जुबिली न्यूज डेस्क
पटना: बिहार विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन SIR (Special Intensive Revision) को लेकर सदन में जबरदस्त हंगामा देखने को मिला। हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक स्थगित करनी पड़ी। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा कर दिया।

“हम SIR का विरोध नहीं, उसकी पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं”
विधानसभा में बोलते हुए तेजस्वी यादव ने कहा:“हम SIR प्रक्रिया का विरोध नहीं कर रहे हैं, हम सिर्फ इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं। चुनाव आयोग की मंशा पर संदेह है।”
तेजस्वी ने यह भी बताया कि चुनाव आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए 780 पन्नों के हलफनामे में कहीं भी नेपाली, बांग्लादेशी या म्यांमार के घुसपैठियों का जिक्र नहीं किया गया है।
“चुनाव आयोग वोटर्स को फर्जी बता रहा है”
तेजस्वी यादव ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा:“चुनाव आयोग वोटर्स को फर्जी बता रहा है। अगर हम फर्जी वोटर हैं, तो क्या नीतीश कुमार फर्जी मुख्यमंत्री हैं? क्या मैं फर्जी विधायक हूं?”
उन्होंने दो टूक कहा कि चुनाव आयोग को वोटर्स की नागरिकता पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और चुनाव आयोग केवल “सूत्रों” के हवाले से लोगों को विदेशी बता रहे हैं।
11 दस्तावेजों की मांग पर सवाल
तेजस्वी ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग ने 11 तरह के दस्तावेज मांगे हैं, जो आम लोगों के पास नहीं हैं।“आधार, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड को मान्यता क्यों नहीं दी जा रही? बिहार एक ऐसा राज्य है जहां करीब 4 करोड़ लोग बाहर काम करने जाते हैं। ऐसे में सबके पास ये डॉक्यूमेंट कहां से आएंगे?”
तेजस्वी ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद चुनाव आयोग पारदर्शिता नहीं दिखा रहा है।
नीतीश कुमार का पलटवार – “तुम्हारे माता-पिता ने क्या किया?”
तेजस्वी यादव के आरोपों पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी तीखा जवाब दिया। उन्होंने कहा:“जब तुम्हारे माता-पिता मुख्यमंत्री थे तो क्या किया? पहले किसी ने महिलाओं को कुछ दिया था? अब जब कुछ करना होता है तो कहते हैं – करवा दो।”नीतीश के इस जवाब से एक बार फिर विधानसभा में तनातनी का माहौल बन गया।
क्या है SIR और क्यों हो रहा है विवाद?
SIR (Special Intensive Revision) वोटर लिस्ट में संशोधन की एक प्रक्रिया है जिसमें कथित फर्जी वोटरों और संदिग्ध नागरिकों की पहचान की जाती है। विपक्ष का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है और इससे वोटर सस्पेंशन और डीलिस्टिंग का खतरा है।
बिहार की राजनीति में SIR प्रक्रिया नया सियासी मोर्चा बन गई है। तेजस्वी यादव इसे आम जनता के अधिकारों पर हमला बता रहे हैं, वहीं सरकार इसे सुरक्षा और शुद्ध मतदाता सूची की प्रक्रिया बता रही है। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर क्या रुख अपनाता है और चुनाव आयोग पारदर्शिता को लेकर क्या कदम उठाता है।
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