थापितों के लिए नामांकित की हैं। साथ ही PoK के लिए 24 विधानसभा सीट नामांकित की गई है।

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