सुरेंद्र दुबे
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पीओके को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को चेतावनी देते हुए कहा था कि पाकिस्तान से अब कोई भी बातचीत पीओके को लेकर ही होगी। यही नहीं 6 अगस्त को होम मिनिस्टर अमित शाह ने भी संसद में 370 पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए संसद में कहा था कि हम जान दे देंगे, लेकिन पीओके लेकर रहेंगे।
अगर रक्षामंत्री और गृहमंत्री के बयानों का बारीकी से अध्ययन करें तो एक बात बिलकुल स्पष्ट है कि जम्मू–कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने के बाद भारत सरकार इसी झटके में पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कब्जा करने के लिए लालायित है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से दोस्ती इसी कारण से बढ़ाने पर लगे हैं। पाकिस्तान आर्थिक व सामरिक रूप से इस समय जितना कमजोर है उतना वह कभी नहीं था। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कूटनीतिक मोर्चे पर बुरी तरह विफल रहे हैं। नरेंद्र मोदी उन्हें ललकार रहे हैं और डोनाल्ड ट्रंप उन्हें फटकार रहे हैं।
कल ही भारत के सेनाध्यक्ष विपिन रावत ने खुलासा कर दिया है कि पाकिस्तान के बालाकोट में पांच सौ आतंकवादी इकट्ठा हो गए हैं जो किसी भी समय किसी अनहोनी को अंजाम देने की साजिश रच सकते हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया है कि भारतीय वायु सेना बालाकोट क्या उसके आगे भी जा सकती है।
बालाकोट में पाकिस्तान की सक्रियता इस बात स्पष्ट संकेत है कि पाकिस्तान भी भारत के मंसूबों को समझ रहा है। उसे ये भी मालुम है कि भारत से युद्ध जीतना उसके बूते की बात नहीं है। पर वह पीओके को तश्तरी में रखकर सौंप देगा यह सोचना एक बड़ी भूल होगी।
ह्यूश्टन में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने तथा आतंकवाद को बढ़ावा देने के पाकिस्तानी रवैये की जमकर आलोचना की। उधर ट्रंप ने इमरान को भी जमकर लताड़ा और फिर कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश कर दी।
भारत भले ही बार-बार कह रहा हो कि वह किसी तरह के मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है। परंतु अमेरिका जाकर बार-बार जम्मू-कश्मीर की समस्या का उल्लेख करना एक तरह से समस्या का अतंरर्राष्ट्रीयकरण करना ही है और जब हर मंच पर जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान को लताड़ा जाएगा तो डोनाल्ड ट्रंप हर बार मुस्कुराते हुए मध्यस्थता का ही ऑफर देंगे।
भारत अगर ये सोचता है कि अमेरिका पाकिस्तान पर दबाव डालकर पीओके उसे वापस दिला देगा तो यह दिन में स्वप्न देखने जैसा ही है। सरहदें हमेशा लड़कर ही जीती या हारीं जाती हैं। मध्यस्थता के जरिए कोई भी देश अपनी खोई हुई जमीन वापस नहीं ले सकता।
चीन ने हमारे एक बड़े भू-भाग पर कब्जा कर रखा है। हमने लड़ने का साहस नहीं दिखाया तो जमीन उसी के कब्जे में है। पाकिस्तान भले ही बहुत कमजोर हो गया हो पर बगैर लड़े पीओके को भारत वापस नहीं ले सकता। हो सकता है पाकिस्तान इस प्रकिया में बुरी तरह बर्बाद हो जाए पर उसके सामने लड़ने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है।
भारत अगर पहले युद्ध की शुरूआत न करने की नीति बदल भी ले तो अभी हाल फिलहाल उसके लिए कश्मीर में युद्ध का मोर्चा खोलना बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं होगा। क्योंकि जम्मू-कश्मीर में बंदूकों के बल पर जो शांति कायम है वह कब तक कायम रहेगी, ये कोई नहीं कह सकता है।
तो जब तक इस मोर्चे से सरकार पूरी तरह निश्चिन्त न हो जाए तब तक पीओके की ओर बढ़ने की गलती सरकार नहीं करना चाहेगी। ट्रंप साहब की मोदी साहब से चाहे जितनी गाढ़ी छनती हो न तो पीओके दिलाने की कोई पहल करेंगे और न ही पाकिस्तान उनके कहने पर पीओके दे देगा।
ये हो सकता है पाकिस्तान अपने आतंकियों को कश्मीर में भेजकर उत्पात कराने की कोशिश करे, जो भारत के लिए युद्ध का एक बहाना बन सकता है। पर बहाना तो पिछली बार बालाकोट पर कार्रवाई के समय भी मौजूद था, पर एक एयरस्ट्राइक के बाद कार्रवाई रोक दी गई।
इस बार हम युद्ध के लिए आगे बढ़ जाएंगे, जरूरी नहीं है। अगर हम वर्ष 1971 में बांगलादेश की लड़ाई को छोड़ दें तो भारत ने हमेशा मजबूरी में ही युद्ध लड़ा है। यही हमारी नीति रही है। फिलहाल पीओके हमारे लिए समस्या ही बना रहेगा, जिसको लेकर हम नारेबाजी तो कर सकते हैं पर उसे वापस छीन लेना बहुत आसान नहीं होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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