Saturday - 6 January 2024 - 2:47 PM

क्या यूपी के बाहर सपा और बसपा का खेल खत्म!

जुबिली न्यूज डेस्क 

लखनऊ: चार राज्यों के विधानसभा चुनाव से भविष्य की उम्मीद लगा रही बसपा (BSP) और समाजवादी पार्टी (SP) को बड़ा झटका लगा है। नतीजों से साफ हो गया है कि यूपी से बाहर भी बसपा का जनाधार सिमट रहा है। पिछले चुनाव के मुकाबले चारों राज्यों में बसपा की सीटें और वोट प्रतिशत दोनों घटे हैं। राजस्थान और एमपी के शुरुआती रुझानों में बसपा कुछ सीटों पर टक्कर देती दिखी, लेकिन राजस्थान को छोड़कर कहीं खाता नहीं खोल सकी। राजस्थान में उसे दो सीटों पर जीत मिली है। वहीं मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गई।

बसपा ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है। इससे पहले पार्टी ने एमपी, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में पूरा जोर लगाया। पार्टी की मंशा यह थी कि इन राज्यों में अगर पहले जैसा या उससे बेहतर प्रदर्शन करती है तो इसका फायदा लोकसभा चुनाव में मिलेगा। भविष्य में चुनाव बाद गठबंधन बनता है तो उसमें भी वह तय-तोड़ की स्थिति में आ सकती है। नतीजों ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया। दो राज्यों छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा। राजस्थान और तेलंगाना में सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे, लेकिन पार्टी कोई करिश्मा नहीं कर सकी।

नहीं काम आया गठबंधन

एमपी और छत्तीसगढ़ में बसपा ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) से गठबंधन किया था। एमपी में बसपा ने 178 और GGP ने 52 प्रत्याशी उतारे थे। छत्तीसगढ़ में बसपा 53 और GGP 37 सीटों पर लड़ी थी। इन दोनों राज्यों में बसपा ने पिछले चुनाव में दो-दो सीटें जीती थीं। इस बार दोनों पार्टियों में से किसी को एक भी सीट हासिल नहीं हुई।

क्या और मुश्किल होगी राह?

इस प्रदर्शन से बसपा की आगे की राह और मुश्किल होगी। सबसे बड़े राज्य यूपी में बसपा का ग्राफ चुनाव-दर-चुनाव गिर रहा है। 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने वाली बसपा 2022 में एक सीट पर सिमट गई और वोट प्रतिशत भी गिरकर 13% पर आ गया। ऐसे में वह इन चार राज्यों से काफी उम्मीद कर रही थी। यहां कुछ बेहतर करने पर पार्टी का जनाधार बढ़ाने में मदद मिलती। लोकसभा चुनाव में गठबंधन की स्थिति बनने पर फायदा मिलता। चार राज्यों के इन चुनावों ने बसपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

एमपी में अपने सबसे बुरे दौर में पहुंची सपा

मध्य प्रदेश में गठबंधन में सीटें न मिलने से कांग्रेस से नाराज सपा ने अकेले दम पर पूरी ताकत झोंकी थी। हालांकि, सपा वहां कोई असर नहीं छोड़ पाई। पार्टी को महज 0.45% वोट ही मिले। वोट प्रतिशत के लिहाज से यह सपा का अपनी स्थापना के बाद सबसे खराब प्रदर्शन है। 1993 में स्थापना के साल जब सपा ने एमपी में चुनाव लड़ा था, तब उसे 0.54% वोट मिले थे। पिछले ढाई दशक में पहली बार सपा के कुल वोटों का आंकड़ा 2 लाख पार भी नहीं कर पाया।

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सपा ने एमपी विधानसभा चुनाव में करीब 50 उम्मीदवार उतारे थे। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने वहां करीब 10 दिनों तक चुनाव प्रचार किया था। उनकी पत्नी और मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव और सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव सहित पार्टी के कई नेता वहां चुनाव प्रचार में जुटे थे। अखिलेश ने यहां पीडीए फॉर्म्युले को लागू करते हुए जातीय जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाया था। पार्टी को सबसे अधिक उम्मीदवार बुंदेलखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में थी, लेकिन उसे हर ओर निराशा हाथ लगी।

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